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    Tuesday, May 1, 2018

    जलवायु परिवर्तन और इसके व्यापक प्रभाव:

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    करेंट अफेयर्स 1 मे 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
    / currentaffairs


    जलवायु परिवर्तन और इसके व्यापक प्रभाव:


    हिंदी

    जलवायु परिवर्तन और इसके व्यापक प्रभाव:
    जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी घटनाओं के पैटर्न में अप्रत्याशित रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी।
    ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापमान में वृद्धि को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा लगाए गए उद्योगों से निकलने वाली कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है। जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं।
    जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक:
    जलवायु में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारकों में सौर विकिरण में बदलाव, पृथ्वी की कक्षा में बदलाव, महाद्वीपों की परावर्तकता में बदलाव, वातावरण, महासागरों, पर्वत निर्माण और महाद्वीपीय बहाव तथा ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता में परिवर्तन आदि शामिल हैं।
    जलवायु परिवर्तन के अंदरुनी तथा बाहरी कारक हो सकते हैं। अंदरुनी कारको में जलवायु प्रणाली के भीतर ही प्राकृतिक प्रक्रियाओं में हो रहे परिवर्तन शामिल हैं (जैसे की उष्मिक परिसंचरण), वही बाहरी कारको में कुछ प्राकृतिक (जैसे: सौर उत्पादन में परिवर्तन, पृथ्वी की कक्षा, ज्वालामुखी विस्फोट) या मानवजनित (जैसे: ग्रीन हाउस गैसों और धूल के उत्सर्जन में वृद्धि) शामिल हो सकते हैं।
    कुछ परिवर्तन कारको का जलवायु में बहुत जल्द ही प्रभाव पड़ता हैं जबकि कुछ प्रभवित करने में सालो लगा देते हैं।
    मानवजनित कारक:
    मानवीय कारकों में सबसे अधिक चिंता का विषय, औद्योगिकरण के लिए कोयले और पेट्रोलियम पदार्थों जैसे फासिल फ्यूएल्स का अंधाधुंध उपयोग के कारण कार्बन डाई ऑक्साइड का बेहिसाब उत्सर्जन होना हैं, इसके अलावा वायुमंडल का सुरक्षा कवच ओजोन परत, जो सूर्य के खतरनाक रेडिएशन को रोकता है का लगातार हास होना। जनसंख्या वृद्धि, जल को बेहिसाब उपयोग, वनों की अंधाधुंध कटाई आदि भी मानवीय कारको में शामिल हैं।
    ग्रीन हाउस इफेक्ट:
    पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में विभिन्न गैसें:
    • कॉर्बन डाइऑक्साइड (लकड़ी, कोयला के जलने पर): 57%
    • कॉर्बन डाइऑक्साइड (वृक्षों की कटान हो जाने पर): 17%
    • मीथेन: 14%
    • नाइट्रस ऑक्साइड: 8%
    • कॉर्बन डाइऑक्साइड: 3%
    • फ्लोरिनेटेड गैसें: 1%
    जलवायु परिवर्तन के वीभत्स प्रभाव:
    डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले 50 साल में दुनिया उजड़ जायेगी। ‘इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आइपीसीसी) के अध्ययन के मुताबिक, बीती सदी के दौरान पृथ्वी का औसत तापमान 0.28 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
    पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही यह वृद्धि जलवायु और मौसम प्रणाली में व्यापक स्तर पर विनाशकारी बदलाव ला सकती है। जलवायु और मौसम में बदलाव के सबूत मिलने शुरू हो चुके हैं। भू-विज्ञानियों ने खुलासा किया है कि पृथ्वी में से लगातार 44 हजार बिलियन वाट ऊष्मा बाहर आ रही है।
    वर्ष 1850 के बाद से पिछले 12 वर्षों में से 11 को सबसे गर्म सालों में गिना गया है। समुद्र का तापमान 3000 मीटर की गहराई तक बढ़ चुका है।
    भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सूखे की समस्या बढ़ती जा रही है।अंटार्टिका में बर्फ जमे हुए क्षेत्र में 7 प्रतिशत की कमी हुई है जबकि मौसमी कमी की रफ्तार 15 प्रतिशत तक हो चुकी है।
    उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से, उत्तरी यूरोप और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश ज्यादा हो रही है। पश्चिमी हवाएं बहुत मजबूत हो रही हैं। सूखे की रफ्तार तेज होती जा रही है, भविष्य में यह ज्यादा लंबे वक्त तक और ज्यादा बड़े क्षेत्र में होंगे।



    इंग्लिश


    Understanding Climate Change in 5 Points
    What is the problem?
    • The average temperature of the Earth's surface has increased by about 0.85°C (1.4F) in the last 100 years.
    • Up until 2015, 13 of the 14 warmest years had been recorded in the 21st Century.
    • 2015 then became the hottest year on record, but was surpassed by record-breaking 2016.
    Why is this happening?
    • Scientists believe that gases released from industry and agriculture (known as emissions) are adding to the natural greenhouse effect, the way the Earth's atmosphere traps some of the energy from the Sun.
    • Human activities such as burning fossil fuels like coal, oil and natural gas are increasing the amount of carbon dioxide (CO2), the main greenhouse gas responsible for global warming. Carbon-absorbing forests are also being cut down.
    • The concentration of CO2 in the atmosphere is now higher than at any time in the last 800,000 years and reached a record high in May 2015. But 2016 marked five consecutive years of CO2 increases of at least two parts per million.
    What are the effects?
    • Higher temperatures, extreme weather events and higher sea levels are all linked to a warming climate and could have a drastic effect on the world’s regions.
    • Since 1900, sea levels have risen by on average about 19cm globally. The rate of sea-level rise has accelerated in recent decades, placing a number of islands and low-lying countries at risk.
    • The retreat of polar ice sheets is an important contributor to this rise.
    • Arctic sea ice is also shrinking because of higher temperatures, though it makes little contribution to raised sea levels.
    • An area of sea ice roughly 10 times the size of the UK has been lost when the current day is compared with average levels from the early 1980s.
    What does the future hold?
    • The scale of potential impacts is uncertain.
    • The changes could drive shortages in freshwater, bring about major changes in food production conditions and cause a rise in the number of casualties from floods, storms, heat waves and droughts.
    • This is because climate change is expected to increase the frequency of extreme weather events - however linking any single event to global warming is complicated.
    What can be done?
    • Limit the greenhouse gas emissions.
    • Protect and restore key ecosystems.
    • Promote green energy








    मराठी


    हवामान बदलासंदर्भात जाणून घ्या

    जर्मनीच्या बॉन शहरात 30 एप्रिल 2018 पासून ‘बॉन हवामान बदल परिषद – एप्रिल 2018’ या कार्यक्रमाला सुरुवात झाली आहे. ही परिषद 10 मे 2018 पर्यंत चालणार आहे.
    याप्रसंगी, संयुक्त राष्ट्रसंघ हवामान बदल (UN Climate Change) संघटनेनी आपला पहिला वार्षिक अहवाल प्रसिद्ध केला आहे. या अहवालात 2017 साली साध्य करण्यात आलेले यश आणि हवामान बदलासंदर्भात प्रक्रियेच्या भविष्याकडे दृष्टीक्षेप टाकला आहे.
    यात UNCC ने 2017 साली केलेल्या कामकाजाचा संपूर्ण अहवाल आहे. सोबतच यात संयुक्त राष्ट्रसंघ हवामान बदल कार्यचौकट परिषद (UNFCCC), क्योटो प्रोटोकॉल आणि पॅरीस करार, तसेच त्यांची इतर मंडळे, संस्थात्मक व्यवस्था, विभाग आणि सचिवालय यांचा देखील अहवाला दिला गेला आहे.
    हवामान बदल
    हवामान बदल हा अनेक दशके किंवा दीर्घकाळ (साधारणतः किमान 30 वर्षे) टिकून राहणाऱ्या वातावरणातील सांख्यिकीय गुणधर्मांमधील बदल आहे. या सांख्यिकीय गुणधर्मांमध्ये सरासरी, परिवर्तनशील आणि अत्याधिक अश्या पातळी आहेत. हवामान बदल नैसर्गिक प्रक्रियांमुळे होऊ शकतो, जसे की सूर्यापासुनच्या किरणोत्सर्गात बदल, ज्वालामुखी किंवा हवामान प्रणालीत आंतरिक परिवर्तनशीलता किंवा मानवी हस्तक्षेपामुळे जसे वातावरणात किंवा भूप्रदेशाच्या वापरामुळे घटकांमध्ये बदल करणे.
    सुमारे 11,000 वर्षांपूर्वी संपलेल्या शेवटच्या हिमयुगानंतर, पृथ्वीचे हवामान तुलनेने स्थिर आहे, जे सरासरी तापमान सुमारे 14 अंश सेल्सियस आहे. तथापी, अलिकडच्या काही वर्षांत, सरासरी तापमान वाढत गेले आहे आणि विविध निर्देशके हे दर्शवतात की हवामानात बदल झाला आहे.
    याची मुख्यताः पाच निर्देशके आहेत -
    • उच्च तापमान - 1850 सालापासून जागतिक सरासरी तापमान सुमारे 1 अंश सेल्सियसने वाढले आहे. गेल्या तीन दशकांमधील प्रत्येक दशक मागील दशकापेक्षा जास्त उष्ण आहे आणि विसाव्या शतकात आश्चर्यकारक तापमानवाढ दिसून आली. 18 पैकी 17 वर्ष सर्वात उष्ण होते. मागील तीन वर्ष विक्रमी उष्ण होते.
    • पर्जन्यमान - निरीक्षणे असे दर्शवतात की 20 व्या शतकाच्या सुरूवातीपासून उत्तर गोलार्धाच्या मध्य-अक्षांशांमध्ये पर्जन्यमानात वाढ झालेली आहे. विविध क्षेत्रांमध्ये मोसमात देखील बदल दिसून येत आहे. उदाहरणार्थ, ब्रिटनमध्ये उन्हाळी पर्जन्यमानाचा दर कमी होत आहे, तर हिवाळी पाऊस वाढत आहे. असेही पुरावे आहेत की अत्याधिक पावसाचे प्रमाण, विशेषत: उत्तर अमेरिकामध्ये, अधिक तीव्र झाले आहे.
    • समुद्र पातळी - 1900 सालापासून जागतिक सरासरी समुद्राची पातळी 20 सेंटीमीटरपेक्षा जास्तने वाढली आहे. अलिकडच्या काही दशकांत समुद्राच्या पातळीचा वाढीचा दर वाढला आहे, जो 1990 च्या दशकाच्या सुरवातीपासून वार्षिक 1.7 मि.मी.पासून वार्षिक 3.3 मि.मी.वर आला आहे.
    • हिमनद्या - आल्प्स, रॉकीज, अँडस, हिमालय, आफ्रिका आणि अलास्का या क्षेत्रामधील जगभरातील हिमनद्या हळूहळू वितळत आहेत आणि अलिकडच्या काही दशकांमध्ये त्याचा संकुचित होण्याचा दर वाढला आहे.
    • समुद्र-बर्फ - 1970 च्या दशकाच्या उत्तरार्धापासून आर्क्टिक समुद्र-बर्फ कमी होत आहे, जो दर दशकाला सुमारे 4% किंवा 0.6 दशलक्ष चौरस किलोमीटर या प्रमाणात कमी होत आहे. 1979 सालापासून उन्हाळी किमान आर्क्टिक समुद्र-बर्फ हळूहळू 13.3% नी कमी झाला आहे. त्याच वेळी अंटार्क्टिक समुद्र-बर्फ अधिक स्थिर आहे, तरीही बहुतेक भाग 2016 सालच्या शरद ऋतूपासून कमी पातळीवर आला आहे.
    • हिम-थर - ग्रीनलँड आणि अंटार्क्टिक हिम-थर, जे त्यांच्यामध्ये जगातील बहुतेक ताजे पाणी संचयित करतात, ते दोन्ही वेगाने कमी होत आहेत.
    • शेवटी महत्त्वाचे म्हणजे निसर्गातील जीवनामध्ये होणारे बदल
    मोसमातील बदल विविध प्रजातींच्या वर्तनात देखील बदल घडवून आणत आहे, उदाहरणार्थ, वर्षाच्या सुरूवातीलाच फुलपाखरे दिसून येत आहेत आणि पक्ष्यांनी त्यांच्या स्थलांतरणाच्या पध्दती बदलत आहेत.





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