Current affairs 17 January 2018 - Hindi / English / Marathi
समितीच्या शिफारसी
2000 साली तत्कालीन उपपंतप्रधान लालकृष्ण अडवाणी यांच्या नेतृत्वात असलेल्या गृहमंत्रालयाने गुन्हेगारी न्याय यंत्रणेतल्या सुधारणा या संदर्भात समितीची स्थापना केली होती. त्या समितीचे नेतृत्व कर्नाटकचे माजी मुख्य न्यायमूर्ती व केरळ उच्च न्यायालयाचे न्यायाधीश व्ही. एस. मलिमथ यांनी केले होते.
दोन वर्षांच्या अभ्यासानंतर, समितीने आपल्या दोन खंडांच्या अहवालामध्ये पोलीस, सुनावणी, न्यायव्यवस्था आणि गुन्हेगारी न्यायप्रक्रिया 158 शिफारसी केल्या होत्या, परंतु त्या अंमलात आणल्या गेल्या नाहीत.
Hindi
सरकार आपराधिक न्याय प्रणाली पर आधारित वीएस मलिमथ समिति की रिपोर्ट पर पुनः विचार करेगी:
मलिमथ समिति आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने हेतु जस्टिस वीएस मलिमथ की अध्यक्षता में गठित की गयी एक समिति थी। इस समिति का गठन वर्ष 2000 में, गृह मंत्रालय द्वारा तत्कालीन उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी द्वारा किया गया था। वह उस समय गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे। जस्टिस वीएस मलिमथ कर्नाटक और केरल राज्य के उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं।
जनवरी महीने की शुरुआत में मध्य प्रदेश के टेकनपुर में आयोजित पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) के वार्षिक सम्मेलन में मलिमथ समिति की रिपोर्ट पर चर्चा की गयी थी, इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी भी उपस्थित थे।
मलिमथ समिति की सिफारिशें:
समिति ने एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन करने और न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया को अनुच्छेद 124 में संशोधन कर सरल करने का सुझाव दिया था।
मलिमथ समिति ने सिफारिश की है कि उच्च न्यायालय में, मुख्य न्यायाधीश को केवल समान दर्जे वाले लोगों के बीच में पहला माना जाए। उसका अपने सहयोगियों पर कोई अधिकार नहीं है, उसका कार्य केवल पीठ (बेंच) का गठन करना और काम को बाँटना है।
इस समिति ने यह सुझाव दिया था कि साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) की धारा 54 को एक प्रावधान द्वारा इस प्रकार लागू किया जाएगा कि आपराधिक मामलों में, खराब चरित्र और पूर्ववर्ती व्यवहार का सबूत प्रासंगिक हो।
जिस प्रकार अभियुक्त के अच्छे चरित्र का सबूत प्रासंगिक है ठीक उसी प्रकार अभियुक्त के खराब चरित्र के बारे में दिया गया सबूत भी प्रासंगिक होना चाहिए।
मलिमथ पैनल ने 158 सिफारिशें बनाई थी, लेकिन ये कभी लागू नहीं हुईं। वर्ष 2004-2014 के बीच आयी यूपीए सरकार ने भी रिपोर्ट की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी।
मलिमथ समिति आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने हेतु जस्टिस वीएस मलिमथ की अध्यक्षता में गठित की गयी एक समिति थी। इस समिति का गठन वर्ष 2000 में, गृह मंत्रालय द्वारा तत्कालीन उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी द्वारा किया गया था। वह उस समय गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे। जस्टिस वीएस मलिमथ कर्नाटक और केरल राज्य के उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं।
जनवरी महीने की शुरुआत में मध्य प्रदेश के टेकनपुर में आयोजित पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) के वार्षिक सम्मेलन में मलिमथ समिति की रिपोर्ट पर चर्चा की गयी थी, इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी भी उपस्थित थे।
मलिमथ समिति की सिफारिशें:
समिति ने एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन करने और न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया को अनुच्छेद 124 में संशोधन कर सरल करने का सुझाव दिया था।
मलिमथ समिति ने सिफारिश की है कि उच्च न्यायालय में, मुख्य न्यायाधीश को केवल समान दर्जे वाले लोगों के बीच में पहला माना जाए। उसका अपने सहयोगियों पर कोई अधिकार नहीं है, उसका कार्य केवल पीठ (बेंच) का गठन करना और काम को बाँटना है।
इस समिति ने यह सुझाव दिया था कि साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) की धारा 54 को एक प्रावधान द्वारा इस प्रकार लागू किया जाएगा कि आपराधिक मामलों में, खराब चरित्र और पूर्ववर्ती व्यवहार का सबूत प्रासंगिक हो।
जिस प्रकार अभियुक्त के अच्छे चरित्र का सबूत प्रासंगिक है ठीक उसी प्रकार अभियुक्त के खराब चरित्र के बारे में दिया गया सबूत भी प्रासंगिक होना चाहिए।
मलिमथ पैनल ने 158 सिफारिशें बनाई थी, लेकिन ये कभी लागू नहीं हुईं। वर्ष 2004-2014 के बीच आयी यूपीए सरकार ने भी रिपोर्ट की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी।
English
Government to revisit Malimath report on criminal justice system
Malimath Committee:
Malimath Committee is the Committee on Reforms of the Criminal Justice System, or the Justice Malimath Committee, was constituted by the Home Ministry in 2000 by then Deputy Prime Minister L.K. Advani, who also held the Home portfolio. It was headed by Justice V.S. Malimath, former Chief Justice of the Karnataka and Kerala High Courts.
Recommendations by the Committee:
Malimath Committee:
Malimath Committee is the Committee on Reforms of the Criminal Justice System, or the Justice Malimath Committee, was constituted by the Home Ministry in 2000 by then Deputy Prime Minister L.K. Advani, who also held the Home portfolio. It was headed by Justice V.S. Malimath, former Chief Justice of the Karnataka and Kerala High Courts.
Recommendations by the Committee:
- The Committee suggested that constituting a National Judicial Commission and amending Article 124 to make impeachment of judges less difficult.
- The Committee however, feels that the aberrations in the conduct of judges can be checked or even corrected if the problem is noticed at the earliest and efforts made to correct them.
- The Malimath committee has recommended that In the High Court, the Chief Justice is regarded as only the first among the equals. He does not have any charge over his peers, he only holds the power for constituting benches and assigning the work. Any decision to be taken should come through the consensus.
- It had suggested that Section 54 of Evidence Act be substituted by a provision to the effect that in criminal cases, evidence of bad character and antecedents is relevant. “Just as evidence of good character of the accused is relevant, evidence regarding bad character of the accused should also be relevant.
Marathi
गुन्हेगारी न्याय यंत्रणेसंदर्भात मलिमथ अहवालाचा आढावा घेतला जाणार
गुन्हेगारी न्याय यंत्रणेत सुधारणांविषयी 2003 साली एक समिती तयार केली गेली होती. त्या समितीने दिलेल्या अहवालाचे पुन्हा एकदा पुनरावलोकन करण्याचा भारत सरकारने निर्णय घेतला आहे.समितीच्या शिफारसी
- एखाद्या पोलिस अधिकाऱ्यासमोर गुन्हा केल्याचा कबुलीजबाब न्यायालयात पुरावा म्हणून ग्राह्य धरला जावा.
- राष्ट्रीय न्यायिक आयोगाची स्थापना करणे आणि न्यायाधीशांची महाभियोग प्रक्रिया कमी खडतर करण्यासाठी घटनेच्या कलम 124 मध्ये दुरूस्ती केली जावी.
- न्यायाधीशांच्या वर्तनातील मतभेदांची तपासणी केली जाऊ शकते किंवा जर प्रारंभीच समस्या समजली गेली तर ती दुरूस्त करण्यासाठी प्रयत्न केले जावे.
- उच्च न्यायालयामध्ये, मुख्य न्यायाधीशांना सर्व न्यायाधीशांमध्ये प्रथम समजले जाते. पीठ तयार करणे आणि कामाची नेमणूक ही कार्ये वगळता, मुख्य न्यायाधीश आपल्या सहकार्यांवर कोणत्याही अधिकारांचा वापर करीत नाही. त्यामुळे कोणत्याही संस्थेसाठी आवश्यक असणारी शिस्त हळूहळू कमी झालेली आहे.
- पुरावा कायद्याच्या कलम 54 अन्वये अशी तरतूद असावी, ज्यानुसार फौजदारी खटल्यांमध्ये खराब वर्तनाचा पुरावा आणि इतिहास हे संबंधित आहे. आरोपींच्या खराब वर्तनाचे पुरावे देखील प्रासंगिक असावेत.
- न्यायालयाला साक्षीदार म्हणून एखाद्या व्यक्तीची साक्ष घेण्यासाठी आणि तपासणी करण्यास आणि सत्य शोधण्यात मदत करण्यासाठी अधिकार्यांना आवश्यक दिशानिर्देश देण्याचे अधिकार देणे.
- आरोपींना दिला गेलेला चूप बसण्याचा अधिकार (आपल्याविरुद्ध साक्ष व्हायला नको असल्यास चूपचाप राहण्याचा अधिकार) यामध्ये दुरूस्ती करावी, जेणेकरून आरोपीने कोर्टाने केलेल्या प्रश्नांचे उत्तर देण्यास नकार दिल्यास न्यायालयाला सत्य तपासण्याच्या उद्देशाने आरोपींचे परिक्षण करण्याचा अधिकार दिला गेला पाहिजे.
- नवीन पोलीस कायद्यासाठी पोलीस आयोगाची शिफारश करण्यात आली आणि फौजदारी खटल्यांचा निपटारा करण्यासाठी फौजदारी खटल्यांत विशेषज्ञ असलेल्या न्यायाधीशांच्या अध्यक्षतेत सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयात कायम स्वरूपी खंडपीठ स्थापित करावे.
2000 साली तत्कालीन उपपंतप्रधान लालकृष्ण अडवाणी यांच्या नेतृत्वात असलेल्या गृहमंत्रालयाने गुन्हेगारी न्याय यंत्रणेतल्या सुधारणा या संदर्भात समितीची स्थापना केली होती. त्या समितीचे नेतृत्व कर्नाटकचे माजी मुख्य न्यायमूर्ती व केरळ उच्च न्यायालयाचे न्यायाधीश व्ही. एस. मलिमथ यांनी केले होते.
दोन वर्षांच्या अभ्यासानंतर, समितीने आपल्या दोन खंडांच्या अहवालामध्ये पोलीस, सुनावणी, न्यायव्यवस्था आणि गुन्हेगारी न्यायप्रक्रिया 158 शिफारसी केल्या होत्या, परंतु त्या अंमलात आणल्या गेल्या नाहीत.
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