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    Saturday, July 21, 2018

    🔸Understanding No-Confidence Motion in India 🔸भारत में अविश्वास प्रस्ताव 🔹सरकारच्या विरोधात ‘अविश्वास प्रस्ताव’

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    Current Affairs 21 July 2018
    करेंट अफेयर्स 21 जुलै 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
    🔸Understanding No-Confidence Motion in India

    🔸भारत में अविश्वास प्रस्ताव


    🔹सरकारच्या विरोधात ‘अविश्वास प्रस्ताव’


    Hindi | हिंदी



    भारत में अविश्वास प्रस्ताव

    चर्चा में क्यों है अविश्वास प्रस्ताव

    विपक्ष के लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 20 जुलाई को 11 घंटों की लंबी बहस चली, जिसके बाद मोदी सरकार ने सदन में अपना बहुमत साबित कर दिया है। वोटिंग के बाद सदन में विपक्ष का लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया है। प्रस्ताव के पक्ष में कुल 126 मत पड़े जबकि विपक्ष में 325 मत पड़े।

    अविश्वास प्रस्ताव है क्या

    अविश्वास प्रस्ताव यह जांचने के लिए पेश किया जाता है कि जो सरकार सत्ता में है उसके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी सहयोगी है या नहीं। भारतीय संसद में अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष पेश करता है। अविश्वास प्रस्ताव तब पेश किया जाता है जब विपक्ष को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार सदन का बहुमत खो चुकी है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में  पेश किया जा सकता है राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं होता है। अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा स्पीकर के सामने पेश किया जाता है उनकी मंजूरी के बाद दस दिनों के अंदर इस पर चर्चा होती है। भारत में सबसे पहले 1963 में जवाहरलाल नेहरु की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था, जबकि दुनिया में पहला अविश्वास प्रस्ताव 1782 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में लाया गया था। बहरहाल, वर्ष 2003 के बाद यह पहली बार है जब विपक्ष ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है।

    जानें क्या हैं नियम

    अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के लिए कम से कम 50 लोकसभा सदस्यों की जरूरत होती है। अविश्वास प्रस्ताव जीतने में अगर सत्ता पक्ष नाकामयाब हो जाता है तो उसे सत्ता छोड़नी पड़ती है और पार्टी का जो भी सदस्य प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के पद पर होता है उसे अपने पद से इस्तीफा देना होता है। अविश्वास प्रस्ताव का इस्तेमाल हर देश में किया जाता है, लेकिन हर देश में इसका प्रारूप अलग-अलग होता है। जैसे स्पेन, जर्मनी और इजरायल में अविश्वास प्रस्ताव के साथ विपक्ष को ऐसे व्यक्ति को भी नामित करना पड़ता है जो अविश्वास प्रस्ताव जीतने के बाद सत्ता प्रमुख नियुक्त हो सकें।

    अब तक कुल कितने प्रस्ताव?

    इससे पहले विभिन्न मौकों पर कुल 26 अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में आ चुके थे। 20 जुलाई को मोदी सरकार के खिलाफ लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव के साथ अब तक के अविश्वास प्रस्ताव की संख्या कुल 27 हो गयी है।

    पहला प्रस्ताव

    समाजवादी नेता आचार्य कृपलानी ने 1963 में जवाहर लाल नेहरू सरकार के खिलाफ भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। भले ही यह अविश्वास प्रस्ताव 347 मतों से गिर गया था और सरकार पर कोई असर नहीं हुआ लेकिन इसके साथ ही देश में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास शुरू हो गया।

    सबसे ज्यादा किसके खिलाफ प्रस्ताव?

    सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का रेकॉर्ड इंदिरा गांधी सरकार के नाम है जिसके कार्यकाल में 15 बार प्रस्ताव पेश किया गया। 1966 से 1975 के बीच 12 बार और 1981 एवं 1982 में तीन बार उनके खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया।

     कितनी बार सरकारें गिरीं

    अब तक सिर्फ तीन बार, 1990 में वी.पी. सिंह सरकार, 1997 में एच.डी. देवेगौड़ा सरकार और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया और सरकार गिर गई। 7 नवंबर 1990 को वी.पी.सिंह ने उस समय विश्वास प्रस्ताव पेश किया था जब बीजेपी ने उनसे समर्थन वापस ले लिया था। सरकार के पक्ष में 152 वोट पड़े थे और खिलाफ 356। इस तरह सरकार गिर गई थी। 11 अप्रैल, 1997 को देवेगौड़ा सरकार विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रही थी। सरकार के पक्ष में 190 और खिलाफ में 338 वोट पड़े थे। 17 अप्रैल 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोटों से हार गई थी। सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े थे जबकि खिलाफ 270।

    आखिरी बार

    आखिरी बार अविश्वास प्रस्ताव 2003 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन एनडीए सरकार के खिलाफ पेश किया था। यह अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह नाकाम रहा था क्योंकि सरकार के पक्ष में 325 वोट पड़े थे और खिलाफ 212 वोट।

    इनके खिलाफ भी आया अविश्वास प्रस्ताव

    भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुरी शास्त्री के खिलाफ तीन बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। पहला 1964 में और 1965 के दौरान दो अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे। 1987 में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था लेकिन ध्वनिमत से उस प्रस्ताव को हरा दिया गया था। पी.वी.नरसिम्हा राव के कार्यकाल में तीन बार प्रस्ताव पेश किया गया। अब तक लोकसभा में 13 बार अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई है जिनमें पांच प्रधानमंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।
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    English | इंग्लिश



    Understanding No-Confidence Motion in India
    Why this is a part of D.N.A.:
    -       Clearly short of numbers as the Narendra Modi government faces its first no-confidence motion moved by Telegu Desam Party (TDP) in Parliament , Congress-led Opposition has said that they would “expose” the government before the country.
    About No-Confidence Motion:
    -       This no-confidence motion discussion in Lok Sabha is the 27th no-confidence motion in India’s Parliamentary history. And this is not the first time that a no-confidence has been moved against a BJP government and its Prime Minister.If we look back at the recent past, a motion of no-confidence was moved in the Lok Sabha in 2003 when the Bharatiya Janata Party (BJP) was in power and Atal Bihari Vajpayee was the Prime Minister. The no-confidence motion was moved by then Congress president Sonia Gandhi. However, the Vajpayee government managed to defeat the motion.Interestingly, today’s no-confidence motion is the first since the one that took place 15 years back.
    The significance of no-confidence:
    -       According to the Constitution, a government is eligible to remain in power only if it has the required numbers for a majority in Lok Sabha.Article 75(3) of India’s Constitution lays the down provision that Council of Ministers are collectively responsible to Lok Sabha. The rules of Lok Sabha has a mechanism called ‘no-confidence motion’ to test the collective responsibility.According to the rules, a Lok Sabha MP needs to garner the 50 lawmakers to introduce a no-confidence motion against the government. Subsequently, a discussion on the motion takes place. This time there seven-hour long debate on the no-confidence motion.
    No-confidence motions – a timeline
    -       The first no-confidence motion was moved during the third Lok Sabha in 1963 when Jawaharlal Nehru was the Prime Minister. The motion, moved by 40 MPs was debated for 21 hours and lasted four days. Nehru successfully managed to defeat the motion.
    -       From 1964-75, Lok Sabha saw a slew of a no-confidence motions, as many as 15. Among those, three were moved against ex-PM Shastri.
    -       Twelve no-confidence motions were moved against former PM Indira Gandhi. She went on to face three more confidence motions between 1981 and 1982. She had won all the trust votes thanks to the numbers her government had. Former Prime Minister Rajiv Gandhi had faced a no-confidence motion in 1987 which he managed to defeat because of the overwhelming majority.
    -       Jaswant Singh had moved a no-confidence motion against P V Narasimha Rao during the 10th Lok Sabha. Again Vajpayee had moved another no-confidence motion against Rao. Rao defeated with a margin of 14 votes.
    -       The most intriguing and closest of the no-confidence motions in 1999 when the Vajpayee government lost the no-confidence motion by just 1 vote which led to fall of his government.
    Few Details:
    -       In India, a motion of no confidence can be introduced only in the Lok Sabha (the lower house of the Parliament of India).The motion is admitted for discussion when a minimum of 50 members of the house support the motion. If the motion carries, the House debates and votes on the motion.





    Marathi | मराठी


    सरकारच्या विरोधात ‘अविश्वास प्रस्ताव’

    12 तासांच्या वादविवादानंतर लोकसभेने वर्तमान सरकारच्या विरोधात असलेला अविश्वास प्रस्ताव नाकारला आहे. पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांच्या नेतृत्वात असलेल्या भारतीय जनता पक्षाच्या सरकारने अविश्वास प्रस्ताव आपल्या बाजूने जिंकला आहे. सन 2003 नंतर पहिल्यांदाच संसदेत अविश्वास ठराव मांडण्यात आला.
    एकूण 534 सभासदांपैकी 451 जण उपस्थित होते. राष्ट्रीय लोकशाही आघाडीने (NDA) 126 सभासदांनी प्रस्तावाच्या बाजूने मतदान केले तर 325 मते प्रस्तावाच्या विरोधात आहेत. देशात वाढणार्‍या भ्रष्टाचार, जातीयवाद, महिलांवरचे अत्याचार असे सगळे मुद्दे भाषणात मांडण्यात आले होते.
    चला तर याविषयी जाणून घेऊया -
    अविश्वास प्रस्ताव म्हणजे काय?
    विरोधी पक्ष सरकार विरोधात अविश्वास प्रस्ताव संसदेत मांडतात. हा प्रस्ताव स्वीकारण्याचा किंवा नाकारण्याचा सर्वाधिकार लोकसभेच्या अध्यक्षांना असतो. केंद्र शासनाविरोधात लोकसभेत आणि राज्य शासनाविरोधात विधानसभेमध्ये अविश्वास प्रस्ताव सादर केला जातो.
    हा प्रस्ताव स्वीकारला गेल्यावर सत्ताधारी पक्षाला आपले बहुमत सिद्ध करावे लागते. अविश्वास प्रस्ताव आणण्यासाठी सदस्यांना कोणतेही कारण द्यावे लागत नाही. सरकारकडे बहुमत नाही किंवा सरकार सभागृहाचा विश्वास गमावून बसली आहे, असे जेव्हा विरोधी पक्षाला वाटते तेव्हा अविश्वास प्रस्ताव आणला जातो.
    प्रक्रिया
    संसदेतल्या कामकाजासंबंधीच्या नियम 198 मध्ये अविश्वास प्रस्ताव मांडण्याबाबतची नियमावली स्पष्ट करण्यात आलेली आहे. नियमानुसार अविश्वास प्रस्ताव मांडण्यासाठी संसद सदस्यांना सकाळी दहा वाजण्यापूर्वी लेखी नोटीस द्यावी लागते. लोकसभा अध्यक्ष ही नोटीस सभागृहासमोर वाचतात. अविश्वास प्रस्ताव मांडण्यासाठी किमान 50 सभासदांचा पाठिंबा मिळणे आवश्यक असते.
    प्रस्ताव स्वीकारण्यात आल्यावर 10 दिवसांमध्ये त्यावर चर्चा करण्याची तरतूद आहे. जर असे झाले नाही तर अविश्वास प्रस्ताव अयशस्वी ठरला असे मानले जाते. या प्रस्तावावर चर्चा झाल्यानंतर मतदान केले जाते. तसेच सरकार बहुमत सिद्ध करण्यास अपयशी ठरल्यास पंतप्रधानांना राजीनामा द्यावा लागतो.
    लोकसभेतच हा प्रस्ताव मांडण्याचे कारण म्हणजे, लोकसभा हे प्रत्यक्ष लोकांनी निवडून दिलेल्या सभासदांचे सभागृह आहे. तर राज्यसभेमध्ये अप्रत्यक्षपणे लोकांनी निवडून दिलेले सभासद असतात. तसेच ते राज्यांचे प्रतिनिधित्व करत असतात. त्यामुळे लोकसभेत बहुमत असेपर्यंतच एखाद्या पक्षाला सत्तेत राहता येते. त्यामुळे सरकारविरोधातील अविश्वास प्रस्ताव हा लोकसभेतच मांडला जातो.
    इतिहास
    या घटनेला पकडून आत्तापर्यंत लोकसभेत एकूण 27 वेळा अविश्वास प्रस्ताव सादर करण्यात आला आहे.
    • समाजवादी नेते आचार्य कृपलानी यांनी सन 1963 मध्ये पहिल्यांदा जवाहरलाल नेहरु यांच्या नेतृत्वाखाली असलेल्या सरकारविरोधात अविश्वास प्रस्ताव मांडला होता. भारतीय लोकशाहीच्या इतिहासातला हा पहिला अविश्वास प्रस्ताव होता. हा प्रस्ताव 347 मतांनी फेटाळण्यात आला होता.
    • सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी यांच्या नेतृत्वाखाली असलेल्या सरकारविरोधात दाखल झाले होते. त्यांच्या काळात सरकारविरोधात सन 1966 ते सन 1975 या काळात 12 वेळा तर सन 1981 ते सन 1982 या काळात तीनदा अविश्वास प्रस्ताव सादर करण्यात आला.
    • अविश्वास प्रस्तावात आत्तापर्यंत तीनदा सत्ताधाऱ्यांचा पराभव झाला आणि त्यांना सत्ता सोडावी लागली. सन 1990 (व्ही. पी. सिंग सरकार), सन 1997 (एच. डी. देवेगौडा सरकार) आणि सन 1999 (अटलबिहारी वाजपेयी सरकार) मध्ये तत्कालीन सरकार खंडित करण्यात आली.
    • संसदेत शेवटचा अविश्वास प्रस्ताव सन 2003 मध्ये अटलबिहारी वाजपेयी सरकारविरोधात मांडला गेला होता. मात्र हा प्रस्ताव फेटाळण्यात आला.
    • लोकसभेत 13 अविश्वास प्रस्तावांवर चर्चा झाली असून यातल्या पाचदा पंतप्रधानांना राजीनामा द्यावा लागला.
    • सन 2008 मध्ये अमेरिकेशी अणूकरार करण्याच्या मुद्द्यांवरुन काँग्रेस सरकारचा पाठिंबा काढून घेण्यात आला होता. यानंतर काँग्रेसने स्वत:हून संसदेत विश्वासदर्शक ठराव मांडला. हा ठराव काँग्रेस 263 विरुद्ध 269 मतांनी जिंकला होता.




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