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    Sunday, May 20, 2018

    Governor's discretion cannot be arbitrary or fanciful: SC Constitution Bench राज्यपालांचा विवेकाधिकार मनमानी किंवा पक्षपाती असू शकत नाही: सर्वोच्च न्यायालय राज्यपाल का विवेकाधिकार मनमाना अथवा पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक पीठ

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    करेंट अफेयर्स 20 मे 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
    / currentaffairs



    Governor's discretion cannot be arbitrary or fanciful: SC Constitution Bench

    राज्यपालांचा विवेकाधिकार मनमानी किंवा पक्षपाती असू शकत नाही: सर्वोच्च न्यायालय

    राज्यपाल का विवेकाधिकार मनमाना अथवा पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक पीठ


    हिंदी


    राज्यपाल का विवेकाधिकार मनमाना अथवा पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक पीठ
    अपने भाषण में डॉ बी आर आंबेडकर ने राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका को वर्णित करते हुए कहा था कि राज्यपाल को अपने विवेकाधिकार का उपयोग "पार्टी के प्रतिनिधि" के रूप में नहीं बल्कि "पूरे राज्य के लोगों के प्रतिनिधि" के रूप में करना चाहिए।
    मुद्दा:
    कर्नाटक मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी की चुनौती के पीछे मूल संवैधानिक मुद्दा यह है कि क्या राज्यपाल वजुभाई वाला के द्वारा प्रोटेम स्पीकर के रूप में वी.पी. बोपैया की नियुक्ति राज्यपाल संबंधी विवेकाधिकार का "मनमाना" उपयोग है?
    अनुच्छेद 180 (1):
    संविधान के अनुच्छेद 180 (1) में राज्यपाल को प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त करने की शक्ति मिलती है। अनुच्छेद के अनुसार, यदि स्पीकर की कुर्सी खाली हो जाती है और इस स्थिति को भरने के लिए कोई डिप्टी स्पीकर उपलब्ध न हो तो कार्यालय के कर्तव्यों को "विधानसभा के ऐसे सदस्य द्वारा किया जाएगा जिसकी नियुक्ति राज्यपाल इस उद्देश्य के लिए करेगा।"
    अनुच्छेद 180 (1) इस बारे में चुप है कि राज्यपाल अपने विवेकाधिकार का उपयोग किस सीमा तक कर सकता है।
    उच्चतम न्यायालय का पूर्व में लिया गया निर्णय:
    बीजेपी ने संविधान के अनुच्छेद 163 (2) का हवाला देते हुए राज्यपाल द्वारा बोपैया की नियुक्ति का बचाव किया है। इस अनुच्छेद के अनुसार, "राज्यपाल द्वारा किए गए किसी भी कार्य की वैधता पर इस आधार पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जाएगा कि उसने अपने विवेक से यह कार्य किया है अथवा नहीं।"
    लेकिन पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक बेंच ने वर्ष 2016 के नाबाम रेबिया के केस में यह फैसला सुनाया था कि अनुच्छेद 163 राज्यपालों को "सामान्य विवेकाधिकार शक्ति" नहीं देता है।
    राज्यपाल के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले विवेकाधिकार का क्षेत्र सीमित है। यहां तक कि इस सीमित क्षेत्र में भी, उनकी कार्यवाही मनमानी या पक्षपातपूर्ण नहीं होनी चाहिए। यह विवेकाधिकार तर्कपूर्ण एवं विवेकपूर्ण होना चाहिए।


    इंग्लिश


    Governor's discretion cannot be arbitrary or fanciful: SC Constitution Bench

    The controversy arose in the light of Karnataka governor appointing V P Bopaiah as pro-tem speaker.
    The core constitutional issue behind the Congress party's challenge is whether the appointment of V.P. Bopaiah by Karnataka Governor Vajubhai Vala is an “arbitrary” use of gubernatorial discretion.

    What Constitution says? 

    Article 180 (1) of the Constitution gives the Governor the power to appoint a pro-tem Speaker. The Article says that if the chair of the Speaker falls vacant and there is no Deputy Speaker to fill the position, the duties of the office shall be performed “by such member of the Assembly as the Governor may appoint for the purpose”.What Constitution says
    But the five-judge Constitution Bench of the Supreme Court led by then Chief Justice J.S. Khehar in the Nabam Rebia judgement of 2016 ruled that Article 163 does not give Governors a “general discretionary power” as is often misunderstood.
    The area for the exercise of his (Governor) discretion is limited. Even this limited area, his choice of action should not be arbitrary or fanciful. It must be a choice dictated by reason, actuated by good faith and tempered by caution,” the Constitution Bench, of which the current Chief Justice Dipak Misra was a part of, held.






    मराठी



    राज्यपालांचा विवेकाधिकार मनमानी किंवा पक्षपाती असू शकत नाही: सर्वोच्च न्यायालय

    कर्नाटकाचे राज्यपाल वजुभाई वाला यांच्याद्वारे प्रो-टेम स्पीकर म्हणून व्ही. पी. बोपैया यांची नियुक्ती केली गेली. या निर्णयाला कॉंग्रेस पक्षाने सर्वोच्च न्यायालयात आव्हान दिले आहे आणि याला एक संवैधानिक मुद्दा मानला जात आहे.
    राज्यपालांनी आपल्या विवेकाधिकाराचा "मनमानी" वापर केला असे पक्षाचे म्हणणे आहे.
    न्यायालयाचा निर्णय
    सर्वोच्च न्यायालयाने 19 मे 2018 रोजी कर्नाटक विधानसभेत बहुमताने निर्णय घेण्यासाठी पार्श्वपरीक्षा घेण्यासाठी प्रो-टेम स्पीकरच्या नेमणुकीचे आदेश दिले आहेत. तसेच नियुक्ती करण्याची जबाबदारी राज्यपालाची आहे आणि त्यांचा विवेकाधिकार मनमानी किंवा पक्षपाती असू शकत नाही, असे वक्तव्य केले.
    अनुच्छेद 180 बाबत
    संविधानाचे अनुच्छेद 180 (1) अन्वये राज्यपालाला प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त करण्याचे अधिकार आहे. त्यानुसार, जर सभापतीची जागा रिक्त होते आणि या पदाला भरण्यासाठी उपसभापति उपलब्ध नसेल तर कार्यालयाच्या कर्तव्यांना "विधानसभेच्या अश्या सदस्याद्वारे केले जाईल ज्याची नियुक्ती राज्यपाल या उद्देशासाठी करणार" मात्र याच्या मर्यादा यात स्पष्ट नाहीत.




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