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    Monday, February 5, 2018

    स्टैनफोर्ड परीक्षण में कैंसर पीड़ित चूहे का वैक्सीन द्वारा उपचार किया गया:करेंट अफेयर्स ५ फरवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी

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    करेंट अफेयर्स ५ फरवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी


    हिंदी

    स्टैनफोर्ड परीक्षण में कैंसर पीड़ित चूहे का वैक्सीन द्वारा उपचार किया गया:
    कैंसर के उपचार की संभावनाएं अब साकार होने लगी हैं और यह सम्भव है कि निकट भविष्य में बस एक वैक्सीन (टीके) के जरिये इसकी चिकित्सा की जा सकेगी। शोधकर्ताओं ने हाल ही में कैंसर पीड़ित चूहों पर एक वैक्सीन का टेस्ट किया।
    इन शोधकर्ताओं ने चूहों के ट्यूमर के अंदर सीधे दो तत्वों तो इंजेक्ट किया, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई। माना जा रहा है कि ये चूहों के अंदर से हर तरह के कैंसर को खत्म करने में सक्षम है।
    हाल ही में मनुष्यों में होने वाले लिम्फैटिक कैंसर (लिम्फोमा) के उपचार के लिए जनवरी में उन पर यह प्रयोग किया गया था। 'साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन' नाम की पत्रिका में छपे एक अध्ययन के अनुसार यह तरीका कई तरह के कैंसर पर काम करता है। शोधकर्ताओं का मानना है इस दवा का छोटा सा हिस्सा भी तेजी से कैंसर को खत्म कर सकेगा। इसमें खर्च भी काफी कम होगा और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा।
    अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोनाल्ड लेवी ने कहा कि इस दवा को देने से बहुत तेजी से शरीर से ट्यूमर खत्म होने लगता है। खास बात ये है कि इस विधि में पूरे शरीर नहीं, बल्कि बस ट्यूमर के अंदर की कोशिकाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय कर दिया जाता है। लेवी ने कहा इस दवा के जरिये चूहों में हमें ग़ज़ब के परिणाम दिखे. उनके पूरे शरीर से ट्यूमर खत्म हो गया था।
    आमतौर पर कैंसर इम्यून सिस्टम की जानकारी में एक अजनबी या बाहरी तत्व की तरह रहता है। इम्यून कोशिकाएं खासकर T कोशिकाएं कैंसर में मौजूद इन अलग तरह की कोशिकाओं की पहचान कर लेती हैं और उन्हें खत्म करने की कोशिश में लग जाती हैं।
    हालांकि ये कैंसर को खत्म करने में सफल नहीं हो पातींं और ट्यूमर बढ़ता जाता है। लेकिन कैंसर की ये दवा जब ट्यूमर में इंजेक्ट की जाती है तो वो इन T कोशिकाओं को फिर से सक्रिय कर देती है, जिससे कैंसर को खत्म करने में मदद मिलती है।


    इंग्लिश



    Cancer breakthrough Vaccine cures mice of cancer in Stanford test

    Raising hopes for a cancer vaccine for different types of cancers, researchers have found that injecting minute amounts of two immune-stimulating agents directly into solid tumours in mice can eliminate all traces of cancer in the animals.
    A clinical trial was launched in January to test the effect of the treatment in humans with lymphoma, cancer of the lymphatic system.
    The approach works for many different types of cancers, including those that arise spontaneously, said the study published in the journal Science Translational Medicine.
    The researchers believe the local application of very small amounts of the agents could serve as a rapid and relatively inexpensive cancer therapy that is unlikely to cause the adverse side effects often seen with bodywide immune stimulation. This approach bypasses the need to identify tumour-specific immune targets and doesn't require wholesale activation of the immune system or customisation of a patient's immune cells.
    Cancers often exist in a strange kind of limbo with regard to the immune system. Immune cells like T cells recognise the abnormal proteins often present on cancer cells and infiltrate to attack the tumour. However, as the tumour grows, it often devises ways to suppress the activity of the T cells.
    Levy's method works to reactivate the cancer-specific T cells by injecting microgram (one-millionth of a gram) amounts of two agents directly into the tumour site. The other, an antibody that binds to OX40, activates the T cells to lead the charge against the cancer cells. Because the two agents are injected directly into the tumour, only T cells that have infiltrated it are activated. In effect, these T cells are "prescreened" by the body to recognise only cancer-specific proteins. This is a very targeted approach



    मराठी


    स्टॅनफोर्ड चाचणीत कर्करोगाने ग्रस्त उंदरावर विकसित लसीचा प्रयोग

    अमेरिकेच्या स्टॅनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन येथील संशोधकांनी कर्करोगावर उपचार करण्यासाठी एक लस शोधून काढलेली आहे. भविष्यात कर्करोगाला आळा घालणारी एक लस विकसित होण्यासाठी यामुळे मार्ग मोकळा झाला आहे.
    प्रा. रोनाल्ड लेव्ही यांच्या नेतृत्वात संशोधकांच्या या चमूने या औषधाचा उपयोग कर्करोगाने ग्रस्त उंदरावर एका प्रयोगात केला. संशोधकांनी उंदीराच्या गाठीमध्ये दोन घटकांना सुईद्वारे सोडले, ज्यामुळे उंदरांची रोग प्रतिकारक क्षमता वाढली. या औषधीचे अगदी थोडे प्रमाण वेगाने कर्करोगाच्या पेशी नष्ट करण्यात सक्षम आहे. यामध्ये खर्च देखील कमी आहे.
    प्रयोगाबाबत
    या उपचार पद्धतीमध्ये, औषध पूर्ण शरीरात सक्रियपणे कार्य करीत नसून, त्याचा परिणाम फक्त गाठीच्या आतमधील पेशींची कर्करोगाच्या विरोधात प्रतिकारक क्षमतेला सक्रिय करते. प्रयोगात असे आढळून आले आहे कि, उंदीराच्या संपूर्ण शरीरातील कर्करोगग्रस्त गाठी नष्ट झाल्या.
    साधारणपणे रोगप्रतिकारक क्षमता प्रणालीच्या माहितीत कर्करोग एक अनोळखी बाह्य तत्त्व म्हणून ओळखला जातो. रोगप्रतिकारक पेशी मुख्यताः T-पेशी कर्करोगामध्ये उपस्थित या वेगळ्याप्रकारच्या पेशींची ओळख करून घेते आणि त्यांना नष्ट करण्यास काम चालू करते. मात्र तरीही कर्करोगाच्या पेशींची वाढ होतच असते आणि गाठी वाढतच जातात.
    प्रयोगात या गाठीमध्ये जेव्हा नवे औषध सोडले गेले, तेव्हा T-पेशी पुन्हा एकदा सक्रिय होतात आणि कर्करोग नष्ट करण्यात मदत होते.
    अलीकडेच मनुष्यामध्ये आढळणार्‍या लिम्फेटिक कर्करोग (लिम्फोमा) च्या उपचारासाठी जानेवारीमध्ये एक प्रयोगात या औषधीचा वापर केला होता. हा शोधाभ्यास 'सायन्स ट्रान्सलेशनल मेडिसिन' नामक नियतकालिकेत प्रसिद्ध करण्यात आला.


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