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    Thursday, April 5, 2018

    जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थाई प्रावधान नहीं: उच्चतम न्यायालय. Article 370 not a temporary provision: SC (History and Debate over Article 370). जम्मू-काश्मीरला विशेष दर्जा देणारे कलम 370 ही तात्पुरती तरतूद नाही: सर्वोच्च न्यायालय

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    जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थाई प्रावधान नहीं: उच्चतम न्यायालय
    उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थाई प्रावधान नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने अपने पूर्ववर्ती 2017 के फैसले के सरफेसी मामले में पहले ही यह स्थापित कर दिया है कि अनुच्छेद 370 कोई अस्थाई प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिस्टिर जनरल की मांग पर सुनवाई 3 सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है।
    जस्टिस एके गोयल और आरएफ नरिमन की खंडपीठ ने कहा कि इस संबंध में सरफेसी मामले में कोर्ट पहले ही दे चुका है। इस फैसले में कहा गया था कि अनुच्छेद 370 पर हेडनोट के बावजूद यह कोई अस्थाई प्रावधान नहीं है।
    जस्टिस एके गोयल और आरएफ नरीमन की पीठ कुमारी विजयालक्ष्मी झा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 11 अप्रैल, 2017 को अनुच्छेद 370 को अस्थायी प्रकृति की घोषित करने की उनकी अपील ठुकराए जाने के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया था।
    क्या है मामला?
    विजयाकुमारी झा ने अपनी याचिका में दावा किया था कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, जो वर्ष 1957 में संवैधानिक विधानसभा के भंग होने के साथ ही खत्म हो गया था।
    उन्होंने यह भी दावा किया कि जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक विधानसभा के भंग होने के बाद भी अस्थायी प्रावधान वाली अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के संविधान को भारत के राष्ट्रपति या भारत की संसद से स्वीकृति नहीं मिलने के बावजूद जारी रखना हमारे संविधान से धोखे के बराबर है।
    अनुच्छेद 370:
    अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दर्ज़ा) प्राप्त है। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह अनुच्छेद भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रहा है।
    भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था। स्वतन्त्र भारत के लिये कश्मीर का मुद्दा आज तक समस्या बना हुआ है।
    विशेष अधिकार:
    धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिये। इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।
    इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
    इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते।
    भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती। जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिये जा रहे हैं।
    पूर्ववर्ती फैसला:
    जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति हसनैन मसूदी व न्यायमूर्ति जनकराज कोतवाल की खंडपीठ ने व्यवस्था दी है कि राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 ने संविधान में स्थायी जगह हासिल कर ली है और इसे संशोधित नहीं किया जा सकता।
    अनुच्छेद 35 (ए) राज्य के कानूनों को संरक्षण प्रदान करता है। इसे हटाया या रद्द भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि देश की संविधान सभा ने 1957 में उसे भंग किए जाने से पहले इस अनुच्छेद को संशोधित करने या हटाए जाने की अनुशंसा नहीं की थी।



    Article 370 not a temporary provision: SC (History and Debate over Article 370)
    The Supreme Court in April 3 judgement said that Article 370 of the Constitution is not a temporary provision. Article 370 deals with the special status to Jammu & Kashmir. The special status enables the Jammu & Kashmir to have its own constitution and autonomy in various state affairs in comparison to other states.
    The article is drafted in the Part XXI of the Constitution: Temporary, Transitional and Special Provisions. That’s why, some confusion surface from time to time about its status.
    Provisions under the Art 370:
    • Except for Defense, Foreign Affairs, Finance and Communications, the Indian Government needs the State Government’s nod to apply all other laws.
    • The central government can’t impose financial emergency.
    • Indian nationals from other states can’t buy land or property.
    Brief History:
    • When Hari Singh declared Jammu and Kashmir independent in 1947, Pakistan immediately launched a guerrilla war to free the region, which had a majority of Muslims, from Hindu rule. The Maharaja, realising his inability to protect his territory, requested the Indian government for help. The Indian government insisted that Kashmir accede to India before it would send its army. The Maharaja agreed to the same and the Indian government and the Maharaja signed the accession (“the Instrument”) on October 26, 1947.
    • Importantly, Clause 5 of the Instrument said that it could not be altered without the state’s consent. Clause 7 specifically protected the state’s right to ratify the application of any future constitution of India in its territory.
    • Jammu and Kashmir, unlike the other princely states, was not willing to accept the Constitution of India and was adamant on acting only on the basis of the terms of Instrument, specifically Clause 7. Gopalaswami Ayyangar, a Minister without portfolio in Nehru’s government, moved the Bill for Article 370 in India’s Constituent Assembly.
    • Soon after India adopted its constitution, the National Conference’s leader Sheikh Abdullah, the interim Prime Minister of the state, called for independence from India. The government of India dismissed his government and placed him in preventive detention. Seven years after the Constitution of India was adopted, the Constitution of J&K came into full force.
    • Mr. Ayyangar had said in the Constituent Assembly that Article 370 is labeled a ‘temporary’ provision in order to keep the door open for the day when the state of Jammu and Kashmir would merge with India and fully accept the Constitution of India.
    Article 370 can be repealed or not
    The president may, by public notification declare the article null and void but only after the recommendation of the constituent assembly of the state (State govt. of J&K). However, the Indian parliament can take this right back from the state assembly through a constitutional amendment.

    जम्मू-काश्मीरला विशेष दर्जा देणारे कलम 370 ही तात्पुरती तरतूद नाही: सर्वोच्च न्यायालय

    सर्वोच्च न्यायालयाने जम्मू-काश्मीरला विशेष दर्जा देणारे कलम 370 ही तात्पुरती तरतूद नाही आणि जम्मू-काश्मीरला विशेष राज्याचा दर्जा देणारे कलम 370 रद्द करता येणार नाही, असे स्पष्ट केले आहे.
    जम्मू-काश्मीरमधील कलम 370 रद्द करावे, अशी मागणी करणारी याचिका कुमारी विजयालक्ष्मी झा यांनी सर्वोच्च न्यायालयात याचिकेद्वारे केली होती. जम्मू-काश्मीर राज्याची घटना ही देशाच्या घटनेचे उल्लंघन करणारी आहे, असे याचिकेत म्हटले होते.
    या याचिकेवर न्या. आदर्श के. गोयल आणि न्या. आर. एफ. नरिमन यांच्या खंडपीठाने हा निर्णय दिला.
    कलम 370 बाबत
    कलम 370 अंतर्गत जम्मू-काश्मीर राज्याला भारतात अन्य राज्यांच्या तुलनेत विशेष अधिकार किंवा (विशेष दर्जा) प्राप्त झाला आहे. भारतीय राज्यघटनेतील खंड 21 चे कलम 370 जवाहरलाल नेहरू यांच्या विशेष हस्तक्षेपामधून तयार केले गेले होते.
    याअंतर्गत, संसदेला जम्मू-काश्मीर संदर्भात संरक्षण, परराष्ट्र व्यवहार आणि संपर्क या विषयांमध्ये कायदे बनविण्याचे अधिकार आहेत, मात्र कोणत्याही अन्य विषयासंबंधित कायद्याला लागू करण्यासाठी केंद्र शासनाला राज्य शासनाची मंजूरी हवी. या विशेष दर्ज्यामुळे जम्मू-काश्मीर राज्यावर घटनेचे कलम 356 लागू होत नाही. यामुळे राष्ट्रपतीकडे राज्याची घटना रद्द करण्याचे अधिकार नाहीत.
    याचिकेत मांडण्यात आलेले मुद्दे
    • ही तरतूद सन 1957 मध्ये संवैधानिक सभेच्या भंग होण्यासोबतच बाद झाली आहे.
    • संवैधानिक सभेच्या भंग होण्यासोबतच अस्थायी तरतूद असणारे कलम 370 आणि जम्मू-काश्मीरच्या घटनेला भारतीय राष्ट्रपती किंवा भारताच्या संसदेकडून मान्यता नसूनही ही तरतूद लागू ठेवणे भारताच्या राज्यघटनेविरुद्ध असल्याचे दर्शवते.
    सुनावणी दरम्यान खंडपीठाने स्पष्ट केलेले मुद्दे पुढीलप्रमाणे आहेत -
    • सर्वोच्च न्यायालयाच्या 2017 साली SBI विरुद्ध संतोष गुप्ता याप्रकरणात दिलेल्या निकालामध्ये कलम 370 ला घटनेत कायमस्वरुपी स्थान मिळाले आहे, हे कलम रद्द करता येणार नाही.
    • गेल्या अनेक वर्षांपासून कलम 370 लागू असल्याने त्याला आता कायस्वरुपी दर्जाच मिळाला आहे.
    • न्यायालयाला जर हे कलम रद्द करायचे असेल, तर ही घटना संमत करणाऱ्या संसदेचा प्रस्ताव राष्ट्रपतींकडून येणे आवश्यक आहे. शिवाय ही घटना संमत करणारी संसद किंवा संवैधानिक सभा आता अस्तित्वात नसल्यामुळे घटनेतील 370 हे कलम रद्द करता येणार नाही.


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