करेंट अफेयर्स १० मार्च २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
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उच्चतम न्यायलय की पांच जजों की पीठ ने निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की इजाजत दी:
उच्चतम न्यायलय में मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेसिया) और लिविंग विल (इच्छा मृत्यु की वसीयत) को कुछ शर्तों के साथ अनुमति प्रदान कर दी है। इच्छामृत्यु को अनुमति देने के बाद कोर्ट ने कहा कि मनुष्य को सम्मान के साथ मरने का अधिकार है। अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह कब आखिरी सांस लेगा।
लिविंग विल' एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश दे देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी ना दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाएगा।
क्या है इच्छा मृत्यु?
इच्छामृत्यु का मतलब किसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टर की सहायता से उसके जीवन का अंत करना है। यूथनेशिया (Euthanasia) मूलतः ग्रीक (यूनानी) शब्द है। जिसमें Eu का मतलब अच्छी और Thanatos का अर्थ मृत्यु होता है। इसे मर्सी किलिंग भी कहा जाता है। दुनियाभर में इच्छा-मृत्यु की इजाज़त देने की मांग बढ़ी है।
इच्छामृत्यु को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहली सक्रिय इच्छामृत्यु (ऐक्टिव यूथेनेजिया) और दूसरी निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेजिया). सक्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की सहायता से उसे जहर का इंजेक्शन देने जैसा कदम उठाकर किया जा सकता है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु यानि वो मामले, जहां लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति लंबे समय से कोमा में हो। तब रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टर उसके जीवनरक्षक उपकरण बंद कर देते हैं। उसके जीवन का अंत हो जाता है। हालांकि बहुत से लोग मानते हैं कि सक्रिय हो या निष्क्रिय, इच्छामृत्यु हत्या है।
क्या कहता है भारतीय क़ानून?
भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही अवैधानिक कृत्य हैं ये भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या का अपराध है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अनुमति प्रदान की है।
प्रमुख तथ्य:
कोर्ट ने यह फैसला एनजीओ कॉमन कॉज की याचिका पर दिया है। एनजीओ ने लिविंग विल और इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता देने के लिए याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में कहा गया था कि यदि कोई शख्स मरणासन्न स्थिति में पहुंच जाता है तो उन्हें जीवनरक्षक से हटाने का अधिकार दे दिया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया था कि कैसे किसी शख्स को कहा जा सकता है कि उसे अपने शरीर पर होने वाली यातनाओं को रोकने का अधिकार नहीं है? जीने के अधिकार के साथ ही मरने का अधिकार निहित है। किसी शख्स को जीवनरक्षक पर जिंदा रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
किसी मरीज की इच्छा के बिना उसे कृत्रिम साधनों के जरिए जिंदा रखना उसके शरीर पर अत्याचार है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि ठीक नहीं होने वाली बीमारी से पीड़ित मरीजों को इलाज से मना करने की इजाजत दी जा सकती है। इस संबंध में बिल का मसौदा तैयार कर लिया गया है।
देश जहाँ इच्छा मृत्यु का प्रावधान है:
अमेरिका - यहां सक्रिय इच्छा मृत्यु ग़ैर-क़ानूनी है लेकिन ओरेगन, वॉशिंगटन और मोंटाना राज्यों में डॉक्टर की सलाह और उसकी मदद से मरने की इजाज़त है। स्विट्ज़रलैंड - यहां ख़ुद से ज़हरीली सुई लेकर आत्महत्या करने की इजाज़त है, हालांकि इच्छा मृत्यु ग़ैर- क़ानूनी है। नीदरलैंड्स - यहां डॉक्टरों के हाथों सक्रिय इच्छा मृत्यु और मरीज की मर्ज़ी से दी जाने वाली मृत्यु पर दंडनीय अपराध नहीं है।
बेल्जियम - यहां सितंबर 2002 से इच्छा मृत्यु वैधानिक हो चुकी है। ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों सहित दुनिया के ज़्यादातर देशों में इच्छा मृत्यु ग़ैर-क़ानूनी है।
सरकार का रुख:
सरकार का कहना था कि लिविंग विल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए यानी लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को विल (वसीयत) के जरिए इलाज को रोकने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सरकार का कहना था कि इसका दुरुपयोग हो सकता है और सैद्धांतिक रूप से भी यह सही नहीं है।
वहीं संविधान पीठ ने कहा था कि जीने के अधिकार में मरने का अधिकार निहित नहीं है, लिहाजा व्यक्ति और राज्य के हितों में संतुलन जरूरी है। नागरिकों को संरक्षण देना राज्य का दायित्व है। अगर हम सम्मान के साथ मरने का अधिकार देते हैं तो मृत्यु की प्रक्रिया का सम्मान क्यों नहीं होना चाहिए।
उच्चतम न्यायलय में मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेसिया) और लिविंग विल (इच्छा मृत्यु की वसीयत) को कुछ शर्तों के साथ अनुमति प्रदान कर दी है। इच्छामृत्यु को अनुमति देने के बाद कोर्ट ने कहा कि मनुष्य को सम्मान के साथ मरने का अधिकार है। अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह कब आखिरी सांस लेगा।
लिविंग विल' एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश दे देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी ना दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाएगा।
क्या है इच्छा मृत्यु?
इच्छामृत्यु का मतलब किसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टर की सहायता से उसके जीवन का अंत करना है। यूथनेशिया (Euthanasia) मूलतः ग्रीक (यूनानी) शब्द है। जिसमें Eu का मतलब अच्छी और Thanatos का अर्थ मृत्यु होता है। इसे मर्सी किलिंग भी कहा जाता है। दुनियाभर में इच्छा-मृत्यु की इजाज़त देने की मांग बढ़ी है।
इच्छामृत्यु को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहली सक्रिय इच्छामृत्यु (ऐक्टिव यूथेनेजिया) और दूसरी निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेजिया). सक्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की सहायता से उसे जहर का इंजेक्शन देने जैसा कदम उठाकर किया जा सकता है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु यानि वो मामले, जहां लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति लंबे समय से कोमा में हो। तब रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टर उसके जीवनरक्षक उपकरण बंद कर देते हैं। उसके जीवन का अंत हो जाता है। हालांकि बहुत से लोग मानते हैं कि सक्रिय हो या निष्क्रिय, इच्छामृत्यु हत्या है।
क्या कहता है भारतीय क़ानून?
भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही अवैधानिक कृत्य हैं ये भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या का अपराध है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अनुमति प्रदान की है।
प्रमुख तथ्य:
कोर्ट ने यह फैसला एनजीओ कॉमन कॉज की याचिका पर दिया है। एनजीओ ने लिविंग विल और इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता देने के लिए याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में कहा गया था कि यदि कोई शख्स मरणासन्न स्थिति में पहुंच जाता है तो उन्हें जीवनरक्षक से हटाने का अधिकार दे दिया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया था कि कैसे किसी शख्स को कहा जा सकता है कि उसे अपने शरीर पर होने वाली यातनाओं को रोकने का अधिकार नहीं है? जीने के अधिकार के साथ ही मरने का अधिकार निहित है। किसी शख्स को जीवनरक्षक पर जिंदा रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
किसी मरीज की इच्छा के बिना उसे कृत्रिम साधनों के जरिए जिंदा रखना उसके शरीर पर अत्याचार है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि ठीक नहीं होने वाली बीमारी से पीड़ित मरीजों को इलाज से मना करने की इजाजत दी जा सकती है। इस संबंध में बिल का मसौदा तैयार कर लिया गया है।
देश जहाँ इच्छा मृत्यु का प्रावधान है:
अमेरिका - यहां सक्रिय इच्छा मृत्यु ग़ैर-क़ानूनी है लेकिन ओरेगन, वॉशिंगटन और मोंटाना राज्यों में डॉक्टर की सलाह और उसकी मदद से मरने की इजाज़त है। स्विट्ज़रलैंड - यहां ख़ुद से ज़हरीली सुई लेकर आत्महत्या करने की इजाज़त है, हालांकि इच्छा मृत्यु ग़ैर- क़ानूनी है। नीदरलैंड्स - यहां डॉक्टरों के हाथों सक्रिय इच्छा मृत्यु और मरीज की मर्ज़ी से दी जाने वाली मृत्यु पर दंडनीय अपराध नहीं है।
बेल्जियम - यहां सितंबर 2002 से इच्छा मृत्यु वैधानिक हो चुकी है। ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों सहित दुनिया के ज़्यादातर देशों में इच्छा मृत्यु ग़ैर-क़ानूनी है।
सरकार का रुख:
सरकार का कहना था कि लिविंग विल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए यानी लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को विल (वसीयत) के जरिए इलाज को रोकने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सरकार का कहना था कि इसका दुरुपयोग हो सकता है और सैद्धांतिक रूप से भी यह सही नहीं है।
वहीं संविधान पीठ ने कहा था कि जीने के अधिकार में मरने का अधिकार निहित नहीं है, लिहाजा व्यक्ति और राज्य के हितों में संतुलन जरूरी है। नागरिकों को संरक्षण देना राज्य का दायित्व है। अगर हम सम्मान के साथ मरने का अधिकार देते हैं तो मृत्यु की प्रक्रिया का सम्मान क्यों नहीं होना चाहिए।
इंग्लिश
Passive Euthanasia in India
Supreme Court of India on 8th Feb declared passive euthanasia and the right of persons, to give advance directives to refuse medical treatment permissible. According to Chief Justice, Deepak Mishra, fundamental right to life and dignity also includes right to refuse treatment and die with dignity.
He took reference from constitutional provision mentioned in fundamental right, “meaningful coexistence” – the choice to die without suffering. SC gave its verdict on a petition filed by Common Cause.
However, court said ‘living will’ will be permitted but with the permission from family members of the person who sought passive Euthanasia and also a team of doctors who say that person’s revival is practically impossible.
What is a Living Will?
Living will is a written document that allows a patient to give explicit instructions in advance about the medical treatment to be administered when he or she is terminally ill or no longer able to express informed consent.
What is the contention?
- Doctors who attend the terminally ill patients might be apprehended for criminal liability.
- According to Art 21 "no person shall be deprived of his life or personal liberty except according to procedure established by law." Earlier in Aruna Shanbaug's case (2011), SC allowed removal of life sustain treatments from patients not capable of making an informed decision.
The Netherlands: Issued rules for passive or involuntary euthanasia called Groningen guidelines in 2004. Rules were expanded in 2006 after reports that doctors were killing new-borns if found ill. Netherlands was the first country to pass such guidelines.
Switzerland: Article 115 of the penal code does not consider assisting suicide for an honourable motive illegal. Lethal drugs can be taken with assistance.
Germany: In June 2010 Federal Court allowed passive euthanasia with applicant’s consent.
United Kingdom: The bill on euthanasia was rejected by the House of Commons in 2004 and House of Lords in 2007.
France: Under the end of life law of 2009, doctors are advised not to take extreme measures to keep dying or brain dead patients alive.
Albania: Passive euthanasia was allowed in 1995 through a law if 3 or members agree to withdraw life support systems.
Luxembourg: Permits active euthanasia for over 18 years in age
Quebec province of Canada: On 5 June 2014 adopted legislation Right-to-Die allowing terminally ill patients to kill themselves with a doctor’s help.
मराठी
सर्वोच्च न्यायालयाची स्वेच्छा मरणाला सर्शत परवानगी
स्वेच्छा मरणाबाबत सर्वोच्च न्यायालयाने 9 मार्च 2018 रोजी ऐतिहासिक निर्णय दिला असून, न्यायलयाने स्वेच्छा मरणाला सर्शत परवानगी दिली आहे.'कॉमन कॉज' या एनजीओने याबाबत सर्वोच्च न्यायालयात याचिका दाखल केली होती. त्यावर सर्वोच्च न्यायालयाचे सरन्यायाधीश दीपक मिश्रा यांच्या अध्यक्षतेखाली न्या. ए. के. सिकरी, न्या. ए. एम. खानविलकर, न्या. डी. वाय. चंद्रचूड आणि न्या. ए. भूषण यांच्या घटनापीठाने हा ऐतिहासिक निर्णय दिला आहे.
निर्णय काय म्हणतो?
ज्या व्यक्तीला शेवटच्या टप्प्यातील दुर्धर आजार असून, हा आजार बरा होउच शकत नाही अशांनाच परवानगी दिली गेली आहे. यासाठी एखादी व्यक्ती जिवंतपणी असे इच्छापत्र करु शकते की ''भविष्यात मी कधीही बरा होऊ न शकणाऱ्या कोमामध्ये गेल्यास मला कृत्रिमरित्या जगवणारी वैद्यकीय सेवा (व्हेंटिलेटर) देऊ नये''.
घटनेने प्रत्येक व्यक्तीला सन्मानाने जगण्याचा अधिकार दिला आहे. याचाच अर्थ घटनापीठाने सन्मानाने मरण्याचाही अधिकार दिला असल्याचे यावेळी न्यायलयाने नमुद केले.
या तऱ्हेचे मृत्यूपत्र अमलात आणताना स्वेच्छा मरण द्यायचे असल्यास निर्दिष्ट मार्गदर्शक तत्त्वांनुसार, अंतिम निर्णय घेण्याचा हा अधिकार कोणाला आहे याचे स्पष्ट निर्देश असायला हवेत. तसेच वैद्यकीय मंडळाचा निकालात उल्लेख केला असून, रुग्ण उपचारापलीकडे गेला आहे का? हा प्रश्न विचारात घेणे. त्याला परिस्थितीचे कुठलेही भान नसून, तो पुन्हा बरा होऊ शकत नाही या गोष्टींची खातरजमा वैद्यकीय मंडळाने करणे बंधनकारक असेल.
हा निर्णय ऐतिहासिक ठरणार असून अनेक वृद्ध तसेच जराजर्जर रुग्णांसाठी महत्त्वाचा आहे.
जागतिक दृष्टीकोण
जगभरात अनेक देशांमध्ये या मुद्द्यावरून चर्चा झालेली आहे. नेदरलँड, स्वित्झर्लंड, जर्मनी, अल्बेनिया तसेच कॅनडाच्या क्वेबेक प्रांत यासारख्या देशांनी स्वेच्छा मरणाला देशात परवानगी दिलेली आहे. यात नेदरलँड्स हा पहिला देश आहे, ज्याने याबाबत दिशानिर्देश तयार केलेले आहेत. ब्रिटनने यासंबंधी प्रस्तावाला दोनदा नाकारले होते. लक्झेमबर्गमध्ये 18 वर्षांपेक्षा अधिक वयाच्या लोकांना सक्रिय असताना स्वेच्छा मरण मान्य केलेले आहे.
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