करेंट अफेयर्स ८ फरवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
Scientists built First family tree for tropical forests
An international team of researchers, including Indians, unravels their evolutionary history
They may be oceans apart, but tropical forests in different continents across the world are related and share a common ancestry, according to a team of more than 100 researchers, including several Indian scientists.
The discovery, published on February 5 in the international journal Proceedings of the National Academy of Sciences, necessitates a new classification system for plant communities, which could help researchers predict the resilience or susceptibility of different forests to global environmental changes more accurately.
Million tree samples
⦁ To classify tropical forests based on their genetic relationships, scientists contributed almost one million tree samples of 15,000 species from tree plots across 400 locations in the world. Indian scientists from the Indian Institute of Science, Pondicherry University, Delhi University, Jawaharlal Nehru University, Bharathiar University, International Institute of Information Technology, Sigur Nature Trust (SNT) and the Kerala Forest Research Institute also contributed to this data.
⦁ Another finding is that dry forests found in India, America, Africa and Madagascar are also closely related to each other.
⦁ In terms of fundamental science, these are important results in botanical research,” said India-based ecologist Jean-Philippe Puyravaud of Masinagudi’s Sigur Nature Trust, who contributed to the study. “Forests and vegetation are uniquely shaped by their history, and we need to make more efforts to conserve them.
⦁ According to the authors, different forests may be more vulnerable or resilient to climate change and deforestation, so understanding similarities and differences between forests will help inform conservation efforts.
प्रा. फेरी स्लीक (ब्रुनेइ दारुसलाम विद्यापीठ) यांच्या नेतृत्वात चमूने केलेल्या अभ्यासात असे आढळून आले आहे की, जगभरातील विविध खंडांमध्ये आढळून येणार्या उष्ण कटिबंधी जंगले जरी महासागरांमुळे विभाजित झाले असले तरी त्यांचे मूळ हे एकमेकांशी संबंधित आहेत आणि त्यांचा एकच वंश आहे.
हिंद-प्रशांत, उप-उष्ण कटिबंध, आफ्रिका, अमेरिका आणि कोरडी वने या पाच मुख्य वन क्षेत्रांमध्ये हा अभ्यास चालवला गेला.
अभ्यासाचे निष्कर्ष
आफ्रिका आणि दक्षिण अमेरिका प्रदेशमधील वने यांच्यामध्ये अगदी जवळचा संबंध आहे. त्यांच्यामधील फरक हा गेल्या 100 दशलक्ष वर्षांमध्ये झालेला आहे. ही बाब एकूणच खंडाच्या विभाजनाची कथा सांगते, म्हणजेच कदाचित दक्षिण अमेरिका आणि आफ्रिका हे अंदाजे 140 दशलक्ष वर्षांपूर्वी तुटून अटलांटिक महासागराची निर्मिती झालेली असावी.
भारत, अमेरिका, आफ्रिका आणि मादागास्कर येथे असलेली कोरडी वने यांच्यामध्येही संबंध आहे.
आशियाई उष्ण कटिबंध प्रदेशामध्ये आढळून येणार्या वनस्पती प्रजातींमध्ये भारत हा मुख्य केंद्र ठरत आहे, कारण की आशियात आढळून येणार्या मुख्य इमारती लाकडाचा वर्ग ‘डायप्टेरोकारपसेइ’ यासारख्या अत्यंत महत्त्वाच्या झाडांच्या कुटुंबाचा प्रसार भारतामधूनच 45 दशलक्ष वर्षांपूर्वी संपूर्ण आशियात झालेला असावा.
अभ्यासाचे महत्त्व आणि भारतीय वाटा
वनांमधील अनुवांशिक नाते यावर आधारित उष्ण कटिबंधी वनांचे वर्गीकरण करण्यासाठी, शास्त्रज्ञांनी जगातून 400 ठिकाणांहून 15,000 प्रजातींच्या झाडांचे जवळपास एक दशलक्ष नमुने घेतले.
या अभ्यासामुळे संशोधक अधिक अचूकपणे जागतिक पर्यावरणात होणार्या बदलांचा या वनांवर होणारा परिणाम आणि त्यांचे स्थितिस्थापकत्व किंवा संवेदनशीलता याबाबत अंदाज बांधण्यास मदत होऊ शकणार.
IISc बेंगरूळ, पाँडिचेरी विद्यापीठ, दिल्ली विद्यापीठ, जवाहरलाल नेहरू विद्यापीठ, भारथियर विद्यापीठ, IIIT, सिंगूर नेचर ट्रस्ट (SNT) आणि केरळ वन संशोधन संस्था यामधील भारतीय शास्त्रज्ञांचाही या अभ्यासात वाटा आहे.
हा शोधाभ्यास ‘नॅशनल अकॅडमी ऑफ सायन्सेस’ या आंतरराष्ट्रीय नियतकालिकेत प्रकाशित करण्यात आला आहे.
हिंदी
वैज्ञानिकों ने उष्णकटिबंधीय वनों के लिए पहला फैमिली ट्री बनाया:
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम, जिसमें भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं, ने उष्णकटिबंधीय वनों के क्रमिक विकास से संबंधी (एवोल्यूशनरी) इतिहास को उजागर किया है।
कई भारतीय वैज्ञानिकों सहित 100 से अधिक शोधकर्ताओं की एक टीम के अनुसार, उष्णकटिबंधीय वन भले ही एक दूसरे से कितनी भी दूरी पर स्थित हों, लेकिन वे दुनिया भर के विभिन्न महाद्वीपों में स्थित अन्य उष्णकटिबंधीय जंगलों से संबंध रखते हैं और एक समान वंश का हिस्सा हैं। यह खोज, 5 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित की गयी थी।
अपने आनुवंशिक संबंधों के आधार पर उष्णकटिबंधीय जंगलों को वर्गीकृत करने के लिए, वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के 400 स्थानों से पेड़ के भूखंडों से लगभग 15,000 प्रजातियों के लगभग 10 लाख पेड़ के नमूने एकत्र किये थे।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, भृतहरि यूनिवर्सिटी, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी, सिगुर नेचर ट्रस्ट (एसएनटी) और केरल वन अनुसंधान संस्थान के भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इस डेटा में योगदान दिया है।
इन प्रजातियों की आनुवांशिक जानकारी को शामिल करते हुए, वैज्ञानिक फ़ेरी स्लिक (यूनिवर्सिटी ब्रुनेई दारुस्सलाम) की अगुआई वाली टीम ने एक फैमिली ट्री का निर्माण किया ताकि यह ज्ञात किया जा सके कि ये पेड़ लाखों साल के विकास के माध्यम से कैसे एक दूसरे से संबंधित हैं।
इसके साथ ही, उन्होंने उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पांच प्रमुख वन क्षेत्रों की पहचान की है: इंडो-प्रशांत क्षेत्र, उप-उष्णकटिबंधीय क्षत्रे, अफ्रीकी क्षेत्र, अमेरिकी क्षेत्र और शुष्क वन क्षेत्र।
एक अन्य खोज यह है कि भारत, अमेरिका, अफ्रीका और मेडागास्कर में पाए जाने वाले शुष्क वनों का भी एक दूसरे से काफी करीबी संबंध है।
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम, जिसमें भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं, ने उष्णकटिबंधीय वनों के क्रमिक विकास से संबंधी (एवोल्यूशनरी) इतिहास को उजागर किया है।
कई भारतीय वैज्ञानिकों सहित 100 से अधिक शोधकर्ताओं की एक टीम के अनुसार, उष्णकटिबंधीय वन भले ही एक दूसरे से कितनी भी दूरी पर स्थित हों, लेकिन वे दुनिया भर के विभिन्न महाद्वीपों में स्थित अन्य उष्णकटिबंधीय जंगलों से संबंध रखते हैं और एक समान वंश का हिस्सा हैं। यह खोज, 5 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित की गयी थी।
अपने आनुवंशिक संबंधों के आधार पर उष्णकटिबंधीय जंगलों को वर्गीकृत करने के लिए, वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के 400 स्थानों से पेड़ के भूखंडों से लगभग 15,000 प्रजातियों के लगभग 10 लाख पेड़ के नमूने एकत्र किये थे।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, भृतहरि यूनिवर्सिटी, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी, सिगुर नेचर ट्रस्ट (एसएनटी) और केरल वन अनुसंधान संस्थान के भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इस डेटा में योगदान दिया है।
इन प्रजातियों की आनुवांशिक जानकारी को शामिल करते हुए, वैज्ञानिक फ़ेरी स्लिक (यूनिवर्सिटी ब्रुनेई दारुस्सलाम) की अगुआई वाली टीम ने एक फैमिली ट्री का निर्माण किया ताकि यह ज्ञात किया जा सके कि ये पेड़ लाखों साल के विकास के माध्यम से कैसे एक दूसरे से संबंधित हैं।
इसके साथ ही, उन्होंने उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पांच प्रमुख वन क्षेत्रों की पहचान की है: इंडो-प्रशांत क्षेत्र, उप-उष्णकटिबंधीय क्षत्रे, अफ्रीकी क्षेत्र, अमेरिकी क्षेत्र और शुष्क वन क्षेत्र।
एक अन्य खोज यह है कि भारत, अमेरिका, अफ्रीका और मेडागास्कर में पाए जाने वाले शुष्क वनों का भी एक दूसरे से काफी करीबी संबंध है।
इंग्लिश
Scientists built First family tree for tropical forests
An international team of researchers, including Indians, unravels their evolutionary history
They may be oceans apart, but tropical forests in different continents across the world are related and share a common ancestry, according to a team of more than 100 researchers, including several Indian scientists.
The discovery, published on February 5 in the international journal Proceedings of the National Academy of Sciences, necessitates a new classification system for plant communities, which could help researchers predict the resilience or susceptibility of different forests to global environmental changes more accurately.
Million tree samples
⦁ To classify tropical forests based on their genetic relationships, scientists contributed almost one million tree samples of 15,000 species from tree plots across 400 locations in the world. Indian scientists from the Indian Institute of Science, Pondicherry University, Delhi University, Jawaharlal Nehru University, Bharathiar University, International Institute of Information Technology, Sigur Nature Trust (SNT) and the Kerala Forest Research Institute also contributed to this data.
⦁ Another finding is that dry forests found in India, America, Africa and Madagascar are also closely related to each other.
⦁ In terms of fundamental science, these are important results in botanical research,” said India-based ecologist Jean-Philippe Puyravaud of Masinagudi’s Sigur Nature Trust, who contributed to the study. “Forests and vegetation are uniquely shaped by their history, and we need to make more efforts to conserve them.
⦁ According to the authors, different forests may be more vulnerable or resilient to climate change and deforestation, so understanding similarities and differences between forests will help inform conservation efforts.
मराठी
शास्त्रज्ञांनी उष्ण कटिबंधी जंगलांसाठी प्रथमच कुटुंब संस्था तयार केली
अनेक भारतीयांचा समावेश असलेल्या 100 हून अधिक संशोधकांच्या चमूने उष्ण कटिबंधी जंगलांचा अभ्यास केला आणि त्यांनी या जंगलांसाठी प्रथमच एक कुटुंब संस्था तयार केली आहे, जेणेकरून त्यांचे मूळ जन्मभूमी आणि त्यांची उत्पत्ती याबाबत संपूर्ण माहिती मिळणार.प्रा. फेरी स्लीक (ब्रुनेइ दारुसलाम विद्यापीठ) यांच्या नेतृत्वात चमूने केलेल्या अभ्यासात असे आढळून आले आहे की, जगभरातील विविध खंडांमध्ये आढळून येणार्या उष्ण कटिबंधी जंगले जरी महासागरांमुळे विभाजित झाले असले तरी त्यांचे मूळ हे एकमेकांशी संबंधित आहेत आणि त्यांचा एकच वंश आहे.
हिंद-प्रशांत, उप-उष्ण कटिबंध, आफ्रिका, अमेरिका आणि कोरडी वने या पाच मुख्य वन क्षेत्रांमध्ये हा अभ्यास चालवला गेला.
अभ्यासाचे निष्कर्ष
आफ्रिका आणि दक्षिण अमेरिका प्रदेशमधील वने यांच्यामध्ये अगदी जवळचा संबंध आहे. त्यांच्यामधील फरक हा गेल्या 100 दशलक्ष वर्षांमध्ये झालेला आहे. ही बाब एकूणच खंडाच्या विभाजनाची कथा सांगते, म्हणजेच कदाचित दक्षिण अमेरिका आणि आफ्रिका हे अंदाजे 140 दशलक्ष वर्षांपूर्वी तुटून अटलांटिक महासागराची निर्मिती झालेली असावी.
भारत, अमेरिका, आफ्रिका आणि मादागास्कर येथे असलेली कोरडी वने यांच्यामध्येही संबंध आहे.
आशियाई उष्ण कटिबंध प्रदेशामध्ये आढळून येणार्या वनस्पती प्रजातींमध्ये भारत हा मुख्य केंद्र ठरत आहे, कारण की आशियात आढळून येणार्या मुख्य इमारती लाकडाचा वर्ग ‘डायप्टेरोकारपसेइ’ यासारख्या अत्यंत महत्त्वाच्या झाडांच्या कुटुंबाचा प्रसार भारतामधूनच 45 दशलक्ष वर्षांपूर्वी संपूर्ण आशियात झालेला असावा.
अभ्यासाचे महत्त्व आणि भारतीय वाटा
वनांमधील अनुवांशिक नाते यावर आधारित उष्ण कटिबंधी वनांचे वर्गीकरण करण्यासाठी, शास्त्रज्ञांनी जगातून 400 ठिकाणांहून 15,000 प्रजातींच्या झाडांचे जवळपास एक दशलक्ष नमुने घेतले.
या अभ्यासामुळे संशोधक अधिक अचूकपणे जागतिक पर्यावरणात होणार्या बदलांचा या वनांवर होणारा परिणाम आणि त्यांचे स्थितिस्थापकत्व किंवा संवेदनशीलता याबाबत अंदाज बांधण्यास मदत होऊ शकणार.
IISc बेंगरूळ, पाँडिचेरी विद्यापीठ, दिल्ली विद्यापीठ, जवाहरलाल नेहरू विद्यापीठ, भारथियर विद्यापीठ, IIIT, सिंगूर नेचर ट्रस्ट (SNT) आणि केरळ वन संशोधन संस्था यामधील भारतीय शास्त्रज्ञांचाही या अभ्यासात वाटा आहे.
हा शोधाभ्यास ‘नॅशनल अकॅडमी ऑफ सायन्सेस’ या आंतरराष्ट्रीय नियतकालिकेत प्रकाशित करण्यात आला आहे.
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