Current affairs 4 January 2018 - Hindi / English / Marathi
Stem cell therapy may treat leading cause of blindness
A team led by an Indian-origin scientist has made advances towards creating stem cell-derived retinal cells to treat a leading cause of blindness.
RPE therapy to treat blindness:
अमेरिकेतील नॅशनल आय इन्स्टिट्यूट (NEI) येथील शास्त्रज्ञांच्या अभ्यासानुसार, रेटिनल पिगमेंट एपिथेलियम (REP / डोळ्याच्या पाठीमागे पेशींचा एक थर) च्या पेशीवरील प्रायमरी सिलीया नामक लहान नळीसारखे प्रथिने हे रेटिनाच्या प्रकाश-संवेदक फोटोरिसेप्टरचे अस्तित्व टिकवण्यासाठी आवश्यक असतात.
निरोगी डोळ्यामध्ये, REP पेशी प्रकाशाला विद्युत संकेतामध्ये बदलतात, जे पुढे दृक (optic) मज्जातंतूद्वारे मेंदूच्या दिशेने प्रवास करतात. REP पेशी फोटोरिसेप्टरच्या मागे एक थर तयार करतात. भौगोलिक झीजमुळे, REP पेशी मरतात, ज्यामुळे फोटोरिसेप्टर कमी झाल्यामुळे दृष्टी जाते.
या शोधामध्ये अमेरिकेत अंधत्वचे एक प्रमुख कारण असलेल्या कोरडा वयासंबंधित मेक्युलर डीजनरेशन (AMD) असलेल्या रुग्णांमध्ये प्रत्यारोपण करण्यासाठी स्टेम सेलपासून प्राप्त REP बनवण्यासाठी प्रगत प्रयत्न करण्यात आले आहेत.
Hindi
स्टेम सेल थेरेपी अंधेपन के प्रमुख कारण का इलाज कर सकती है: शोध
हाल ही में भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक और उनकी टीम ने अंधेपन (ब्लाइंडनेस) के इलाज के लिए स्टेम सेल पर आधारित रेटिनल सेल के निर्माण की दिशा में प्रगति की है।
अमेरिका के नेशनल आई इंस्टीट्यूट (एनईआई) के वैज्ञानिकों के अनुसार, आंख के पिछले हिस्सों में कोशिकाओं की परत प्रकाश की पहचान करने वाले रेटीना के फोटोरिसेप्टर के बने रहने के लिए आवश्यक होता है।
इस खोज से जियोग्रॉफिक एट्रॉफी या ऐज-रिलेटेड मैकुलर डिजिनरेशन (एएमडी) के मरीजों में मूल कोशिका यानी स्टेम सेल पर आधारित रेटिनल पिग्मेंट इपिथेलियम (आरपीई) के प्रतिरोपण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
‘सेल रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन की अगुवाई करने वाले कपिल भारती ने कहा, ‘‘हम इस बात को बेहतर तरीके से समझ रहे हैं कि आरपीई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है और उन्हें कैसे बदला जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि एएमडी में इस तरह की कोशिका सबसे पहले काम करना बंद कर देती है।“
स्टेम कोशिका:
स्टेम कोशिका या मूल कोशिका ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गईं, तो इनकी मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। इसी प्रकार यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो जायें, तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
इसी प्रकार मानव के लिए अत्यावश्यक तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उददेश्य से स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। अपने मूल सरल रूप में स्टेम कोशिका ऐसे अविकसित कोशिका हैं जिनमें विकसित कोशिका के रूप में विशिष्टता अर्जित करने की क्षमता होती है।
क्लोनन के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने एक और क्षेत्र को जन्म दिया है, जिसका नाम है कोशिका चिकित्सा। इसके अंतर्गत ऐसी कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसमें वृद्धि, विभाजन और विभेदन कर नए ऊतक बनाने की क्षमता हो।
सर्वप्रथम रक्त बनाने वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार व प्रयोग शुरु हुआ था। अस्थि-मज्जा से प्राप्त ये कोशिकाएं, आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करतीं हैं और कैंसर आदि रोगों में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को, पुनर्संचित किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं को ही स्टेम कोशिका कहते हैं।
स्रोत:
स्टेम सेल की प्राप्ति के तीन स्रोत हैं। एक-गर्भस्थ शिशु के भ्रूण के तंतुओं से, जिसे भ्रूण स्टेम सेल कहते हैं। दूसरा, कार्ड स्टेम सेल, जो जन्म के समय बच्चों के गर्भनाल से लिए जाते हैं। तीसरा, वयस्क स्टेम सेल, जो रक्त या अस्थि मज्जा (बोनमैरो) से एकत्र किए जाते हैं।
क्लोनिंग से भिन्न स्टेम सेल चिकित्सा:
क्लोनिंग और स्टेम सेल दोनों अलग-अलग हैं। क्लोनिंग में जीव का प्रतिरूप तैयार होता है। यह प्रतिरूप डीएनए से तैयार होता है। डीएनए कोशिका में पाया जाता है, जबकि कोशिका से वह अंग बनाया जा सकता है, जिसके लिए उसका इस्तेमाल है।
कई बीमारियों का इलाज करती है स्टेम सेल:
वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व में अब तक 75 किस्म की बीमारियों में स्टेम सेल का उपयोग हो चुका है। इन कोशिकाओं से दांत भी उगाए जा सकते हैं। मांसपेशियों की मरम्मत तो आम बात है। इसी प्रकार अल्जाइमर, दिल की बीमारियों, कैंसर, आर्थराइटिस जैसी लाइलाज बीमारियों का इलाज इस तकनीक में है। भारत में सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी स्टेम सेल के जरिये इलाज हो रहा है, इसलिए पड़ोसी देशों से बड़े पैमाने पर मरीज यहां आ रहे हैं।
हाल ही में भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक और उनकी टीम ने अंधेपन (ब्लाइंडनेस) के इलाज के लिए स्टेम सेल पर आधारित रेटिनल सेल के निर्माण की दिशा में प्रगति की है।
अमेरिका के नेशनल आई इंस्टीट्यूट (एनईआई) के वैज्ञानिकों के अनुसार, आंख के पिछले हिस्सों में कोशिकाओं की परत प्रकाश की पहचान करने वाले रेटीना के फोटोरिसेप्टर के बने रहने के लिए आवश्यक होता है।
इस खोज से जियोग्रॉफिक एट्रॉफी या ऐज-रिलेटेड मैकुलर डिजिनरेशन (एएमडी) के मरीजों में मूल कोशिका यानी स्टेम सेल पर आधारित रेटिनल पिग्मेंट इपिथेलियम (आरपीई) के प्रतिरोपण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
‘सेल रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन की अगुवाई करने वाले कपिल भारती ने कहा, ‘‘हम इस बात को बेहतर तरीके से समझ रहे हैं कि आरपीई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है और उन्हें कैसे बदला जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि एएमडी में इस तरह की कोशिका सबसे पहले काम करना बंद कर देती है।“
स्टेम कोशिका:
स्टेम कोशिका या मूल कोशिका ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गईं, तो इनकी मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। इसी प्रकार यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो जायें, तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
इसी प्रकार मानव के लिए अत्यावश्यक तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उददेश्य से स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। अपने मूल सरल रूप में स्टेम कोशिका ऐसे अविकसित कोशिका हैं जिनमें विकसित कोशिका के रूप में विशिष्टता अर्जित करने की क्षमता होती है।
क्लोनन के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने एक और क्षेत्र को जन्म दिया है, जिसका नाम है कोशिका चिकित्सा। इसके अंतर्गत ऐसी कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसमें वृद्धि, विभाजन और विभेदन कर नए ऊतक बनाने की क्षमता हो।
सर्वप्रथम रक्त बनाने वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार व प्रयोग शुरु हुआ था। अस्थि-मज्जा से प्राप्त ये कोशिकाएं, आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करतीं हैं और कैंसर आदि रोगों में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को, पुनर्संचित किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं को ही स्टेम कोशिका कहते हैं।
स्रोत:
स्टेम सेल की प्राप्ति के तीन स्रोत हैं। एक-गर्भस्थ शिशु के भ्रूण के तंतुओं से, जिसे भ्रूण स्टेम सेल कहते हैं। दूसरा, कार्ड स्टेम सेल, जो जन्म के समय बच्चों के गर्भनाल से लिए जाते हैं। तीसरा, वयस्क स्टेम सेल, जो रक्त या अस्थि मज्जा (बोनमैरो) से एकत्र किए जाते हैं।
क्लोनिंग से भिन्न स्टेम सेल चिकित्सा:
क्लोनिंग और स्टेम सेल दोनों अलग-अलग हैं। क्लोनिंग में जीव का प्रतिरूप तैयार होता है। यह प्रतिरूप डीएनए से तैयार होता है। डीएनए कोशिका में पाया जाता है, जबकि कोशिका से वह अंग बनाया जा सकता है, जिसके लिए उसका इस्तेमाल है।
कई बीमारियों का इलाज करती है स्टेम सेल:
वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व में अब तक 75 किस्म की बीमारियों में स्टेम सेल का उपयोग हो चुका है। इन कोशिकाओं से दांत भी उगाए जा सकते हैं। मांसपेशियों की मरम्मत तो आम बात है। इसी प्रकार अल्जाइमर, दिल की बीमारियों, कैंसर, आर्थराइटिस जैसी लाइलाज बीमारियों का इलाज इस तकनीक में है। भारत में सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी स्टेम सेल के जरिये इलाज हो रहा है, इसलिए पड़ोसी देशों से बड़े पैमाने पर मरीज यहां आ रहे हैं।
English
Stem cell therapy may treat leading cause of blindness
A team led by an Indian-origin scientist has made advances towards creating stem cell-derived retinal cells to treat a leading cause of blindness.
RPE therapy to treat blindness:
- Tiny tube-like protrusions called primary cilia on cells of the retinal pigment epithelium (RPE) - a layer of cells in the back of the eye - are essential for the survival of the retinas light-sensing photoreceptors.
- The discovery has advanced efforts to make stem cell- derived RPE for transplantation into patients with geographic atrophy, otherwise known as dry age-related macular degeneration (AMD), a leading cause of blindness in the US.
- In a healthy eye, RPE cells nourish and support photoreceptors, the cells that convert light into electrical signals that travel to the brain via the optic nerve.
- RPE cells form a layer just behind the photoreceptors. In geographic atrophy, RPE cells die, which causes photoreceptors to degenerate, leading to vision loss.
- The approach involves using a patient’s blood cells to generate induced-pluripotent stem cells (iPSCs), cells capable of becoming any type of cell in the body.
- As predicted, the two drugs known to enhance cilia growth significantly improved the structural and functional maturation of the iPSC-derived RPE.
Marathi
‘स्टेम सेल थेरपी’ माणसाचे अंधत्व दूर करू शकते
भारतीय वंशाचे शास्त्रज्ञ कपिल भारती यांच्या नेतृत्वाखाली एका पथकाने अंधत्व दूर करण्यासाठी स्टेम सेलपासून प्राप्त रेटिनल पेशी तयार करण्याच्यादृष्टीने प्रगती केली आहे.अमेरिकेतील नॅशनल आय इन्स्टिट्यूट (NEI) येथील शास्त्रज्ञांच्या अभ्यासानुसार, रेटिनल पिगमेंट एपिथेलियम (REP / डोळ्याच्या पाठीमागे पेशींचा एक थर) च्या पेशीवरील प्रायमरी सिलीया नामक लहान नळीसारखे प्रथिने हे रेटिनाच्या प्रकाश-संवेदक फोटोरिसेप्टरचे अस्तित्व टिकवण्यासाठी आवश्यक असतात.
निरोगी डोळ्यामध्ये, REP पेशी प्रकाशाला विद्युत संकेतामध्ये बदलतात, जे पुढे दृक (optic) मज्जातंतूद्वारे मेंदूच्या दिशेने प्रवास करतात. REP पेशी फोटोरिसेप्टरच्या मागे एक थर तयार करतात. भौगोलिक झीजमुळे, REP पेशी मरतात, ज्यामुळे फोटोरिसेप्टर कमी झाल्यामुळे दृष्टी जाते.
या शोधामध्ये अमेरिकेत अंधत्वचे एक प्रमुख कारण असलेल्या कोरडा वयासंबंधित मेक्युलर डीजनरेशन (AMD) असलेल्या रुग्णांमध्ये प्रत्यारोपण करण्यासाठी स्टेम सेलपासून प्राप्त REP बनवण्यासाठी प्रगत प्रयत्न करण्यात आले आहेत.
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