करेंट अफेयर्स 30 मे 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
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म्हणूनच भारत आण्विक पुरवठादार गटात (NSG) प्रवेश घेण्यासाठी जून आणि डिसेंबरमध्ये होणार्या NSG च्या बैठकीत पुन्हा एकदा दावा करणार आहे.
NSG सदस्यत्वाचे महत्त्व
अणुऊर्जा हा स्वच्छ वीज निर्मिती क्षेत्रातला एक सर्वोत्तम पर्याय आहे. विकासात्मक वाटचाल करताना निर्माण होणारी विजेची गरज पूर्ण करण्यासाठी भारताला भविष्यात अणुऊर्जेची गरज भासणार आहे. त्यासाठी अणुभट्ट्यांना लागणारे अणुइंधन, अणुतंत्रज्ञान परदेशातून आयात करावे लागणार आहे. भारताला NSG चे सदस्यत्व मिळाल्यास देशाला आपल्या आण्विक गरजा पूर्ण करण्यास मदत मिळणार.
NSG चे सदस्यत्त्व मिळाल्यानंतर भारताची आंतरराष्ट्रीय पातळीवरील विश्वासार्हता वाढणार.
आण्विक पुरवठादार गट (NSG) बाबत
आण्विक पुरवठादार गट (NSG) हा प्रामुख्याने आण्विक शस्त्रास्त्रे, इतर आण्विक सामुग्री यांच्या जागतिक व्यापाराला नियंत्रित करणारा गट आहे. आण्विक व्यापारावर या गटाचे सर्वोच्च नियंत्रण असते.
आण्विक व्यापारामधून प्रत्येक देशात अणुइंधनाचा विकास करण्यासाठी अणुभट्ट्यांचा विकास करावा लागतो. अणुभट्ट्यांसाठी अणुइंधन, अणुतंत्रज्ञान आणि संबंधित सुटे भाग यांची गरज असते. या सर्व गोष्टींच्या व्यापारावर नियंत्रण ठेवण्याचे काम हा गट करतो.
आण्विक पुरवठादार गट (NSG) याची स्थापना 1974 साली करण्यात आली आणि या गटाच्या निर्मितीसाठी भारत कारणीभूत ठरला होता. 1974 साली भारताने पहिली अणुचाचणी घेतली. त्यासाठी भारताला झालेल्या आण्विक साहित्याच्या पुरवठ्याच्या पार्श्वभूमीवर या गटाची निर्मिती झाली.
आण्विक साहित्याचा वापर दुहेरी पद्धतीने होऊ शकतो. उदाहरणार्थ, युरेनियम हा अणुइंधनाचा भाग आहे. युरेनिअमचा वापर विकासात्मक अणुऊर्जा तयार करण्यासाठीही होऊ शकतो आणि अण्वस्त्र निर्मितीसाठीही होऊ शकतो. अश्या कोणत्याही विनाशक परिस्थितीला टाळण्यासाठी आण्विक साधनसामग्रीच्या वापरावर आणि इतर सर्वच गोष्टींवर नियंत्रण ठेवण्यासाठी या गटाची निर्मिती केली गेली. त्यानुसार ज्या देशांनी NPT करारावर सह्या केल्या आहेत, केवळ त्याच देशांना या गटाचे सदस्यत्व देण्याचे ठरवले गेले.
भारताचे प्रयत्न
भारताने आत्तापर्यंत कोणत्याही देशाला आण्विक तंत्रज्ञान विकलेले नाही किंवा आण्विक क्षेपणास्त्रे दिलेली नाहीत. तसेच आत्तापर्यंत कोणत्याही देशाला आण्विक हल्ल्याची धमकीही दिलेली नाही.
जगात या प्रकारचे चार प्रमुख गट आहेत. आण्विक पुरवठादार गट (NSG), क्षेपणास्त्र तंत्रज्ञान नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), ऑस्ट्रेलिया गट, पारंपारिक शस्त्रे आणि दुहेरी वापराची सामुग्री आणि तंत्रज्ञान यांच्या निर्यात नियंत्रणासाठीची वासेनर व्यवस्था हे सर्व आण्विक, जैविक आणि रासायनिक शस्त्रास्त्रांचा विकास आणि त्यासाठी वापरल्या जाणार्या तंत्रज्ञानाचा प्रसार यासंदर्भात सर्व बाबींना नियंत्रित करतात.
ऑस्ट्रेलिया गट (1985 साली स्थापित), MTCR (1987 साली स्थापित) आणि वासेनर व्यवस्था (1996 साली स्थापित) या गटांमध्ये आता भारताचा समावेश झालेला आहे. NSG मध्ये सहभागी झाल्यानंतर, भारत या चारही समूहाचे सदस्यत्व मिळवणारा देश एक जबाबदार अण्वस्त्रधारी देश म्हणून जागतिक अधिमान्यता मिळवू शकतो.
अद्याप भारताने 1970 सालाच्या अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणारी संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) आणि 1996 सालाच्या व्यापक अणु-चाचणी बंदी करार (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) या दोन्ही आंतरराष्ट्रीय करारांवर स्वाक्षर्या केलेल्या नाहीत. या करारांवर स्वाक्षर्या करणारे देशच जबाबदार अण्वस्रधारी देश असल्याचे मानले जातात आणि त्यांनाच NSG चे सदस्यत्व दिले जाऊ शकते, अशी आंतरराष्ट्रीय भूमिका आहे.
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भारत के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होना क्यों महत्वपूर्ण है?
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने की दिशा में भारत कई वर्षों से प्रयासरत है। हाल ही में भारत को निर्यात नियंत्रक संगठन ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का सदस्य चुना गया है। वहीं इससे पहले हिंदुस्तान दो अन्य संस्थाओं वासेनार अरेंजमेंट व मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का क्लब मेंबर भी बन चुका है।
एनएसजी में शामिल होने के लिए भारत कई देशों से संवाद स्थापित कर रहा है। अधिकतर देशों ने भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए सहयोग देने का वचन दिया है।
भारत के लिए क्यों आवश्यक है एनएसजी की सदस्यता?
भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु करार किया है। ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ परमाणु करार की बातचीत चल रही है। फ्रांसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं अमेरिकी कंपनियां गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में है।
एनएसजी की सदस्यता हासिल करने से भारत परमाणु तकनीक और यूरेनियम बिना किसी विशेष समझौते के हासिल कर सकेगा। परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह जरूरी है कि भारत को एनएसजी में प्रवेश मिले।
भारत ने जैविक ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 40 फीसदी पूरा करने का संकल्प लिया हुआ है। ऐसे में उस पर अपनी परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का दबाव है, और यह तभी संभव हो सकेगा, जब उसे एनएसजी की सदस्यता मिले।
तकनीक तक पहुंच के बाद भारत परमाणु ऊर्जा यंत्रों का वाणिज्यिक उत्पादन भी कर सकता है. इससे देश में नवोन्मेष और उच्च तकनीक के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा, जिसके आर्थिक और रणनीतिक लाभ हो सकते हैं। परमाणु उद्योग का विस्तार ‘मेक इन इंडिया’ के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को नयी ऊंचाई दे सकता है।
क्या है न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप?
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी परमाणु अपूर्तिकर्ता देशों का समूह है, जो परमाणु हथियार बनाने में सहायक हो सकनेवाली वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को नियंत्रित कर परमाणु प्रसार को रोकने की कोशिश करता है।
भारत द्वारा मई, 1974 में किये गये पहले परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया में इस समूह के गठन का विचार पैदा हुआ था और इसकी पहली बैठक नवंबर, 1975 में हुई थी। इस परीक्षण से यह संकेत गया था कि असैनिक परमाणु तकनीक का उपयोग हथियार बनाने में भी किया जा सकता है।
ऐसे में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों को परमाण्विक वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई। ऐसा समूह बनाने का एक लाभ यह भी था कि फ्रांस जैसे देशों को भी इसमें शामिल किया जा सकता था, जो परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु निर्यात समिति में नहीं थे।
प्रारंभ में एनसीजी के सात संस्थापक सदस्य देश थे- कनाडा, वेस्ट जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका। फिलहाल इसमें 48 देश शामिल हैं। चीन इस समूह में 2004 में शामिल हुआ था।
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने की दिशा में भारत कई वर्षों से प्रयासरत है। हाल ही में भारत को निर्यात नियंत्रक संगठन ऑस्ट्रेलिया ग्रुप का सदस्य चुना गया है। वहीं इससे पहले हिंदुस्तान दो अन्य संस्थाओं वासेनार अरेंजमेंट व मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का क्लब मेंबर भी बन चुका है।
एनएसजी में शामिल होने के लिए भारत कई देशों से संवाद स्थापित कर रहा है। अधिकतर देशों ने भारत की एनएसजी सदस्यता के लिए सहयोग देने का वचन दिया है।
भारत के लिए क्यों आवश्यक है एनएसजी की सदस्यता?
भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु करार किया है। ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ परमाणु करार की बातचीत चल रही है। फ्रांसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं अमेरिकी कंपनियां गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में है।
एनएसजी की सदस्यता हासिल करने से भारत परमाणु तकनीक और यूरेनियम बिना किसी विशेष समझौते के हासिल कर सकेगा। परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह जरूरी है कि भारत को एनएसजी में प्रवेश मिले।
भारत ने जैविक ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 40 फीसदी पूरा करने का संकल्प लिया हुआ है। ऐसे में उस पर अपनी परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का दबाव है, और यह तभी संभव हो सकेगा, जब उसे एनएसजी की सदस्यता मिले।
तकनीक तक पहुंच के बाद भारत परमाणु ऊर्जा यंत्रों का वाणिज्यिक उत्पादन भी कर सकता है. इससे देश में नवोन्मेष और उच्च तकनीक के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा, जिसके आर्थिक और रणनीतिक लाभ हो सकते हैं। परमाणु उद्योग का विस्तार ‘मेक इन इंडिया’ के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को नयी ऊंचाई दे सकता है।
क्या है न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप?
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी परमाणु अपूर्तिकर्ता देशों का समूह है, जो परमाणु हथियार बनाने में सहायक हो सकनेवाली वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को नियंत्रित कर परमाणु प्रसार को रोकने की कोशिश करता है।
भारत द्वारा मई, 1974 में किये गये पहले परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया में इस समूह के गठन का विचार पैदा हुआ था और इसकी पहली बैठक नवंबर, 1975 में हुई थी। इस परीक्षण से यह संकेत गया था कि असैनिक परमाणु तकनीक का उपयोग हथियार बनाने में भी किया जा सकता है।
ऐसे में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों को परमाण्विक वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई। ऐसा समूह बनाने का एक लाभ यह भी था कि फ्रांस जैसे देशों को भी इसमें शामिल किया जा सकता था, जो परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु निर्यात समिति में नहीं थे।
प्रारंभ में एनसीजी के सात संस्थापक सदस्य देश थे- कनाडा, वेस्ट जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका। फिलहाल इसमें 48 देश शामिल हैं। चीन इस समूह में 2004 में शामिल हुआ था।
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आण्विक पुरवठादार गटात सहभागी होणे भारतासाठी का महत्त्वाचे आहे?
एक जबाबदार अण्वस्त्रधारी देश म्हणून देशाची प्रतिमा भक्कम करण्याच्या प्रयत्नात भारत आहे. त्यासाठी गेल्या काही वर्षांपासून भारत आण्विक पुरवठादार गट (Nuclear Supplier Group -NSG) याचा सदस्य होण्यासाठी प्रयत्नशील आहे.म्हणूनच भारत आण्विक पुरवठादार गटात (NSG) प्रवेश घेण्यासाठी जून आणि डिसेंबरमध्ये होणार्या NSG च्या बैठकीत पुन्हा एकदा दावा करणार आहे.
NSG सदस्यत्वाचे महत्त्व
अणुऊर्जा हा स्वच्छ वीज निर्मिती क्षेत्रातला एक सर्वोत्तम पर्याय आहे. विकासात्मक वाटचाल करताना निर्माण होणारी विजेची गरज पूर्ण करण्यासाठी भारताला भविष्यात अणुऊर्जेची गरज भासणार आहे. त्यासाठी अणुभट्ट्यांना लागणारे अणुइंधन, अणुतंत्रज्ञान परदेशातून आयात करावे लागणार आहे. भारताला NSG चे सदस्यत्व मिळाल्यास देशाला आपल्या आण्विक गरजा पूर्ण करण्यास मदत मिळणार.
NSG चे सदस्यत्त्व मिळाल्यानंतर भारताची आंतरराष्ट्रीय पातळीवरील विश्वासार्हता वाढणार.
आण्विक पुरवठादार गट (NSG) बाबत
आण्विक पुरवठादार गट (NSG) हा प्रामुख्याने आण्विक शस्त्रास्त्रे, इतर आण्विक सामुग्री यांच्या जागतिक व्यापाराला नियंत्रित करणारा गट आहे. आण्विक व्यापारावर या गटाचे सर्वोच्च नियंत्रण असते.
आण्विक व्यापारामधून प्रत्येक देशात अणुइंधनाचा विकास करण्यासाठी अणुभट्ट्यांचा विकास करावा लागतो. अणुभट्ट्यांसाठी अणुइंधन, अणुतंत्रज्ञान आणि संबंधित सुटे भाग यांची गरज असते. या सर्व गोष्टींच्या व्यापारावर नियंत्रण ठेवण्याचे काम हा गट करतो.
आण्विक पुरवठादार गट (NSG) याची स्थापना 1974 साली करण्यात आली आणि या गटाच्या निर्मितीसाठी भारत कारणीभूत ठरला होता. 1974 साली भारताने पहिली अणुचाचणी घेतली. त्यासाठी भारताला झालेल्या आण्विक साहित्याच्या पुरवठ्याच्या पार्श्वभूमीवर या गटाची निर्मिती झाली.
आण्विक साहित्याचा वापर दुहेरी पद्धतीने होऊ शकतो. उदाहरणार्थ, युरेनियम हा अणुइंधनाचा भाग आहे. युरेनिअमचा वापर विकासात्मक अणुऊर्जा तयार करण्यासाठीही होऊ शकतो आणि अण्वस्त्र निर्मितीसाठीही होऊ शकतो. अश्या कोणत्याही विनाशक परिस्थितीला टाळण्यासाठी आण्विक साधनसामग्रीच्या वापरावर आणि इतर सर्वच गोष्टींवर नियंत्रण ठेवण्यासाठी या गटाची निर्मिती केली गेली. त्यानुसार ज्या देशांनी NPT करारावर सह्या केल्या आहेत, केवळ त्याच देशांना या गटाचे सदस्यत्व देण्याचे ठरवले गेले.
भारताचे प्रयत्न
भारताने आत्तापर्यंत कोणत्याही देशाला आण्विक तंत्रज्ञान विकलेले नाही किंवा आण्विक क्षेपणास्त्रे दिलेली नाहीत. तसेच आत्तापर्यंत कोणत्याही देशाला आण्विक हल्ल्याची धमकीही दिलेली नाही.
जगात या प्रकारचे चार प्रमुख गट आहेत. आण्विक पुरवठादार गट (NSG), क्षेपणास्त्र तंत्रज्ञान नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), ऑस्ट्रेलिया गट, पारंपारिक शस्त्रे आणि दुहेरी वापराची सामुग्री आणि तंत्रज्ञान यांच्या निर्यात नियंत्रणासाठीची वासेनर व्यवस्था हे सर्व आण्विक, जैविक आणि रासायनिक शस्त्रास्त्रांचा विकास आणि त्यासाठी वापरल्या जाणार्या तंत्रज्ञानाचा प्रसार यासंदर्भात सर्व बाबींना नियंत्रित करतात.
ऑस्ट्रेलिया गट (1985 साली स्थापित), MTCR (1987 साली स्थापित) आणि वासेनर व्यवस्था (1996 साली स्थापित) या गटांमध्ये आता भारताचा समावेश झालेला आहे. NSG मध्ये सहभागी झाल्यानंतर, भारत या चारही समूहाचे सदस्यत्व मिळवणारा देश एक जबाबदार अण्वस्त्रधारी देश म्हणून जागतिक अधिमान्यता मिळवू शकतो.
अद्याप भारताने 1970 सालाच्या अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणारी संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) आणि 1996 सालाच्या व्यापक अणु-चाचणी बंदी करार (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) या दोन्ही आंतरराष्ट्रीय करारांवर स्वाक्षर्या केलेल्या नाहीत. या करारांवर स्वाक्षर्या करणारे देशच जबाबदार अण्वस्रधारी देश असल्याचे मानले जातात आणि त्यांनाच NSG चे सदस्यत्व दिले जाऊ शकते, अशी आंतरराष्ट्रीय भूमिका आहे.
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