करेंट अफेयर्स १४ एप्रिल २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
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विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर सुझाव देने की तारीख बढ़ाई:
भारत का विधि आयोग समान नागरिक संहिता विषय की जांच कर रहा है। विधि आयोग ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों द्वारा सुझाव देने की तारीख छह मई तक के लिए बढ़ा दी है। पहले यह समय सीमा छह अप्रैल तक थी। आयोग ने 19 मार्च को सभी पक्षों से समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर अपना विचार और अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अनुरोध किया था।
इस सप्ताह के शुरू में जारी नए नोटिस में आयोग ने कहा है कि अब तक इस मुद्दे पर 60 हजार से ज्यादा जवाब मिल चुके हैं। इसके अलावा संबंधित पक्षों ने अपना विचार रखने के लिए और ज्यादा समय मांगा है। इसे देखते हुए सुझाव देने की समय सीमा बढ़ाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में शामिल रहा है।
समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है?
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है।दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है।
समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं।
सामान नागरिक संहिता की वैश्विक स्थिति:
समान नागरिक संहिता केवल कानून का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह लोगों की सोच का विषय भी है। फ्राँस में समान नागरिक संहिता लागू है जो वहाँ के हर नागरिक पर लागू होती है। यूनाइटेड किंगडम में इंग्लिश कॉमन लॉ लागू है तो अमेरिका में फेडरल लेवल पर कॉमन लॉ सिस्टम लागू है। ऑस्ट्रेलिया में भी इंग्लिश कॉमन लॉ की तरह कॉमन लॉ सिस्टम लागू है। जर्मनी और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में भी सिविल लॉ सिस्टम लागू हैं।
भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता:
समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।
संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर समान नागरिकता के समर्थक थे। उन्होंने संविधान सभा में कहा भी था, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि समान नागरिक संहिता का इतना विरोध क्यों हो रहा है? यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है कि क्या भारत जैसे देश के लिये समान नागरिक संहिता लागू करना संभव है? क्या ऐसा करना उचित होगा?”
समान नागरिक संहिता के लाभ:
अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा।
भारत का विधि आयोग समान नागरिक संहिता विषय की जांच कर रहा है। विधि आयोग ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों द्वारा सुझाव देने की तारीख छह मई तक के लिए बढ़ा दी है। पहले यह समय सीमा छह अप्रैल तक थी। आयोग ने 19 मार्च को सभी पक्षों से समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर अपना विचार और अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अनुरोध किया था।
इस सप्ताह के शुरू में जारी नए नोटिस में आयोग ने कहा है कि अब तक इस मुद्दे पर 60 हजार से ज्यादा जवाब मिल चुके हैं। इसके अलावा संबंधित पक्षों ने अपना विचार रखने के लिए और ज्यादा समय मांगा है। इसे देखते हुए सुझाव देने की समय सीमा बढ़ाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में शामिल रहा है।
समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है?
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है।दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है।
समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं।
सामान नागरिक संहिता की वैश्विक स्थिति:
समान नागरिक संहिता केवल कानून का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह लोगों की सोच का विषय भी है। फ्राँस में समान नागरिक संहिता लागू है जो वहाँ के हर नागरिक पर लागू होती है। यूनाइटेड किंगडम में इंग्लिश कॉमन लॉ लागू है तो अमेरिका में फेडरल लेवल पर कॉमन लॉ सिस्टम लागू है। ऑस्ट्रेलिया में भी इंग्लिश कॉमन लॉ की तरह कॉमन लॉ सिस्टम लागू है। जर्मनी और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में भी सिविल लॉ सिस्टम लागू हैं।
भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता:
समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।
संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर समान नागरिकता के समर्थक थे। उन्होंने संविधान सभा में कहा भी था, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि समान नागरिक संहिता का इतना विरोध क्यों हो रहा है? यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है कि क्या भारत जैसे देश के लिये समान नागरिक संहिता लागू करना संभव है? क्या ऐसा करना उचित होगा?”
समान नागरिक संहिता के लाभ:
अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा।
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एकसमान नागरी कायदा: एक आव्हान
अलीकडेच आपल्या कानी आपण ‘एकसमान नागरी कायदा’ (Uniform Civil Code) हा मुद्दा येत आहे. आज आपण याबाबत जाणून घेऊयात –वैयक्तिक कायद्यांमुळे बर्याच मुस्लीम महिलांच्या जीवनावर विपरीत प्रभाव पडलेला आढळून आलेला आहे. त्या अनुषंगाने संवैधानिक समानता आणि स्वातंत्र्य ही त्यांची मूलभूत अधिकार मिळविण्यासाठी अलीकडेच सर्वोच्च न्यायालयाकडे बहुतेकांनी धाव घेतली आहे.
त्यामुळे केंद्रीय विधी मंत्रालयाने अलीकडेच कायदा आयोगाकडे एकसमान नागरी कायद्याच्या अंमलबजावणी संबंधी बाबींची तपासणी करण्यासाठी विचारणा केली आहे.
एकसमान नागरी कायदा म्हणजे काय आहे?
भारतात एकसमान नागरी कायदा (UCC) प्रत्येक नागरीकाला समान प्रशासनाने देशभरातील प्रत्येक प्रमुख धार्मिक समुदायाच्या ग्रंथ आणि प्रथांवर आधारित वैयक्तिक कायदे बदलण्याचा प्रस्ताव मांडत आहे.
राज्य धोरणाचे एक मार्गदर्शक तत्त्व म्हणून भारताच्या राज्यघटनेत अनुच्छेद 44 मध्ये एकसमान नागरी कायद्याची तरतूद आहे, जे असे म्हणते की, "राज्य संपूर्ण भारतभर एकसमान नागरी कायद्याखाली नागरिकांना सुरक्षित करण्यासाठी प्रयत्न करणार."
या कायद्याची का गरज भासते?
सर्व नागरिकांना समान दर्जा प्रदान करणे - आधुनिक काळात एक धर्मनिरपेक्ष लोकशाही प्रजासत्ताकाने धर्म, वर्ग, जात, लिंग इत्यादी विचारात न घेता आपल्या नागरिकांसाठी एकसमान नागरी आणि वैयक्तिक कायदे असणे आवश्यक आहे.
सामान्यतः असे आढळून आले आहे की जवळजवळ सर्व धर्मांचे वैयक्तिक कायदे स्त्रियांप्रती भेदभाव करतात. उत्तराधिकार आणि वारसातील बहुतेक पुरुषांना सामान्यतः उच्च प्राधान्य दर्जा देण्यात येतो. लैंगिक समतोल राखण्याच्या दृष्टीने एकसमान नागरी कायदा पुरुष आणि स्त्री अश्या दोन्हीला बरोबरीने आणेल.
राष्ट्रीय एकात्मतेचे समर्थन करण्यासाठी एकसमान नागरी कायद्याच्या अंमलबजावणीसह, सर्व नागरिक वैयक्तिक कायद्यांचे समान संच सामायिक करतील. शिवाय विद्यमान वैयक्तिक कायद्यांतील सुधारणांचा विवादास्पद मुद्दा टाळण्यासाठी मदत होणार.
भारतापुढील आव्हान
धर्म, पंथ, जाती, राज्ये इत्यादींमधील प्रचंड सांस्कृतिक विविधतेमुळे विवाह सारख्या वैयक्तिक विषयांसाठी सामान्य व एकसमान नियमांचा संच तयार करणे हे अत्यंत अवघड आहे.
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