आंतरराष्ट्रीय जंगल दिवस : 21 मार्च
International Day of Forests: 21 March
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस: 21 मार्च
International Day of Forests: 21 March
The International Day of Forests on March 21 is celebrated all over the world since 2012 to raise awareness about importance of forests.
Theme: Forests for Sustainable cities
Forest Cover in India
India has a diverse range of forests: from the rainforest of Kerala in the south to alpines pastures of Ladakh in the north. Forests can be divided into six broad categories with a number of subtypes. The list has been given below:
हिंदी
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस: 21 मार्च
21 मार्च, 2018 को संपूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (International Day of Forests) मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की। इस दिवस के मनाने का उद्देश्य वन संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा वर्तमान और भावी पीढ़ी के विकास को सुदृढ़ बनाना है।
थीम: वर्ष 2018 के लिए अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की थीम "फॉरेस्ट्स फॉर सस्टेनेबल सिटीज" है।
भारत में वन आवरण:
भारत में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं। कई उप-प्रकारों के साथ भारत में वनों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2017’ के अनुसार, यह कहा जा सकता है। कि भारत में वनों की स्थिति अच्छी नहीं है। पाश्चात्य देशों की तुलना में यहाँ प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र बहुत ही कम है। हमारे देश में लोगों की वनों के प्रति विशेष रुचि न होने, वन व्यवस्था अवैज्ञानिक होने प्रशिक्षित कर्मचारियों के अभाव, वनोपज सम्बंधी शोध कार्य की कमी तथा वन दोहन के तकनीकी ज्ञान की अनभिज्ञता इत्यादि के कारण वनों का विकास सम्भव नहीं हो पाया है।
यह किस प्रकार सुधारा जा सकता है?
निष्कर्ष रूप में इन वनों के सुधार तथा विकास हेतु निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-सरकार को चाहिए कि प्रत्येक प्रदेश के लिये वन क्षेत्र की न्यूनता निर्धारित करे तथा इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योजनाएं बनाकर कार्य करे, नैसर्गिक रूप से हमारे देश में कई स्थानों पर बेकार पड़ी भूमि (खेती के अयोग्य) मौजूद हैं, जिस पर वृक्षों को रोपित किया जा सकता है।
वन क्षेत्र की उस भूमि पर जहाँ अब वन नहीं है, उस स्थान पर भी वन लगाए जाने चाहिए। तालाबों, नहरों, सड़कों, रेलमार्गों के किनारों पर वृक्षारोपण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस दिशा में सरकार, वन विभाग, स्वैच्छिक संस्थाएँ, विश्वविद्यालय/कॉलेज/स्कूल के छात्र व स्थानीय ग्रामीण जन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इसके अलावा वन अनुसंधान संस्थान वन विभाग, वन निगम, भारतीय वन सर्वेक्षण, रिमोट, सेंसिंग सेंटर इत्यादि संस्थानों को समय-समय पर वनों की जाँच-पड़ताल, अनुसंधान तथा विकास हेतु सतत कार्य किया जाना चाहिए। साथ ही वनों के प्रति व्यवसायिक दृष्टिकोण को प्रबल किया जाना चाहिए। जिससे लोगों को आय प्राप्त होने के साथ ही उनमें वनों के प्रति जागरूकता भी बढ़ सकेगी।
स्थानीय स्वैच्छिक संस्थानों को ग्राम स्तर पर वनों के प्रति शिक्षा व पर्यावरण में उसके महत्त्व तथा वनों के सुधार व विकास हेतु प्रयोगात्मक रूप में कार्य करना चाहिए ताकि वनों के प्रति लोगों का नया दृष्टिकोण सामने आ सके।
21 मार्च, 2018 को संपूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (International Day of Forests) मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की। इस दिवस के मनाने का उद्देश्य वन संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा वर्तमान और भावी पीढ़ी के विकास को सुदृढ़ बनाना है।
थीम: वर्ष 2018 के लिए अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की थीम "फॉरेस्ट्स फॉर सस्टेनेबल सिटीज" है।
भारत में वन आवरण:
- ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2017’ के अनुसार, वन क्षेत्र के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में है।
- भारत के भू-भाग का 24.4 प्रतिशत हिस्सा वनों और पेड़ों से घिरा है, हालांकि यह विश्व के कुल भूभाग का केवल 2.4 प्रतिशत हिस्सा है और इन पर 17 प्रतिशत मनुष्यों की आबादी और मवेशियों की 18 प्रतिशत संख्या की जरूरतों को पूरा करने का दवाब है।
- एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत को दुनिया के उन 10 देशों में 8 वां स्थान दिया गया है जहां वार्षिक स्तर पर वन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज हुई है।
- देश में वन और वृक्षावरण की स्थिति में 2015 की तुलना में 8021 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
- भारत ने अपने भू-भाग 33 प्रतिशत हिस्से को वनाच्छादित करने का लक्ष्य रखा है लेकिन बुनियादी ढांचे में वृद्धि और आबादी का दबाव इस लक्ष्य से दूर कर रहा है।
भारत में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं। कई उप-प्रकारों के साथ भारत में वनों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
- उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन
- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्रपर्णपाती वन
- उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन
- कँटीले वन (मरुस्थलीय वन)
- पर्वतीय वन (अल्पाइन वन)
- ज्वारीय वन (मैनग्रोव/डेल्टाई वन)
‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2017’ के अनुसार, यह कहा जा सकता है। कि भारत में वनों की स्थिति अच्छी नहीं है। पाश्चात्य देशों की तुलना में यहाँ प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र बहुत ही कम है। हमारे देश में लोगों की वनों के प्रति विशेष रुचि न होने, वन व्यवस्था अवैज्ञानिक होने प्रशिक्षित कर्मचारियों के अभाव, वनोपज सम्बंधी शोध कार्य की कमी तथा वन दोहन के तकनीकी ज्ञान की अनभिज्ञता इत्यादि के कारण वनों का विकास सम्भव नहीं हो पाया है।
यह किस प्रकार सुधारा जा सकता है?
निष्कर्ष रूप में इन वनों के सुधार तथा विकास हेतु निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-सरकार को चाहिए कि प्रत्येक प्रदेश के लिये वन क्षेत्र की न्यूनता निर्धारित करे तथा इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योजनाएं बनाकर कार्य करे, नैसर्गिक रूप से हमारे देश में कई स्थानों पर बेकार पड़ी भूमि (खेती के अयोग्य) मौजूद हैं, जिस पर वृक्षों को रोपित किया जा सकता है।
वन क्षेत्र की उस भूमि पर जहाँ अब वन नहीं है, उस स्थान पर भी वन लगाए जाने चाहिए। तालाबों, नहरों, सड़कों, रेलमार्गों के किनारों पर वृक्षारोपण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस दिशा में सरकार, वन विभाग, स्वैच्छिक संस्थाएँ, विश्वविद्यालय/कॉलेज/स्कूल के छात्र व स्थानीय ग्रामीण जन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इसके अलावा वन अनुसंधान संस्थान वन विभाग, वन निगम, भारतीय वन सर्वेक्षण, रिमोट, सेंसिंग सेंटर इत्यादि संस्थानों को समय-समय पर वनों की जाँच-पड़ताल, अनुसंधान तथा विकास हेतु सतत कार्य किया जाना चाहिए। साथ ही वनों के प्रति व्यवसायिक दृष्टिकोण को प्रबल किया जाना चाहिए। जिससे लोगों को आय प्राप्त होने के साथ ही उनमें वनों के प्रति जागरूकता भी बढ़ सकेगी।
स्थानीय स्वैच्छिक संस्थानों को ग्राम स्तर पर वनों के प्रति शिक्षा व पर्यावरण में उसके महत्त्व तथा वनों के सुधार व विकास हेतु प्रयोगात्मक रूप में कार्य करना चाहिए ताकि वनों के प्रति लोगों का नया दृष्टिकोण सामने आ सके।
इंग्लिश
International Day of Forests: 21 March
The International Day of Forests on March 21 is celebrated all over the world since 2012 to raise awareness about importance of forests.
Theme: Forests for Sustainable cities
Forest Cover in India
- According to State Forest Report 2017, the forest cover in India has increased by 1% since its last assessment in 2015.
- The total forest and tree cover is 24.39%.
- India has set a target of achieving 33% of its geographical areas under forest increasing infrastructure and population pressure is drifting this dream away from them.
India has a diverse range of forests: from the rainforest of Kerala in the south to alpines pastures of Ladakh in the north. Forests can be divided into six broad categories with a number of subtypes. The list has been given below:
- Moist Tropical Forest
- Dry Tropical Forest
- Dry Deciduous
- Montane Sub Tropical
- Montane Temperate Forests
- Alpine
- The biggest problem of the Indian forests is the inadequate and fast dwindling forest cover. It has already been mentioned that forests cover approximately 21 percent of the area against the required coverage of 33 per cent. Even this small percentage of forest cover is seriously threatened by the increasing demand for major and minor forest products.
- In India most of the forests are meant for protective purposes and commercial forests are badly lacking. Growing awareness about environmental degradation has forced us to look at forest wealth as a protective agent for environment rather than treating it as a commercial commodity.
- Scientific techniques of growing forests are also lacking in India. Only natural growth of forests takes place in India whereas in many developed countries new scientific techniques are being used through which tree growth is quickened. A large number of trees are malformed or consist of species which are slow growing and poor yielders.
- Intensive development schemes for afforestation should be adopted. High yielding varieties should be planted in suitable areas. Improved techniques of logging and extraction should be used.
- Proper transport facilities should be provided to remote and inaccessible forest areas.
- Latest techniques of seasoning and preservation are necessary to avoid wastage.
- Proper arrangements to save forests from fires and plant diseases can go a long way to solve several problems.
मराठी
आंतरराष्ट्रीय जंगल दिवस: 21 मार्च
जंगलांच्या महत्त्वबद्दल जागरुकता निर्माण करण्यासाठी 2012 पासून 21 व्या वर्षापासून आंतरराष्ट्रीय व्यापाराचा दिवस जागतिक महासत्ता म्हणून साजरा केला जातो.
थीम: सस्टेनेबल शहरेसाठी वन
भारतातील वनविकास
स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 नुसार, 2015 मध्ये भारतातील वनक्षेत्र 1% ने वाढले आहे.
एकूण वन आणि वृक्ष कव्हर 24.3 9% आहे.
भारताच्या वनक्षेत्राच्या पायाभूत सुविधांच्या अंतर्गत भौगोलिक क्षेत्राच्या 33% साध्य करण्याचे लक्ष्य ठेवले आहे आणि लोकसंख्या दबाव त्यांच्यापासून हे स्वप्न दूर आहे.
भारतातील जंगलांचे प्रकार:
भारतामध्ये जंगलांची विविधता आहे: दक्षिणेतील केरळच्या रेनफॉर्फ़ेपासून उत्तरेकडील लद्दाखच्या अल्पाइनच्या चारागाईतून. बर्याच उपप्रकारांनी वनीला सहा मोठ्या श्रेणींमध्ये विभागले जाऊ शकते. यादी खाली देण्यात आली आहे:
भारतातील जंगलांची सर्वात मोठी समस्या ही अपुर्या आणि वेगाने कमी होत जाणारे वनक्षेत्र आहे. आधीच असे नमूद केले आहे की 33 टक्के व्यापाराच्या आवश्यकतेनुसार 21 टक्के क्षेत्रफळ जंगलात होते. मोठ्या आणि लहान वन उत्पादनांची वाढती मागणीमुळे वनक्षेत्राचे हे अगदी लहान प्रमाण गंभीरपणे धोक्यात आहे.
भारतामध्ये जंगलांचे संरक्षणात्मक कारण म्हणजे व्यावसायिक जंगलांची कमतरता आहे. पर्यावरणविषयक घटस्फोटांविषयी जागरुकता वाढविण्यामुळे आम्हाला जंगलाची संपत्ती म्हणून व्यावसायिक वस्तु म्हणून वागण्याऐवजी पर्यावरणासाठी संरक्षणात्मक एजंट म्हणून पाहणे भाग पडले आहे.
भारतातील वाढत्या जंगलांची शास्त्रीय तंत्रांचीही कमतरता आहे. केवळ जंगलाची नैसर्गिक वाढ भारतात होते परंतु अनेक विकसित देशांत नवीन वैज्ञानिक तंत्रे वापरली जात आहेत ज्यायोगे वृक्षाची वाढ वेगाने सुरू होते. मोठ्या प्रमाणात झाडं विकृत किंवा प्रजाती बनलेली असतात जी मंद गतीने वाढणारी आणि खराब उत्पन्न करतात.
हे कसे सुधारित केले जाऊ शकते?
जंगलांच्या महत्त्वबद्दल जागरुकता निर्माण करण्यासाठी 2012 पासून 21 व्या वर्षापासून आंतरराष्ट्रीय व्यापाराचा दिवस जागतिक महासत्ता म्हणून साजरा केला जातो.
थीम: सस्टेनेबल शहरेसाठी वन
भारतातील वनविकास
स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 नुसार, 2015 मध्ये भारतातील वनक्षेत्र 1% ने वाढले आहे.
एकूण वन आणि वृक्ष कव्हर 24.3 9% आहे.
भारताच्या वनक्षेत्राच्या पायाभूत सुविधांच्या अंतर्गत भौगोलिक क्षेत्राच्या 33% साध्य करण्याचे लक्ष्य ठेवले आहे आणि लोकसंख्या दबाव त्यांच्यापासून हे स्वप्न दूर आहे.
भारतातील जंगलांचे प्रकार:
भारतामध्ये जंगलांची विविधता आहे: दक्षिणेतील केरळच्या रेनफॉर्फ़ेपासून उत्तरेकडील लद्दाखच्या अल्पाइनच्या चारागाईतून. बर्याच उपप्रकारांनी वनीला सहा मोठ्या श्रेणींमध्ये विभागले जाऊ शकते. यादी खाली देण्यात आली आहे:
- उष्णकटिबंधीय वन
- ड्राय ट्रॉपिकल फॉरेस्ट
- कोरडी वाळवंट
- मोंटेणे उप उष्णकटिबंधीय
- मोंटेणे समुद्रपर्यटन वन
- अल्पाइन
आव्हाने:
भारतातील जंगलांची सर्वात मोठी समस्या ही अपुर्या आणि वेगाने कमी होत जाणारे वनक्षेत्र आहे. आधीच असे नमूद केले आहे की 33 टक्के व्यापाराच्या आवश्यकतेनुसार 21 टक्के क्षेत्रफळ जंगलात होते. मोठ्या आणि लहान वन उत्पादनांची वाढती मागणीमुळे वनक्षेत्राचे हे अगदी लहान प्रमाण गंभीरपणे धोक्यात आहे.
भारतामध्ये जंगलांचे संरक्षणात्मक कारण म्हणजे व्यावसायिक जंगलांची कमतरता आहे. पर्यावरणविषयक घटस्फोटांविषयी जागरुकता वाढविण्यामुळे आम्हाला जंगलाची संपत्ती म्हणून व्यावसायिक वस्तु म्हणून वागण्याऐवजी पर्यावरणासाठी संरक्षणात्मक एजंट म्हणून पाहणे भाग पडले आहे.
भारतातील वाढत्या जंगलांची शास्त्रीय तंत्रांचीही कमतरता आहे. केवळ जंगलाची नैसर्गिक वाढ भारतात होते परंतु अनेक विकसित देशांत नवीन वैज्ञानिक तंत्रे वापरली जात आहेत ज्यायोगे वृक्षाची वाढ वेगाने सुरू होते. मोठ्या प्रमाणात झाडं विकृत किंवा प्रजाती बनलेली असतात जी मंद गतीने वाढणारी आणि खराब उत्पन्न करतात.
हे कसे सुधारित केले जाऊ शकते?
- वृद्धत्वासाठी सघन विकास योजना अंगीकारणे आवश्यक आहे. उच्च उत्पादन देणारे वाण योग्य भागात लावा. लॉगिंग आणि निष्कर्षण सुधारित तंत्र वापरावे.
- दूरस्थ आणि प्रवेश करण्यायोग्य जंगलांसाठी योग्य वाहतूक सुविधा पुरविल्या पाहिजेत.
- वाया जाणे टाळण्यासाठी नवीनतम तंत्रज्ञानाची पद्धत आणि परिरक्षण आवश्यक आहे.
- बर्याच समस्यांचे निराकरण करण्यासाठी आग आणि वनस्पतींच्या रोगांपासून जंगलांचे संरक्षण करण्यासाठी योग्य ती व्यवस्था करू शकता.
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