करेंट अफेयर्स २६ एप्रिल २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
परमाणु युद्ध का बढ़ता खतरा:
The Rising threat of Nuclear War ।अणुयुद्धचा वाढता धोका
"जगात भौगोलिक-राजकीय वातावरण सतत खालावलेले आहे. अण्वस्त्रांची गरज आणि उपयुक्ततांबद्दलचे वक्तृत्व वाढत आहे. अण्वस्त्र धारक देशांकडून आधुनिकीकरण कार्यक्रम मोठ्या प्रमाणात राबवले जात आहेत आणि एक नवी शस्त्रास्त्रस्पर्धा पाहायला मिळत आहे.”
डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (DPRK) किंवा उत्तर कोरियाने आपल्या आंतरखंडीय लक्ष्यभेदी क्षेपणास्त्र कार्यक्रम आणि अण्वस्त्र चाचण्या थांबविण्यात आल्याच्या अलीकडील घोषानेनंतर ही बैठक घेतली गेली.
अण्वस्त्रांसंदर्भात झालेले वैश्विक करार
1970 साली अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणारी संधि (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons -NPT) प्रभावी करण्यात आली. अण्वस्त्रे आणि त्यासंबंधी तंत्रज्ञानाचा प्रसार होण्यास प्रतिबंध करण्याच्या उद्देशाने तसेच अणुऊर्जेचा शांतीपूर्ण वापर करण्यास सहकार्य करण्यासंबंधी हा आंतरराष्ट्रीय करार आहे. अमेरिका, रशिया, ब्रिटन, फ्रान्स, आणि चीन या संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषदेच्या (UNSC) पाच कायमस्वरूपी सदस्यांनी पहिल्यांदा NPT करार मान्य केला.
1996 साली व्यापक अणु-चाचणी बंदी करार (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) आणण्यात आला. हे अण्वस्त्रांच्या चाचणीसंदर्भात असलेल्या सर्व प्रकारांचा शेवट करण्यासाठी तयार करण्यात आलेले एक आंतरराष्ट्रीय साधन आहे.
7 जुलै 2017 रोजी संयुक्त राष्ट्रसंघाच्या परिषदेत अण्वस्त्रांवर बंदी घालणार्या जागतिक कराराला अंगिकारले गेले. हे अण्वस्त्रांवर बंदी घालण्यासाठीचे गेल्या 20 वर्षातील पहिले बहुपक्षीय कायदेशीर बंधनकारक दस्तऐवज आहे. अण्वस्त्रांसंबंधी निर्मिती, चाचणी, उत्पादन, खरेदी, ताबा किंवा इतर आण्विक स्फोटक साधने अश्या कोणत्याही कृत्यावर बंदी घालण्यात आली आहे.
शिवाय अण्वस्त्रांच्या जगभरातून पुर्णपणे निर्मूलनाच्या उद्देशाने 26 सप्टेंबर 2013 रोजी संयुक्त राष्ट्रसंघाच्या आमसभेत अंगिकारलेल्या ठरावानुसार दरवर्षी 26 सप्टेंबरला अण्वस्त्रांच्या संपूर्ण निर्मूलनासाठी आंतरराष्ट्रीय दिवस(International Day for the Total Elimination of Nuclear Weapons) पाळला जातो.
परमाणु युद्ध का बढ़ता खतरा:
The Rising threat of Nuclear War ।अणुयुद्धचा वाढता धोका
हिंदी
परमाणु युद्ध का बढ़ता खतरा:
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व परमाणु हमले के खतरे के अत्यंत करीब दिखाई दे रहा है। 1950 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शुरू हुई परमाणु हथियारों की होड़ अब उस बिंदु पर पहुँच गयी है जहाँ विश्व के 6 से अधिक देशों के परमाणु हथियारों का जखीरा है।
निरस्त्रीकरण मामलों में संयुक्त राष्ट्र की उच्च प्रतिनिधि, सुश्री इजूमी नाकामित्सू, 2020 एनपीटी समीक्षा सम्मेलन के लिए जेनेवा में शुरू हुई प्रारंभिक बैठक के उद्घाटन के दौरान वक्ताओं में से एक थीं।
नाकामित्सू ने इस अवसर पर कहा कि "दुनिया को आज के संदर्भ में उन समान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा जिसने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को जन्म दिया, और इसके साथ ही परमाणु हथियारों के उपयोग का खतरा बढ़ रहा है।"
उन्होंने आगे कहा कि जियोपॉलिटिकल वातावरण बिगड़ रहा है। हमारे सामूहिक सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों और समझौतों को नष्ट कर दिया जा रहा है। परमाणु हथियारों की आवश्यकता और उपयोगिता को व्यर्थ का बढ़ावा दिया जा रहा है।
परमाणु अप्रसार संधि:
परमाणु अप्रसार संधि का उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। जुलाई 1968 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ था। और वर्ष 1970 में शीत युद्ध के चरमोत्कर्ष पर यह संधि लागू हो गयी थी।
यह संधि परमाणु हथियारों के क्षैतिज प्रसार पर रोक लगाती है। इसके अनुच्छेद 1 और 2 के अंतर्गत परमाणु शक्ति संपन्न देश गैर-परमाणु शक्ति वाले देशों को परमाणु अस्त्र प्राप्त करने में सहायता नहीं दे सकते हैं तथा गैर-परमाणु शक्ति संपन्न देश परमाणु अस्त्र प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
इस संधि का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य परमाणु अस्त्रों के ऊर्ध्वगामी प्रसार की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना है।
कई देश एनपीटी पर हस्ताक्षर करने के बावजूद अभी भी अपने परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण करते हैं और इसे अपने केंद्रीय रक्षा तंत्र के रूप में रखते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 5 सदस्य एनपीटी की पार्टी हैं, लेकिन फिर भी वे अपने परमाणु शस्त्रागारों का भंडारण और आधुनिकीकरण करते रहते हैं।
भारत, पाकिस्तान और इज़राइल ने कभी भी एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इज़राइल जो कभी भी अपने पास परमाणु हथियारों के होने को स्वीकार नहीं करता है, ऐसा माना जाता है कि वो भी इन हथियारों का भण्डारण करता है।
हाल ही में ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब में एनपीटी संधि से बाहर निकलने की धमकी दी है। इसी तरह, उत्तरी कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम ने पूर्वी एशिया में शांति के लिए खतरा उत्पन्न किया है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व परमाणु हमले के खतरे के अत्यंत करीब दिखाई दे रहा है। 1950 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शुरू हुई परमाणु हथियारों की होड़ अब उस बिंदु पर पहुँच गयी है जहाँ विश्व के 6 से अधिक देशों के परमाणु हथियारों का जखीरा है।
निरस्त्रीकरण मामलों में संयुक्त राष्ट्र की उच्च प्रतिनिधि, सुश्री इजूमी नाकामित्सू, 2020 एनपीटी समीक्षा सम्मेलन के लिए जेनेवा में शुरू हुई प्रारंभिक बैठक के उद्घाटन के दौरान वक्ताओं में से एक थीं।
नाकामित्सू ने इस अवसर पर कहा कि "दुनिया को आज के संदर्भ में उन समान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा जिसने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को जन्म दिया, और इसके साथ ही परमाणु हथियारों के उपयोग का खतरा बढ़ रहा है।"
उन्होंने आगे कहा कि जियोपॉलिटिकल वातावरण बिगड़ रहा है। हमारे सामूहिक सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों और समझौतों को नष्ट कर दिया जा रहा है। परमाणु हथियारों की आवश्यकता और उपयोगिता को व्यर्थ का बढ़ावा दिया जा रहा है।
परमाणु अप्रसार संधि:
परमाणु अप्रसार संधि का उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। जुलाई 1968 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ था। और वर्ष 1970 में शीत युद्ध के चरमोत्कर्ष पर यह संधि लागू हो गयी थी।
यह संधि परमाणु हथियारों के क्षैतिज प्रसार पर रोक लगाती है। इसके अनुच्छेद 1 और 2 के अंतर्गत परमाणु शक्ति संपन्न देश गैर-परमाणु शक्ति वाले देशों को परमाणु अस्त्र प्राप्त करने में सहायता नहीं दे सकते हैं तथा गैर-परमाणु शक्ति संपन्न देश परमाणु अस्त्र प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
इस संधि का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य परमाणु अस्त्रों के ऊर्ध्वगामी प्रसार की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना है।
कई देश एनपीटी पर हस्ताक्षर करने के बावजूद अभी भी अपने परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण करते हैं और इसे अपने केंद्रीय रक्षा तंत्र के रूप में रखते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 5 सदस्य एनपीटी की पार्टी हैं, लेकिन फिर भी वे अपने परमाणु शस्त्रागारों का भंडारण और आधुनिकीकरण करते रहते हैं।
भारत, पाकिस्तान और इज़राइल ने कभी भी एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इज़राइल जो कभी भी अपने पास परमाणु हथियारों के होने को स्वीकार नहीं करता है, ऐसा माना जाता है कि वो भी इन हथियारों का भण्डारण करता है।
हाल ही में ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब में एनपीटी संधि से बाहर निकलने की धमकी दी है। इसी तरह, उत्तरी कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम ने पूर्वी एशिया में शांति के लिए खतरा उत्पन्न किया है।
इंग्लिश
The Rising threat of Nuclear War
The world seems close to the threat of nuclear use, according to the report published by United Nations. The nuclear arms race initially started between the USA and USSR in the 1950s have come to a point where more than 6 countries are supposed to have nuclear weapons.
Ms. Nakamitsu, the UN High Representative for Disarmament Affairs, was among the speakers at the opening of the preparatory meeting that began today in Geneva for the 2020 NPT review conference.
Nuclear Proliferation Treaty
NPT came into force in 1970 at the height of the Cold War and.
The NPT is a multilateral treaty aimed at limiting the spread of nuclear weapons including three elements: (1) non-proliferation, (2) disarmament, and (3) peaceful use of nuclear energy. These elements constitute a “grand bargain” between the five nuclear weapon states and the non-nuclear weapon states.
- States without nuclear weapons will not acquire them.
- States with nuclear weapons will pursue disarmament.
- All states can access nuclear technology for peaceful purposes, under safeguards.
Despite countries signing the NPT they still modernise their nuclear stocks and keep it as their central defence mechanism. All 5 members of UN Security Council are party of NPT but still they keep stockpiling and modernising their nuclear arsenals.
India, Pakistan and Israel have never signed the NPT. Israel which never acknowledged having nuclear weapons is supposedly understood as having it.
Recently, Iran has threatened to scrap the NPT deal if USA continues its sanctions. Similarly, North Korea’s missile program has threatened the peace in East Asia.
Nuclear arms proved a crucial element during the Cold War period as both parties (USA and USSR) refrained from using it as there will be a mutual destruction. However, now more than 7 countries are having nuclear weapons and it becomes difficult to manage.
मराठी
अणुयुद्धचा वाढता धोका
2020 अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणार्या संधि (NPT) आढावा परिषदेसाठी देशांची तयारी बघण्याकरिता जिनेव्हामध्ये पार पडलेल्या सत्रात संयुक्त राष्ट्रसंघाचे अंडर-महासचिव आणि UNच्या शस्त्रसंन्यास कल्याण विभागाचे उच्च प्रतिनिधी इझूमी नाकामित्सू यांनी असे वक्तव्य केले की, “आज जगाला अश्या आव्हानांना तोंड द्यावे लागत आहे, ज्याने अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणार्या संधिला (NPT) जन्म दिला होता आणि अण्वस्त्रांच्या वापराचा धोका वाढत आहे.”"जगात भौगोलिक-राजकीय वातावरण सतत खालावलेले आहे. अण्वस्त्रांची गरज आणि उपयुक्ततांबद्दलचे वक्तृत्व वाढत आहे. अण्वस्त्र धारक देशांकडून आधुनिकीकरण कार्यक्रम मोठ्या प्रमाणात राबवले जात आहेत आणि एक नवी शस्त्रास्त्रस्पर्धा पाहायला मिळत आहे.”
डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (DPRK) किंवा उत्तर कोरियाने आपल्या आंतरखंडीय लक्ष्यभेदी क्षेपणास्त्र कार्यक्रम आणि अण्वस्त्र चाचण्या थांबविण्यात आल्याच्या अलीकडील घोषानेनंतर ही बैठक घेतली गेली.
अण्वस्त्रांसंदर्भात झालेले वैश्विक करार
1970 साली अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणारी संधि (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons -NPT) प्रभावी करण्यात आली. अण्वस्त्रे आणि त्यासंबंधी तंत्रज्ञानाचा प्रसार होण्यास प्रतिबंध करण्याच्या उद्देशाने तसेच अणुऊर्जेचा शांतीपूर्ण वापर करण्यास सहकार्य करण्यासंबंधी हा आंतरराष्ट्रीय करार आहे. अमेरिका, रशिया, ब्रिटन, फ्रान्स, आणि चीन या संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषदेच्या (UNSC) पाच कायमस्वरूपी सदस्यांनी पहिल्यांदा NPT करार मान्य केला.
1996 साली व्यापक अणु-चाचणी बंदी करार (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) आणण्यात आला. हे अण्वस्त्रांच्या चाचणीसंदर्भात असलेल्या सर्व प्रकारांचा शेवट करण्यासाठी तयार करण्यात आलेले एक आंतरराष्ट्रीय साधन आहे.
7 जुलै 2017 रोजी संयुक्त राष्ट्रसंघाच्या परिषदेत अण्वस्त्रांवर बंदी घालणार्या जागतिक कराराला अंगिकारले गेले. हे अण्वस्त्रांवर बंदी घालण्यासाठीचे गेल्या 20 वर्षातील पहिले बहुपक्षीय कायदेशीर बंधनकारक दस्तऐवज आहे. अण्वस्त्रांसंबंधी निर्मिती, चाचणी, उत्पादन, खरेदी, ताबा किंवा इतर आण्विक स्फोटक साधने अश्या कोणत्याही कृत्यावर बंदी घालण्यात आली आहे.
शिवाय अण्वस्त्रांच्या जगभरातून पुर्णपणे निर्मूलनाच्या उद्देशाने 26 सप्टेंबर 2013 रोजी संयुक्त राष्ट्रसंघाच्या आमसभेत अंगिकारलेल्या ठरावानुसार दरवर्षी 26 सप्टेंबरला अण्वस्त्रांच्या संपूर्ण निर्मूलनासाठी आंतरराष्ट्रीय दिवस(International Day for the Total Elimination of Nuclear Weapons) पाळला जातो.
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