शादियों में खाप पंचायतों का हस्तक्षेप अवैध: उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा,जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की खंडपीठ ने कहा है कि एक बार जब दो वयस्क व्यक्ति विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हो तो परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं है। पंचायतों या किसी भी अन्य जमावड़े द्वारा शादी करने की सहमति वाले वयस्कों को बेदखल करने या रोकना बिल्कुल “अवैध” है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्वेच्छा से अंतर-जातीय और अंतर-आस्था विवाह करने वाले वयस्कों के मामले में खाप पंचायत जैसे गैरकानूनी समूहों के दखल को पूरी तरह गैरकानूनी करार देते हुये इन पर पाबंदी लगा दी है।
प्रमुख तथ्य:
जब दो वयस्क एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनते हैं, तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है जिसे संविधान की धारा 19 और 21 के तहत मान्यता प्राप्त है।
एक गैर सरकारी संगठन 'शक्ति वाहिनी' ने सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सम्मान के लिए अपराधों से निपटने के लिए प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के निर्देश मांगे थे।
इस संगठन ने ऐसे दपंतियों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था ताकि इज्जत के नाम पर उनकी हत्या नहीं की जा सके। पीठ ने इस महीने के प्रारंभ में जनहित याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए टिप्पणी की थी कि जब अलग- अलग धर्म, जाति, पृष्ठभूमि वाले दो वयस्क परस्पर सहमति से विवाह करते हैं तो कोई भी रिश्तेदार या तीसरा पक्ष इसमें न तो हस्तक्षेप कर सकता है ओर न ही उन्हें धमकी दे सकता है या हिंसा का सहारा ले सकता है।
दो वयस्कों द्वारा शादी करने के लिए परिवार/समुदाय/कबीले की अनावश्यक सहमति पर न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार दो वयस्क व्यक्ति के विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हो जाने पर परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं है।
उनकी सहमति प्रामाणिकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ऐसा कहा गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि जब दो वयस्क अपनी इच्छा से शादी करते हैं तो वे अपना रास्ता चुनते हैं; वे अपने रिश्ते को समाहित करते हैं; उन्हें लगता है कि यह उनका लक्ष्य है और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है।
केंद्र सरकार का रुख:
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि वह आईपीसी में संशोधन करने या सम्मान के लिए हत्या और संबंधित मुद्दों के खतरे को दूर करने के लिए एक अलग कानून बनाने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए विभिन्न राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को शामिल कर रहा है।
उसने अदालत से यह भी कहा कि 242 वीं कानून आयोग की रिपोर्ट के माध्यम से भारतीय कानून आयोग ने ‘वैवाहिक गठबंधन की स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप का निषेध’ नामक एक विधेयक की सिफारिश की है। कई राज्य सरकारों ने न्यायालय में शपथ पत्र भी दायर किया कि वे सम्मान की हत्या (हॉनर किलिंग) से संबंधित अपराधों से कैसे निपटते हैं।
सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा स्वयं का फैसला फ्रांसीसी दार्शनिक और चिंतक सिमोन वेइल से एक उद्धरण से शुरू होता है, “लिबर्टी, शब्द को अपने ठोस अर्थ में चुनने में सक्षम होता है।”
Khap interference in marriage of two adults absolutely illegal: SC
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा,जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की खंडपीठ ने कहा है कि एक बार जब दो वयस्क व्यक्ति विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हो तो परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं है। पंचायतों या किसी भी अन्य जमावड़े द्वारा शादी करने की सहमति वाले वयस्कों को बेदखल करने या रोकना बिल्कुल “अवैध” है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्वेच्छा से अंतर-जातीय और अंतर-आस्था विवाह करने वाले वयस्कों के मामले में खाप पंचायत जैसे गैरकानूनी समूहों के दखल को पूरी तरह गैरकानूनी करार देते हुये इन पर पाबंदी लगा दी है।
प्रमुख तथ्य:
जब दो वयस्क एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनते हैं, तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है जिसे संविधान की धारा 19 और 21 के तहत मान्यता प्राप्त है।
एक गैर सरकारी संगठन 'शक्ति वाहिनी' ने सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सम्मान के लिए अपराधों से निपटने के लिए प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के निर्देश मांगे थे।
इस संगठन ने ऐसे दपंतियों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था ताकि इज्जत के नाम पर उनकी हत्या नहीं की जा सके। पीठ ने इस महीने के प्रारंभ में जनहित याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए टिप्पणी की थी कि जब अलग- अलग धर्म, जाति, पृष्ठभूमि वाले दो वयस्क परस्पर सहमति से विवाह करते हैं तो कोई भी रिश्तेदार या तीसरा पक्ष इसमें न तो हस्तक्षेप कर सकता है ओर न ही उन्हें धमकी दे सकता है या हिंसा का सहारा ले सकता है।
दो वयस्कों द्वारा शादी करने के लिए परिवार/समुदाय/कबीले की अनावश्यक सहमति पर न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार दो वयस्क व्यक्ति के विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हो जाने पर परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं है।
उनकी सहमति प्रामाणिकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ऐसा कहा गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि जब दो वयस्क अपनी इच्छा से शादी करते हैं तो वे अपना रास्ता चुनते हैं; वे अपने रिश्ते को समाहित करते हैं; उन्हें लगता है कि यह उनका लक्ष्य है और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है।
केंद्र सरकार का रुख:
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि वह आईपीसी में संशोधन करने या सम्मान के लिए हत्या और संबंधित मुद्दों के खतरे को दूर करने के लिए एक अलग कानून बनाने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए विभिन्न राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को शामिल कर रहा है।
उसने अदालत से यह भी कहा कि 242 वीं कानून आयोग की रिपोर्ट के माध्यम से भारतीय कानून आयोग ने ‘वैवाहिक गठबंधन की स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप का निषेध’ नामक एक विधेयक की सिफारिश की है। कई राज्य सरकारों ने न्यायालय में शपथ पत्र भी दायर किया कि वे सम्मान की हत्या (हॉनर किलिंग) से संबंधित अपराधों से कैसे निपटते हैं।
सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा स्वयं का फैसला फ्रांसीसी दार्शनिक और चिंतक सिमोन वेइल से एक उद्धरण से शुरू होता है, “लिबर्टी, शब्द को अपने ठोस अर्थ में चुनने में सक्षम होता है।”
Khap interference in marriage of two adults absolutely illegal: SC
Supreme Court of India upholds choice of consenting adults to love and marry as part of their fundamental rights. A three judge bench consisted of A.M. Khanwilkar, D.Y. Chandrachud and chief Justice Deepak Mishra.
Petition filed by Shakti Vahini NGO
The court was ruling a 2010 petition by NGO Shakti Vahini against khap panchayats and seeking directions to the centre and state governments for preventing honour crimes.
Central Government’s response:
The central government has said honour killings are treated as murders. It is the responsibility of the states to deal with them. It is consulting with state governments to frame a law to prohibit interference with freedom in matrimonial matters.
Khap Panchayat’s response:
Khap Panchayats argued that they are committed to spreading awareness of the permissibility of inter-community and inter-caste marriages.
But they are against sapinda and sagotra marriages.
What is Sapinda ?
Two persons are said to be "sapindas" of each other if one is a linear ascendant i.e. is a blood relative in the direct line of descent - the children, grandchildren, great-grandchildren, etc. of a person) of the other within the limits of "sapinda" relationship.
What is Sagorta?
It means from the same Gotra. In Hindu Law there are different gotras. If a person in relation to other person is of the same Gotra it is called Sagotra. It is customarily prohibited in many Hindu societies. However, Indian law doesn’t prohibit marriages between same gotra.
SC Judgement:
SC says that Court will decide whether something is prohibited or not in the case of Sapinda and Sagotra marriages. Any kind of ill-treatment by any assembly, by whatever name it is called, is illegal.
न्यायालयाचा निर्णय
स्वेच्छेने आंतर-जातीय आणि आंतर-धार्मिक विवाह करताना उद्भवणार्या विरोधाचा सामना करणार्या प्रौढांना या निर्णयामुळे दिलासा मिळणार आहे.
पारंपरिक संस्कृतीच्या नियमांनुसार पुराणमतवादी लोकांचा अश्या आंतरजातीय, सगोत्र (हिंदू पुराणानुसार) आणि आंतरधार्मिक विवाहास विरोध असतो आणि समाजात प्रतिष्ठेला बट्टा लागण्याचा समज असल्यामुळे विरोध दर्शवला जातो. मात्र अश्या प्रकारच्या विरोधात अनेक हिंसक घटना समोर आलेल्या आहेत. याविरोधात 2010 साली ‘शक्ती वाहिनी’ या NGO द्वारे दाखल केलेल्या जनहित याचिकेवर खंडपीठाने हा निर्णय दिला आहे.
न्यायालयाचा हा आदेश संसदेत कायदा तयार होतपर्यंत प्रभावी असणार. यापुढे विवाहामध्ये खाप पंचायतींच्या हस्तक्षेपावर बंदी असणार आहे. मात्र यावर अंतिम निर्णय देणे अजून बाकी आहे.
प्रौढ व्यक्तींच्या विवाहात खाप पंचायतीने हस्तक्षेप करणे पूर्णपणे अवैध आहे: न्यायालय
स्वेच्छेने आंतर-जातीय आणि आंतर-धार्मिक विवाह करणार्या प्रौढ व्यक्तींच्या बाबतीत खाप पंचायत सारख्या समूहांची दखल ही पुर्णपणे अवैध असल्याचे सर्वोच्च न्यायालयाने आपल्या निर्णयात स्पष्ट केले आहे.न्यायालयाचा निर्णय
- जर कोणतीही प्रौढ महिला व पुरुष विवाह करतात, तर कुटुंब, नातेवाईक, समाज किंवा खाप त्यावर प्रश्न उभा करू शकत नाही.
- जेव्हा दोन व्यक्ती विवाह करतात, तेव्हा त्यात कोणताही तृतीय पक्ष वैयक्तिक किंवा सामूहिक क्षमतेत हस्तक्षेप करू शकत नाही.
स्वेच्छेने आंतर-जातीय आणि आंतर-धार्मिक विवाह करताना उद्भवणार्या विरोधाचा सामना करणार्या प्रौढांना या निर्णयामुळे दिलासा मिळणार आहे.
पारंपरिक संस्कृतीच्या नियमांनुसार पुराणमतवादी लोकांचा अश्या आंतरजातीय, सगोत्र (हिंदू पुराणानुसार) आणि आंतरधार्मिक विवाहास विरोध असतो आणि समाजात प्रतिष्ठेला बट्टा लागण्याचा समज असल्यामुळे विरोध दर्शवला जातो. मात्र अश्या प्रकारच्या विरोधात अनेक हिंसक घटना समोर आलेल्या आहेत. याविरोधात 2010 साली ‘शक्ती वाहिनी’ या NGO द्वारे दाखल केलेल्या जनहित याचिकेवर खंडपीठाने हा निर्णय दिला आहे.
न्यायालयाचा हा आदेश संसदेत कायदा तयार होतपर्यंत प्रभावी असणार. यापुढे विवाहामध्ये खाप पंचायतींच्या हस्तक्षेपावर बंदी असणार आहे. मात्र यावर अंतिम निर्णय देणे अजून बाकी आहे.
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