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    Wednesday, June 20, 2018

    E-waste management ई-कचरा व्यवस्थापन: एक महत्त्वाचा विषय ई-कचरा प्रबंधन और इससे जुड़े कानून:

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    Current Affairs 20 June 2018
    करेंट अफेयर्स 20 जून 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
     E-waste management

    ई-कचरा व्यवस्थापन: एक महत्त्वाचा विषय

    ई-कचरा प्रबंधन और इससे जुड़े कानून:


    Hindi | हिंदी

    ई-कचरा प्रबंधन और इससे जुड़े कानून:
    हाल के वर्षों में भारत ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के प्रयासों की ओर अत्यधिक ध्यान दिया है। इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस में प्लास्टिक प्रदूषण केंद्र में रहा था। हालाँकि, अगर देखा जाय तो ई-कचरा सबसे खतरनाक प्रकार के अपशिष्टों में से एक है, क्यूंकि इसमें भारी धातुएं और अन्य जहरीले प्रकार के रसायन होते हैं।
    समस्या:
    भारत वर्ष 2015 में जेनरेट हुए 1.5 मिलियन टन ई-कचरे के साथ दुनिया में मोबाइल फोन के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है। ज्यादातर उपभोक्ता अभी भी अपने ई-कचरे का निपटान करने के तरीकों के बारे में अनजान हैं।
    अधिकांश भारतीय अनौपचारिक क्षेत्र में अपना ई-कचरा बेचते हैं, जो इसमें से लाभप्रद धातुएं एवं अन्य वस्तुएं निकालने के प्रयास में मानव (बच्चों के) जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।
    इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।
    ई-कचरा प्रबंधन कानून:
    सरकार ने विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर) के आधार पर वर्ष 2011 में ई-कचरा प्रबंधन पर पहला कानून पारित किया था। इस कानून में उत्पाद के जीवन के अंतिम चरणों के प्रबंधन के लिए निर्माता पर जोर दिया गया था।
    अक्तूबर 2016 से ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 प्रभाव में आए। ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोगकर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होंगे। नियम के दायरे में 21 से अधिक उत्पाद (अनुसूची -1) शामिल किए गए।
    अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक रूप दिया जाएगा और श्रमिकों को ई-कचरे को संभालने के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा, न कि उसमें से कीमती धातुओं को निकालने के बाद।
    ई-कचरा संग्रहण के नए निधार्रित लक्ष्‍य 1 अक्‍तूबर, 2017 से प्रभावी माने जाएंगे। विभिन्‍न चरणों में ई-कचरे का संग्रहण लक्ष्‍य 2017-18 के दौरान उत्‍पन्‍न किये गए कचरे के वजन का 10 प्रतिशत होगा जो 2023 तक प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ता जाएगा। वर्ष 2023 के बाद यह लक्ष्‍य कुल उत्‍पन्‍न कचरे का 70 प्रतिशत हो जाएगा।
    यदि किसी उत्‍पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्‍पादों के औसत आयु से कम होंगे तो ऐसे नए ई-उत्‍पादकों के लिये ई-कचरा संग्रहण हेतु अलग लक्ष्‍य निर्धारित किये जाएंगे। उत्‍पादों की औसत आयु समय-समय पर केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाएगी।
    हानिकारक पदार्थों से संबधित व्‍यवस्‍थाओं में आरओएच के तहत ऐसे उत्‍पादों की जाँच का खर्च सरकार वहन करेगी यदि उत्‍पाद आरओएच की व्‍यवस्‍थाओं के अनुरूप नहीं हुए तो उस हालत में जाँच का खर्च उत्‍पादक को वहन करना होगा।
    उत्‍पादक जवाबदेही संगठनों को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिये खुद को पंजीकृत कराने हेतु केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष आवेदन करना होगा। मार्च, 2018 को अधिसूचना जीएसआर 261 (ई) के तहत ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2016 को संशोधित किया गया है।





    English | इंग्लिश

     E-waste management
    Why in News:  Even today, when India is among the world’s largest consumer of mobile phones with 1.5 million tonnes of e-waste generated in 2015, most consumers are still unaware of how to dispose of their e-waste. Most Indians end up selling their e-waste to the informal sector, which poses severe threats to human (including children’s) lives, with its improper and highly hazardous methods of extracting the trace amounts of precious metal from it and handling e-waste for profit.
    E-Waste:
    Electronic waste or e-waste describes discarded electrical or electronic devices. Used electronics which are destined for reuse, resale, salvage, recycling, or disposal are also considered e-waste. Informal processing of e-waste in developing countries can lead to adverse human health effects and environmental pollution.
    How have the new laws on e-waste management in India been effective?
    -          E-waste (Management) Rules, 2016, enacted since October 1, 2017, had further strengthened the existing rules. Over 21 products (Schedule-I) were included under the purview of the rule. The rule also extended its purview to components or consumables or parts or spares of Electrical and Electronic Equipment (EEE), along with their products.
    -          The present rule has strengthened the Extended Producer Responsibility (EPR), which is the global best practice to ensure the take-back of the end-of-life products. A new arrangement entitled, ‘Producer Responsibility Organisation’ (PRO) has been introduced to strengthen EPR further. PRO, a professional organisation, would be authorised or financed collectively or individually by producers, to share the responsibility for collection and channelisation of e-waste generated from the ‘end-of-life’ products to ensure environmentally sound management of such e-waste.
    -          The rule has provisioned the target for the producers, which was missing in the first version of the Rule (2012). Now, manufacturers are mandated to take back their sold products with recommended mechanisms.
    -          The present Rule ensures that every producer of electrical and electronic equipment (EEE) and their components or consumables or parts or spares shall ensure that new EEE and their components or consumables or parts or spares do not contain pollutants such as lead, mercury, cadmium, hexavalent chromium, polybrominated biphenyls and polybrominated diphenyl ethers beyond a maximum concentration value.
    -          Every producer shall provide detailed information on the constituents of the equipment and their components or consumables or parts or spares, along with a declaration of conformance to the RoHS (Restriction of Hazardous Substances) provisions in the product user documentation.

    -          Further, Central Pollution Control Board (CPCB) shall conduct random sampling of electrical and electronic equipment placed on the market to monitor and verify the compliance of RoHS provisions and the cost for sample and testing shall be borne by the producer.

    -           The random sampling shall be as per the guidelines of CPCB. If the product does not comply with RoHS provisions, the producers shall take corrective measures to bring the product into compliance, and withdraw or recall the product from the market, within a reasonable period as per the guidelines of CPCB.

    What is step-by-step guide for a citizen who wants to dispose of his electronic gadget (phone/TV/laptop/anything else) in the right way?
    -          Effective awareness would be the right step for all stakeholders. As per the rule, manufacturers have been mandated to create awareness in the country.
    -          The Ministry of Electronics and Information Technology, MeitY, has initiated an E-waste Awareness programme under Digital India initiatives, along with industry associations from 2015, to create awareness among the public about the hazards of e-waste recycling by the unorganised sector, and to educate them about alternate methods of disposing of their e-waste.
    -          The programme stresses the need for adopting environmentally friendly e-waste recycling practices. The general public is also encouraged to participate in ‘Swachh Digital Bharat’, by giving their e-waste to authorised recyclers only.
    -          The programme has adopted the best practices for e-waste recycling available globally, so that this sector could generate jobs as well as viable business prospects for locals. In the initial phase of the programme, a city each in the 10 identified states (namely Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Jharkhand, Orissa, Goa, Bihar, Pondicherry, West Bengal, Assam and Manipur) are being covered. The stakeholders involved are schools, colleges, Residents’ Welfare Associations (RWAs), bulk consumers, regulatory bodies, and the media.









    Marathi | मराठी

    ई-कचरा व्यवस्थापन: एक महत्त्वाचा विषय

    आज कचरा हा एक गंभीर विषय बनलेला आहे, मग तो प्लास्टीक कचरा असो वा इलेक्ट्रॉनिक कचरा.
    आजच्या वाढत्या तंत्रज्ञान युगात संगणक तसेच अनेक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणे आपल्या दैनंदिन जीवनाचा एक भाग बनला आहे. वाढत्या मागणीमुळे आणि सतत नवनव्या तंत्रामुळे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणांची संख्या वाढलेली आहे. आशयातच सहाजिकच त्याचा कचरा देखील तयार होणार. मग मुद्दा हा निर्माण होतो, जिथे आपल्याला प्लास्टीकचाच प्रश्न सोडवता आलेला नाही तर मग हा नवा विषय कसा सोडवावा? तर चला मग याविषयी माहिती आपण घेऊयात.
    ई-कचर्‍याविषयी
    ई-कचरा हा एक धोकादायक मुद्दा ठरू शकतो, कारण त्यामध्ये मोठ्या प्रमाणात जड धातू आणि अन्य विषारी रसायनांचा वापर केला जातो. भारत सन 2015 मध्ये निर्माण झालेल्या 1.5 दशलक्ष टन ई-कचर्‍यासह जगातला मोबाइल फोनचा सर्वात मोठा ग्राहकांपैकी एक होता. अजूनही अनेक लोकांना ई-कचरा हाताळता येत नाही आणि त्यांना त्याबद्दल माहितीही नाही.
    बहुतेक भारतीय अनौपचारिक क्षेत्रात आपला ई-कचरा विकतात, जे त्यामधून मौल्यवान धातू व अन्य उपयोगी पदार्थ/वस्तू काढून घेतात, मात्र त्यात सुरक्षितता बाळगली जात नाही. इलेक्ट्रॉनिक वस्तूंमध्ये कॅडमियम, निकेल, क्रोमियम, अॅंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम आणि पारा वापरला जातो, जे की मानवी आरोग्य आणि पर्यावरणाला नेहमी घटक आहेत.
    ई-कचरा व्यवस्थापन कायदे/नियम
    • भारत सरकारने विस्तारित निर्माता कर्तव्य (EPR) च्या आधारावर सन 2011 मध्ये ई-कचरा व्यवस्थापनासंबंधी पहिला कायदा लागू केला. या कायद्यात उत्पादनाच्या काळमर्यादेच्या शेवटी-शेवटी निर्मात्यांवर व्यवस्थापनाविषयी जोर दिला गेला.
    • ऑक्टोबर 2016 पासून ‘ई-कचरा व्यवस्थापन विनिमय-2016’ लागू झाला. हे नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादक, ग्राहक, विक्रेता, कचरा संकलन करणारा, त्यावर उपचार करणारा आणि वापरकर्ता अश्या सर्वांसाठी लागू होणार. हे नियम 21 हून अधिक उत्पादनांसाठी लागू आहेत. यामधून अनौपचारिक क्षेत्रातल्या श्रमिकांना ई-कचरा हाताळण्यासाठी प्रशिक्षण दिले जाते.
    • ई-कचरा संकलनासाठीची नवे निधार्रित लक्ष्‍य 1 ऑक्टोबर 2017 पासून प्रभावी करण्यात आले आहे. विभिन्‍न टप्प्यांमध्ये ई-कचर्‍याचे संकलन लक्ष्‍य सन 2017-18 दरम्यान उत्‍पन्‍न केल्या गेलेल्या कचर्‍याच्या वजनाच्या 10% असेल, जे 2023 सालापर्यंत वार्षिक 10% च्या दराने वाढत जाणार. सन 2023 नंतर हे लक्ष्‍य एकूण उत्‍पन्‍न झालेल्या कचर्‍याच्या 70% होण्याचा अंदाज आहे.
    • EPR ला आणखी मजबुती देण्याकरीता 'प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी ऑर्गनायझेशन' (PRO) नावाची एक नवीन व्यवस्था सादर करण्यात आली आहे. ज्यामध्ये PRO ही एक व्यावसायिक संस्था आहे, जी ई-कचर्‍याचे पर्यावरणास अनुकूल व्यवस्थापन सुनिश्चित करण्यासाठी निर्माण झालेल्या ई-कचराची संकलन आणि त्याच्या विल्हेवाटची जबाबदारी सामायिक करण्यासाठी निर्मात्यांद्वारे एकत्रितपणे किंवा वैयक्तिकरित्या अर्थपुरवठा करण्यास अधिकृत असेल.
    • नियमानुसार उत्पादकांना हे सुनिश्चित करण्याचे आदेश देते की त्यांच्या उत्पादनांमध्ये शिसे, पारा, कॅडमियम, हेक्सावलॅन्ट क्रोमियम, पॉलिब्रोमिनिटेड बायफिनीलस आणि पॉलीब्रोमीनिटेड डीफिनील इथर्स यांचे प्रमाण कमाल प्रमाणाबाहेर वापरले जाऊ नये. शिवाय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडळ (CPCB) बाजारामधून इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणांचे यादृच्छिक नमूने घेऊन ते हे प्रमाण तपासतात.
    अन्य प्रयत्न
    देशात जागरुकता निर्माण करण्यासाठी 2015 सालापासून उद्योग संघटनांसह इलेक्ट्रॉनिक आणि माहिती तंत्रज्ञान मंत्रालयाने डिजिटल भारत उपक्रमा अंतर्गत ‘ई-कचरा जागृती कार्यक्रम’ चालविला आहे. हा कार्यक्रम पर्यावरणस्नेही ई-कचरा पुनर्नवीनीकरण पद्धती वापरण्याची गरज यावर जोर देतो. 'स्वच्छ डिजिटल भारत' मध्ये सहभागी होण्याकरिता सामान्य जनतेला पुनर्नवीनीकरणासाठी प्रोत्साहित केले जाते.
    सोशल मीडियाद्वारे जनजागृती करण्यासाठी एक समर्पित संकेतस्थळ (www.greene.gov.in), ट्विटर आणि फेसबुक पेज तयार करण्यात आले आहेत. याशिवाय, युवांमध्ये जागरूकता आणण्यासाठी 'सिनेमाद्वारे ई-कचरा मोठ्या प्रमाणात जागृती मोहीम' देखील सुरू करण्यात आली आहे. 
    इलेक्ट्रॉनिक्स आणि माहिती तंत्रज्ञान मंत्रालयाने PCB आणि प्लास्टीकसाठी पुनर्नवीनीकरण तंत्रज्ञान विकसित केलेले आहे. ई-कचरामध्ये प्लास्टिकचे सुमारे 25% प्रमाण असते. नव्या तंत्रज्ञानामुळे जवळपास 76% कचरा प्लॅस्टिकचे वापरायोग्य साहित्यामध्ये रुपांतरित केले जाऊ शकते.





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