Hindi
‘वर्ल्ड इकोनोमिक सिचुएशन एंड प्रोस्पेक्ट 2018’ रिपोर्ट जारी:
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 11 दिसंबर 2017 को एक रिपोर्ट में कहा कि जबर्दस्त निजी उपभोग, सार्वजनिक निवेश और संरचनात्मक सुधारों के कारण 2018 में भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत होगी जबकि 2019 में यह बढ़कर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी।
‘वर्ल्ड इकोनोमिक सिचुएशन एंड प्रोस्पेक्ट 2018’ रिपोर्ट जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) ने कहा है कि कुल मिलाकर दक्षिण एशिया के लिए आर्थिक परिदृश्य बहुत अनुकूल नजर आ रहा है और उल्लेखनीय मध्यम अवधि की चुनौतियों के बावजूद अल्पावधि के लिए स्थिर है।
रिपोर्ट से जुड़े प्रमुख तथ्य:
रिपोर्ट के अनुसार, उपभोक्ता खपत व सार्वजनिक निवेश बढ़ने और नियोजित तरीके से चलाये जा रहे आर्थिक सुधारों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर को रफ्तार मिल सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, आम लोगों की बेहतर मांग और अर्थव्यवस्था संबंधी मजबूत नीतियों के चलते आर्थिक हालात अच्छे हैं। इस क्षेत्र के कई देशों में मौद्रिक नीति उदार हैं और बुनियादी क्षेत्रों में निवेश पर खासा जोर दिया जा रहा है तथा बाहरी मांग बढ़ने से भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिल रही है।
इसके साथ ही साथ भारत के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल के शुरू में सुस्ती और नोटबंदी के असर के बावजूद अब संभावनाएं सकारात्मक हैं। सरकार आर्थिक सुधारों पर आगे बढ़ रही है। इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
यूएन ने भारत को राजकोषीय घाटे से संबंधित रिपोर्ट भी दी है इसमें कहा गया है कि 2018 में भारत का राजकोषीय घाटा 3.2 तक रह जाएगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2018 में भारत में मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी और 201 9 में 4.8फीसदी होगी। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की मध्यम अवधि के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-आधारित (सीपीआई-आधारित) मुद्रास्फ़ीति का लक्ष्य 4 फीसदी का है।
केंद्रीय बैंक ने अपनी 6 दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में अपनी दूसरी छमाही की मुद्रास्फीति की अनुमान सीमा को बढ़ाकर 4.3 से 4.7% कर दिया है।
टिप्पणी:
हालांकि भारत में निजी निवेश की धीमी रफ्तार चिंता का विषय है। वर्ष 2017 में जीडीपी के मुकाबले ग्र्रॉस फिक्स्ड कैपिटल निर्माण 30 फीसद रह गया जबकि यह आंकड़ा 2010 में 40 फीसद पर था। बैंकिंग व कॉरपोरेट क्षेत्र बैलेंस शीट में समस्याओं से जूझ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे में कुल निवेश बढ़ाने के लिए बुनियादी क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश अत्यंत अहम है।
संयुक्त राष्ट्र से पहले रेटिंग एजेंसी मूडीस और ब्रोकिंग हाउस गोल्डमैन सॉक्स ने भी भारत की अर्थव्यवस्था में मजबूती आने की संभावना जताई है।
English
World Economic Situation and Prospects 2018 report released
World Economic Situation and Prospects 2018 report launched on 11th December 2017, in New York. The World Economic Situation and Prospects 2018 demonstrates that current macroeconomic conditions offer policy-makers greater scope to address some of the deep-rooted issues that continue to hamper progress towards the Sustainable Development Goals.
World Economic Situation and Prospects report:
The World Economic Situation and Prospects report is the UN’s flagship publication on expected trends in the global economy. WESP is produced annually by the UN Department of Economic and Social Affairs (DESA) in collaboration with the UN Conference on Trade and Development
Report of 2017:
According to the report, in 2017, world economic growth has reached 3 per cent the highest growth since 2011, as crisis-related fragilities and the adverse effects of other recent shocks subside. The improvement is widespread, with roughly two-thirds of countries worldwide experiencing stronger growth in 2017 than in the previous year. Global growth is expected to remain steady at 3.0 per cent in 2018 and 2019. In 2017, East and South Asia accounted for nearly half of global growth, with China alone contributing about one-third.
Highlights of Report 2018:
- The upturn in global growth is a welcome sign of a healthier economy, it is important to remember that this may come at an environmental cost.
- The report highlights four areas where the improved macroeconomic situation opens the way for policy to address these challenges: increasing economic diversification, reducing inequality, supporting long-term investment and tackling institutional deficiencies.
- The report notes that reorienting policy to address these challenges can generate stronger investment and productivity, higher job creation and more sustainable medium-term economic growth.
- The report found that very few least developed countries (LDCs) are expected to reach the Sustainable Development Goal target for GDP growth of “at least 7 per cent” in the near term.
Inclusive Growth:
The recent improvements in economic conditions, however, have been unevenly distributed across countries and regions. Negligible growth in per capita income is expected in several parts of Africa, Western Asia and PRESS RELEASE Embargoed until Monday, 11:00 am EST 11 December 2017 Issued by the UN Department of Public Information Latin America and the Caribbean in 2017–2019.
Environmental sustainability:
Preliminary estimates suggest that the level of global energy-related CO2 emissions increased in 2017 after remaining flat for three consecutive years. The frequency of weather-related shocks continues to increase, also highlighting the urgent need to build resilience against climate change and prioritize environmental protection.
Addressing financial challenges:
The report suggests that a new financial framework for sustainable finance should be created in alignment with the 2030 Agenda and the Addis Ababa Action Agenda that would shift the focus from short term profit to long term value creation. Regulatory policies for the financial system, well coordinated with monetary, fiscal and foreign exchange policies, should support this framework, by promoting a stable global financial environment.
Marathi
UN चा ‘जागतिक आर्थिक स्थिती आणि संभाव्यता 2018’ अहवाल जाहीर
संयुक्त राष्ट्रसंघाने ‘जागतिक आर्थिक स्थिती आणि संभाव्यता 2018’ अहवाल प्रसिद्ध केला आहे.
एकूणच परिस्थिती
भारत
- भारतीय अर्थव्यवस्थेचा वृद्धीदर वर्ष 2017 मध्ये 6.7% आहे, तर वर्ष 2018 मध्ये 7.2% आणि वर्ष 2019 मध्ये 7.4% इतका असेल.
- भारतामधील महागाई दर वर्ष 2018 मध्ये 4.5% तर वर्ष 2019 मध्ये 4.8% राहील असा अंदाज आहे. RBI ने 6 डिसेंबरला आपल्या आथिर्क दराच्या दुसऱ्या सहामाहीत महागाईचा अंदाज किरकोळ प्रमाणात 4.3-4.7% एवढा वाढविला होता.
- काही औद्योगिक क्षेत्रांत कमी क्षमतेचा उपयोग आणि बँकिंग आणि कॉर्पोरेट क्षेत्रातील तुटपुंज्या समस्या या भारतीय अर्थव्यवस्थेला भेडसावणार्या अडचणी आहेत, तर पायाभूत सुविधांमध्ये सार्वजनिक गुंतवणूकीने एकंदर गुंतवणूकीत वाढ करण्यास प्राधान्य दिले आहे.
जागतिक
- जागतिक अर्थव्यवस्था आता मजबूत झाली आहे. वर्ष 2017 मध्ये, जागतिक आर्थिक वृद्धीदर 3% असा राहिला आहे, जी की 2011 सालापासूनची सर्वाधिक वाढ आहे आणि आगामी वर्षांमध्ये ही वाढ कायम राहण्याची शक्यता आहे.
- वर्ष 2017 ते वर्ष 2019 या दरम्यान जागतिक अर्थव्यवस्थेचा वृद्धीदर सरासरी 3% वार्षिक इतका राहण्याचा अंदाज आहे.
- वर्ष 2016 च्या तुलनेत जगभरातील दोन-तृतीयांश देशांमध्ये वर्ष 2017 मध्ये मजबूत वाढ झाली आहे. वर्ष 2017 मध्ये जागतिक आर्थिक हालचालीमधील वाढीच्या सुमारे 60% वाटा सकल निश्चित भांडवल निर्मितीचा आहे.
- वाढती मालमत्तेची किंमत, अपवादात्मकपणे कमी अस्थिरता आणि उदयोन्मुख अर्थव्यवस्थांकडे वाहती पोर्टफोलिओमधील पुनबांधणी अश्या बाबींसह जागतिक वित्तीय परिस्थिती 2017 साली सौम्य होती.
- सर्व विकसनशील क्षेत्रांमध्ये 2011 सालानंतर प्रथमच वर्ष 2017 मध्ये सकारात्मक श्रनिक उत्पादनक्षम वाढीची नोंद अपेक्षित आहे.
- जागतिक आर्थिक संकटानंतर प्रथमच जागतिक व्यापारामध्ये वेगाने वाढ होत असल्याचे दिसून आले आहे, जी की मुख्यतः पूर्व आशियामधील मजबूत आयात मागणीमुळे चालविली जात आहे.
- सर्व नवीन प्रस्थापित ऊर्जा क्षमतेत नविकरणीय ऊर्जेचा अर्ध्यापेक्षा अधिक वाटा आहे, परंतु केवळ जागतिक ऊर्जा उत्पादनाच्या 11.3% इतकेच आहे.
- आंतरराष्ट्रीय नौवहन व विमानचालन क्षेत्रातून उत्सर्जन दूषित वायू वाढतच गेले आहे आणि ते हवामान बदलासंबंधी पॅरिस कराराच्या कक्षेच्या बाहेर आहेत.
- वर्ष 2017 मध्ये सर्वाधिक तेजीत चीनचा 6.8% वृद्धीदर आहे, जी सहा वर्षांतली वार्षिक वाढीमधील पहिलीच घटना आहे.
- पूर्व आशिया, दक्षिण आशिया आणि पूर्व आफ्रिका या क्षेत्रात वर्ष 2018 आणि वर्ष 2019 मध्ये 5% पेक्षा जास्त वार्षिक वृद्धीदर कायम असेल. वर्ष 2017 मध्ये पूर्व आणि दक्षिण आशिया येथील वाढ ही जागतिक स्तराच्या तुलनेत जवळजवळ निम्मी आहे. पश्चिम आशियाची संभावना तेल बाजारपेठेच्या विकासामुळे आणि भौगोलिक-राजकीय कारकांमुळे चिंतेत राहिली आहे.
सुधारित जागतिक आर्थिक परिस्थितीमुळे, आता देशांना कमी कार्बन उत्सर्जनाने आर्थिक वाढ, कमी असमानता, आर्थिक विविधता आणि विकासातील अडथळ्यांना दूर करणे अश्या दीर्घकालीन समस्यांवर केंद्रित धोरण तयार करण्यासाठी संधी मिळत आहे. याशिवाय गुंतवणूक परिस्थितीत सुधारणा झाली आहे तसेच वर्ष 2017 मध्ये जागतिक आर्थिक बाजारपेठांमध्ये दाद देण्याजोगी लवचिकता आली आहे.
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