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    Saturday, April 21, 2018

    केंद्र ने तटीय विनियमन क्षेत्र के मानदंडों को सरल बनाने का प्रस्ताव दिया: Coastal Zonal Rules, 2018 सागरी किनारपट्टी नियमन क्षेत्रांचे नियम शिथील करण्याचा प्रस्ताव

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    करेंट अफेयर्स २१ एप्रिल २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी




    हिंदी

    केंद्र ने तटीय विनियमन क्षेत्र के मानदंडों को सरल बनाने का प्रस्ताव दिया:
    केंद्र सरकार ने तटीय विनियमन क्षेत्र के नियम 2011 में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। नए मसौदे के अनुसार, तटीय क्षेत्रों के विनियमन में राज्यों की स्थिति निर्णायक हो जाएगी। तटीय क्षेत्र पर्यटन और औद्योगिक आधारभूत संरचना के लिए अधिक सुलभ हो जाएंगे और राज्यों को विकास के संदर्भ में निर्णय लेने में फायदा मिलेगा।
    नया मसौदा पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अपनी वेबसाइट पर जारी किया गया है।
    तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड), 2011:
    तटीय विनियमन क्षेत्र, या सीआरजेड, 2011, भारत के 7000 किलोमीटर लंबी तटरेखा के निकट क्षेत्रों को संदर्भित करता है जहां इमारतों, पर्यटन सुविधाओं, औद्योगिक परियोजनाओं, आवासीय सुविधाओं आदि को अत्यधिक विनियमित किया जाता है। ज्यादातर मामलों में यह हाई टाइड लाइन (एचटीएल) से भूमि क्षेत्र की तरफ लगभग 500 मीटर तक होता है।
    जनसंख्या और पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता के आधार पर, क्षेत्र को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अलग-अलग प्रकार की छूट वाले क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
    उदाहरण के लिए, सीआरजेड -1 में पारिस्थितिकीय रूप से सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों को शामिल किया गया है। और वर्तमान कानूनों के मुताबिक रक्षा गतिविधियों, रणनीतिक और दुर्लभ सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं को छोड़कर पर्यटन गतिविधियों और बुनियादी ढांचे के विकास की पहुँच से यह क्षेत्र दूर है।
    सीआरजेड 2018:
    सीआरजेड 2018 हालांकि, राज्यों को यह तय करने के लिए छूट देता है कि संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटन या अन्य मानव गतिविधि की अनुमति होगी या नहीं। सीआरजेड 2011 के अनुसार, तटीय क्षेत्र वह क्षेत्र हैं जो हाई टाइड लाइन से क्रीक के 100 मीटर तक ज्वारीय प्रभाव वाले क्षेत्रों जैसे एस्चुरी, नदियां, बैकवाटर, लैगून और तालाब को समुद्र से जोड़े हुए हैं। प्रस्तावित कानून में इस दूरी को 50 मीटर कर दिया गया है।



    इंग्लिश

    Coastal Zonal Rules, 2018
    The Central government has made significant changes in the coastal area rules 2011. As per the new draft, states will become the decider in regulation of the coastal areas. Coastal areas will become more accessible to tourism and industrial infrastructure and states will be given leverage in deciding the development. The new draft has been released by Environment ministry.
    Coastal Zonal Rules 2011
    The coastal regulation zone or CRZ 2011 refers to regions in the proximity of India’s 7000 Km long shoreline where buildings, tourism facilities, industrial projects, residential facilities etc are highly regulated. In most cases it begins from the high tide line (HTL) to about 500 meters towards the landward side. The zone is subdivided into regions, with varying leeway for infrastructure development depending on population and ecological sensitivity.
    Presently, CRZ 2011 includes the most ecological sensitive areas and according to current laws is off-limits for tourism activities and infrastructure development except for defence, strategic and rare utilities projects.
    CRZ 2018
    CRZ 2018 however, puts this on states to decide whether tourism or other human activity will be allowed or not in the sensitive zones.
    The CRZ 2011 also defines as coastal zone, the region from the HTL to 100 m of the creek along tidal-influence bodies such as bays, estuaries, rivers, backwaters, lagoons and ponds that are connected to the sea. The proposed laws relax this to 50 meters.




    मराठी


    सागरी किनारपट्टी नियमन क्षेत्रांचे नियम शिथील करण्याचा प्रस्ताव

    किनारपट्टी नियमन क्षेत्र (CRZ, 2011) हे भारताला लाभलेल्या 7000 किलोमीटर लांबीच्या सागरी किनारपट्टी क्षेत्राचे बांधकाम, पर्यटन सुविधा, औद्योगिक प्रकल्प, निवासी सुविधा इत्यादी बाबतीत अत्याधिक स्वरुपात नियंत्रित केले जाते. बहुतेक बाबतीत हे क्षेत्र समुद्रसपाटीच्या उच्च पातळीपासून (HTL) पासून ते जमिनीक्षेत्राकडे समुद्रसपाटीपासून सुमारे 500 मीटरपर्यंत पसरलेले आहेत. हे क्षेत्र दोन उप-गटात वर्गीकृत केले जातात, ज्यांमध्ये लोकसंख्या आणि पर्यावरणीय संवेदनशीलतेच्या आधारावर या क्षेत्रामध्ये पायाभूत सुविधांच्या विकासास ठराविक मर्यादेपर्यंत परवानगी दिली जाते.
    मात्र वाढत्या विकासाच्या स्वरूपाला पाहता केंद्र सरकारने एक नवा प्रस्ताव तयार केला आहे. या प्रस्तावामधून भारताच्या सागरी किनारपट्टी नियमन क्षेत्र योजनेत फेरबदल केले जाती.
    केंद्र सरकारने भारताच्या सागरी किनारपट्टी क्षेत्राला पर्यटन आणि औद्योगिक पायाभूत सुविधा क्षेत्राच्या विकासासाठी अधिक प्रवेशयोग्य बनण्यासाठी तसेच संबंधित राज्यांना त्यांचा वापर करण्यास योजना तयार करण्यासाठी अधिकाधिक निर्णयक्षमता बहाल करण्यासाठी परवानगी दिली आहे.
    बदल करण्यात आलेल्या मुख्य बाबी
    • नवीन ‘CRZ, 2018’ च्या अधिसूचनेनुसार, CRZ-1 गटातल्या क्षेत्रांमध्ये नैसर्गिक कार्यांना आणि पर्यटनाला परवानगी दिली जाऊ शकते आणि त्यासाठी त्यांना राज्य शासनाकडून मंजूर केलेल्या किनारपट्टी क्षेत्र ​​व्यवस्थापन योजनांचे पालन करावे लागणार.
    • समुद्रसपाटीपासून HTL ते 100 मीटर या मर्यादेत पसरलेल्या क्षेत्राला, ज्यामध्ये खाडी, नद्या, जलमार्ग व तळी इ. समुद्राशी जोडले जातात, अश्या क्षेत्राला सध्याचा CRZ, 2011 कायदा 'किनारपट्टी क्षेत्र' म्हणून परिभाषित करतो. नवा प्रस्तावित कायदा ही मर्यादा 50 मीटरपर्यंत करतो आहे.
    • यापूर्वी, CRZ-2 या नावाने ओळखल्या जाणार्‍या ग्रामीण वसाहती किंवा किनाऱ्याजवळ असणार्‍या निर्विवाद भागांमध्ये 200 मीटरच्या परिसराला 'विकास प्रतिबंधित क्षेत्र' घोषित करण्यात आले आहे. ही मर्यादा आता 50 मीटर एवढी करण्याचा प्रस्ताव आहे.



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