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    Thursday, September 6, 2018

    Section 377 struck down partially; Homosexuality legalised in India ● धारा 377 आंशिक रूपसे ख़त्म. ● समलैंगिक संबंध गुन्हा ठरत नाही: सर्वोच्च न्यायालयाचा निर्णय

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    Current Affairs 6 September 2018
    करेंट अफेयर्स 6 सप्टेंबर 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी



    Hindi | हिंदी

    धारा 377 आंशिक रूप से ख़त्म

    • आईपीसी की धारा 377, जिसमे समलैंगिकता को अपराध माना जाता है, की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है।
    • बता दें, कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक हिस्से को, जो सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताता है, तर्कहीन, बचाव नहीं करने वाला और मनमाना भी करार दिया।
    • उच्चतम न्यायालय धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त किया है, क्योंकि इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है।
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन क्रिया से संबंधित धारा 377 का हिस्सा पहले की तरह अपराध की श्रेणी में ही रखा गया है।
    • यही नहीं पशुओं के साथ किसी तरह की यौन क्रिया भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध बनी रहेगी।
    • उच्चतम न्यायालय ने यौन रुझान को जैविक स्थिति बताते हुए कहा कि इस आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और जहां तक किसी निजी स्थान पर आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का सवाल है तो ना यह हानिकारक है और ना ही समाज के लिए संक्रामक है।
    • यही नहीं फैसला पढ़ते हुए न्यायाधीश नरीमन ने कहा सरकार, मीडिया को उच्चतम न्यायलय के फैसले का व्यापक प्रचार करना चाहिए ताकि एलजीबीटीक्यू समुदाय को भेदभाव का सामना न करना पड़े।
    • इससे पहले सुप्रीम कोर्ट होमोसेक्सुएलिटी यानि समलैंगिकता को क्रिमिनल एक्ट बता चुका था, जिसको दोबारा चुनौती देते हुए क्युरिटिव पिटिशन दाखिल की गई थी। बता दें कि कई वर्षों से समुदाय इसे अपराध की श्रेणी में रखे जाने का विरोध करता आ रहा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मुहर लगा दी है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है।
    जानें क्या है धारा 377
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के मुताबिक कोई किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो यह अपराध होगा।
    • इस अपराध के लिए उसे उम्रकैद या 10 साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड का भागी होना पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो धारा-377 के मुताबिक अगर दो अडल्ट (18+) आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध होगा।
    एलजीबीटी क्या है?
    • एलजीबीटी का पूरा नाम है -Lesbian, gay, bisexual, and transgender.
    • एलजीबीटी टर्म 1990 के दशक से उपयोग में है और इसका मतलब ''लेस्बियन, गे और बाइसेक्सुअल व ट्रांसजेंडर से है।
    • एलजीबीटी समुदाय में वे लोग आते हैं जो उसी लिंग के लोगों को पसंद करते हैं जिस लिंग के वे खुद हैं।




    English | इंग्लिश


    Section 377 struck down partially; Homosexuality legalised in India

    SC five-judge bench: Chief Justice of India Dipak Misra and comprising Justices Fali Nariman, A M Khanwilkar, D Y Chandrachud and Indu Malhotra.
    Petitioners: Dancer Navtej Jauhar, journalist Sunil Mehra, chef Ritu Dalmia, hoteliers Aman Nath and Keshav Suri and business executive Ayesha Kapur.

    What is the Issue?

    The bench to decide on whether to decriminalise Section 377 or not.

    Judgment: Section 377 struck down partially

    Clauses of Section 377 that criminalised consensual sex between adults have been struck down by the Supreme Court. A constitutional bench concurred that this section of the law cannot be regarded as constitutional.
    However, sexual activity with animals and other related clauses in Section 377 will remain criminal. Any act without consent of any one of the partners would still invoke Criminality under 377

    What Constitutional Bench said?

    Primary objective of having a Constitutional society is to transform the society progressively; Constitutional provisions should not be interpreted in literal sense.
    Sexual orientation of an individual is natural and discrimination on the basis of sexual orientation is a violation of Freedom of Expression.
    LGBT Community has same rights as of any ordinary citizen. Respect for each others rights, and others are supreme humanity. Criminalising gay sex is irrational and indefensible.
    The provision of IPC had resulted in collateral effect in that consensual sex between LGBT person is criminalised and is violative of Article 14.

    What is Section 377?

    Section 377, criminalizing gay sex, refers to 'unnatural offences' and says whoever voluntarily has carnal intercourse against the order of nature with any man, woman or animal, shall be punished with
    • imprisonment for life
    • imprisonment of either description for a term which may extend to ten years, and shall also be liable to fine
    It is contained in Indian Penal Code of 1860 drafted on the recommendation of first Law Commission set up in 1834 under the chairmanship Thomas Babington Macaulay.
    The section was modelled on the Buggery Act of 1533 which punished the vice of buggerie (anal intercourse)

    What is LGBTQ

    Lesbian, Gay, Bi-sexual, Transgender and Queer (In use since 1990s)

    Facts to Ponder

    • Constitute 5-10% of workforce but 80% face discrimination
    • World Bank says homophobia costs India $31 billion a year
    • Manavendra Singh Gohil, better known as Prince Manavedra, the world’s first openly gay member of royalty, who stands disowned now by family

    A Timeline

    1994: ABVA, an NGO, files petition in Delhi HC seeking repeal of Section 377 after Tihar male inmates denied condoms.
    2001: Issue first raised by NGO Naaz Foundation by approaching the Delhi High Court.
    July 2, 2009: Delhi HC under the Justice (retd) AP Shah decriminalised sex between consenting adults of the same gender by holding the penal provision as "illegal".  It violated Article 14, 15 and 21 of the Constitution.
    In the court, however, government had argued that homosexuality comprises only 0.3 percent of the population, and therefore the rights of over 99 per cent cannot be compromised.
    December 11, 2013: A two-judge bench of the Supreme Court in December 2013 struck down the Delhi HC verdict and said it was "legally unsustainable", recriminalised gay sex. The SC also left it to Parliament to consider deleting the provision from the IPC.
    2014: LGBT community hope increased with SC directed the government to declare transgender a 'third gender' and include them in the OBC quota.
    August 24, 2017: The SC in Puttaswamy judgment had upheld the Right to Privacy as a fundamental right under the Constitution. The SC also had called for equality and condemned discrimination, stating that the protection of sexual orientation lies at the core of the fundamental rights and that the rights of the LGBT population are real and founded on constitutional doctrine.
    January 2018: Riding on the back of the SC's verdict on the right to privacy being a fundamental right, a petition challenging Section 377 was assigned to a five-judge Constitution bench.






    Marathi | मराठी

    समलैंगिक संबंध गुन्हा ठरत नाही: सर्वोच्च न्यायालयाचा निर्णय

    परस्परसंमतीने ठेवल्या जाणाऱ्या समलैंगिक संबंधांना गुन्हा ठरवणाऱ्या भारतीय दंड संहितेच्या (IPC) ‘कलम 377’च्या घटनात्मक वैधतेला आव्हान देणाऱ्या याचिकांवर सर्वोच्च न्यायालयाने निकाल देत “समलैंगिकांनाही समान अधिकार आहेत, त्यामुळे दोन सज्ञान व्यक्तींनी ठेवलेले संबंध ही खासगीबाब आहे आणि ते गुन्हा ठरत नाही”, असा ऐतिहासिक निर्णय भारताचे सरन्यायाधीश दिपक मिश्रा यांच्या अध्यक्षतेखाली घटनापीठाने दिला आहे.
    मात्र प्राणी आणि लहान मुलांसह अनैसर्गिक संभोगासाठी कलम 377 अस्तित्वात आहे.
    केंद्र सरकारने दोन प्रौढांनी परस्परसंमतीने केलेल्या अनैसर्गिक संभोगाला गुन्हा ठरवण्याशी संबंधित दंडात्मक तरतुदींच्या घटनात्मक वैधतेचा मुद्दा न्यायालयावर सोपवला होता. अल्पवयीन मुले आणि प्राणी यांच्याशी अनैसर्गिक संभोगाबाबतच्या दंडात्मक तरतुदींचे इतर पैलू कायद्यात तसेच कायम राहू दिले जावेत, अशी भूमिका केंद्र सरकारने घेतली होती.
    कलम 377 बाबत
    • भारतीय दंड संहितेच्या कलम 377 अनुसार, अनैसर्गिक गुन्ह्यांचा हवाला देते असे म्हटले गेले आहे की कोणताही पुरुष, स्त्री वा पशुसोबत निसर्गाच्या विरुद्ध लैंगिक संबंध प्रस्थापित केल्यास, या गुन्ह्यादाखल त्या व्यक्तीस आजीवन कारावास दिला जाणार किंवा एक निश्चित कालावधी, जो 10 वर्षांपर्यंत वाढवला जाऊ शकतो आणि त्यावर रोख दंड देखील आकारला जाईल.
    • यापूर्वी 2009 साली दिल्ली उच्च न्यायालयाने समलैंगिकतेला गुन्हाच्या श्रेणीमधून हटविण्याचा निर्णय दिला होता. या निर्णयाला बदलत 2013 साली सर्वोच्च न्यायालयाने वयस्क समलैंगिकांच्या संबंधांना अवैध ठरवले होते.
    • मात्र, सर्वसाधारणपणे लैंगिक गुन्हे तेव्हाच गुन्हे मानले जातात जेव्हा शोषित व्यक्तीच्या सहमती शिवाय केले गेले असेल. मात्र कलम 377 च्या व्याख्येत कुठेही सहमती वा असहमती शब्दांचा वापर केला गेलेला नाही. यामुळे समलैंगिकांच्या सहमतीने प्रस्थापित केल्या गेलेल्या लैंगिक संबंधांना देखील गुन्ह्याच्या श्रेणीत मानल्या जाते.
    • कलम 377 ला 1860 साली इंग्रजांकडून भारतीय दंड संहितेत समाविष्ट केले गेले होते. त्यावेळी ख्रिस्ती धर्मातही अश्या संबंधाना अनैतिक मानले जात होते. मात्र 1967 साली ब्रिटनने देखील समलैंगिक संबंधांना अधिकृत मान्यता दिली.





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