करेंट अफेयर्स १४ फरवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
या अभियानांतर्गत जिल्हा आरोग्य शिक्षण अधिकार्यांना दोन दिवसांच्या प्रशिक्षणासोबतच अभियानामध्ये उपयोगात आणल्या जाणार्या ध्वनीमुद्रित चलचित्रपट, रेडियो जाहिराती, एन्सेफलायटीस संबंधी घेतल्या जाणार्या काळजी घेण्यासाठीचे साहित्य व स्वच्छता किट आणि अन्य माहिती प्रदान केले गेले.
अभियानाच्या मुख्य बाबी
जपानी एन्सेफलायटीस या आजाराची लागण झाल्यास मेंदूला सूज येते. हा आजार ‘फ्लॅवी’ विषाणूमुळे होता. 1871 साली पहिल्यांदा जपानमध्ये आढळून आला, त्यामुळे त्याला ‘जपानी ज्वर’ असेही नाव दिले गेले आहे. हा प्रामुख्याने लहान बालकांना प्रभावित करतो. ‘फ्लॅवी’ विषाणू जंगली डुक्कर व पक्ष्यांच्या माध्यमातून पसरतो.
हिंदी
उत्तर प्रदेश ने जापानी इन्सेफलाइटिस का उन्मूलन करने के लिए दस्तक अभियान की शुरुआत की:
12 फरवरी 2018 को पूर्वी उत्तर प्रदेश में फैले जापानी इन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) की रोकथाम और चिकित्सा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘दस्तक’ अभियान की शुरुआत की।
इस अभियान का क्रियान्वन इसलिए किया जा रहा है ताकि लोग किसी भी तरह के होने वाले बुखार में लापरवाही ना करें, क्योंकि यह जापानी इन्सेफलाइटिस का मामला भी हो सकता है।
प्रमुख तथ्य:
अभियान में उत्तर प्रदेश के पाँच साल से कम उम्र के सभी बच्चों में खून की कमी की जाँच, छः माह से पाँच वर्ष तक के गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान और नौ माह से पाँच वर्ष तक के बच्चों को विटामिन ‘ए’ का घोल दिया जायेगा।
इसके अतिरिक्त दस्त रोग, निमोनिया और जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की पहचान कर उन्हें निःशुल्क जाँच उपचार और परिवहन सेवा दी जायेगी। जापानी इन्सेफलाइटिस से प्रभावित जिलों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाया जा रहा दस्तक अभियान लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करेगा।
इस अभियान में राज्य के 38 प्रभावित जिलों में टीवी, रेडियो, और समाचार पत्रों के माध्यम से जापानी इन्सेफलाइटिस से सम्बंधित जानकारी और बचाव के उपाय प्रसारित किये जायेंगे।
स्वास्थ्य कार्यकर्ता गोरखपुर एवं बस्ती मंडल के सात प्रभावित जिलों में घर-घर जाकर जापानी इन्सेफलाइटिस के उपचार और बचाव के बारे में लोगों को बताएँगे।
जापानी इन्सेफलाइटिस की व्यापकता:
जापानी इन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) घातक वेक्टर जनित रोग है, जिसकी वजह से राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत होती है। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम निदेशालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2010 से अगस्त 2017 के बीच दिमागी बुखार के 26 हजार 686 मामले सूचित हुए।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 26 हजार 686 मामलों में से 24 हजार 668 मामले एईएस के और 2018 मामले जेई के थे। एईएस से पीड़ित 4093 मरीजों की उक्त समयावधि में मौत हो गई जबकि जेई से पीड़ित 308 मरीजों की जान गई।
एईएस के लगभग 60 फीसदी मामले पूर्वी उत्तर प्रदेश में होते हैं और इनमें से भी अधिकांश मामले गोरखपुर और बस्ती मंडलों से होते हैं। बच्चे इस बीमारी के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील होते हैं। सूचित होने वाले मामलों में 85 फीसदी मामले दस साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं।
12 फरवरी 2018 को पूर्वी उत्तर प्रदेश में फैले जापानी इन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) की रोकथाम और चिकित्सा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘दस्तक’ अभियान की शुरुआत की।
इस अभियान का क्रियान्वन इसलिए किया जा रहा है ताकि लोग किसी भी तरह के होने वाले बुखार में लापरवाही ना करें, क्योंकि यह जापानी इन्सेफलाइटिस का मामला भी हो सकता है।
प्रमुख तथ्य:
अभियान में उत्तर प्रदेश के पाँच साल से कम उम्र के सभी बच्चों में खून की कमी की जाँच, छः माह से पाँच वर्ष तक के गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान और नौ माह से पाँच वर्ष तक के बच्चों को विटामिन ‘ए’ का घोल दिया जायेगा।
इसके अतिरिक्त दस्त रोग, निमोनिया और जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की पहचान कर उन्हें निःशुल्क जाँच उपचार और परिवहन सेवा दी जायेगी। जापानी इन्सेफलाइटिस से प्रभावित जिलों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाया जा रहा दस्तक अभियान लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करेगा।
इस अभियान में राज्य के 38 प्रभावित जिलों में टीवी, रेडियो, और समाचार पत्रों के माध्यम से जापानी इन्सेफलाइटिस से सम्बंधित जानकारी और बचाव के उपाय प्रसारित किये जायेंगे।
स्वास्थ्य कार्यकर्ता गोरखपुर एवं बस्ती मंडल के सात प्रभावित जिलों में घर-घर जाकर जापानी इन्सेफलाइटिस के उपचार और बचाव के बारे में लोगों को बताएँगे।
जापानी इन्सेफलाइटिस की व्यापकता:
जापानी इन्सेफलाइटिस (दिमागी बुखार) घातक वेक्टर जनित रोग है, जिसकी वजह से राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत होती है। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम निदेशालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2010 से अगस्त 2017 के बीच दिमागी बुखार के 26 हजार 686 मामले सूचित हुए।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 26 हजार 686 मामलों में से 24 हजार 668 मामले एईएस के और 2018 मामले जेई के थे। एईएस से पीड़ित 4093 मरीजों की उक्त समयावधि में मौत हो गई जबकि जेई से पीड़ित 308 मरीजों की जान गई।
एईएस के लगभग 60 फीसदी मामले पूर्वी उत्तर प्रदेश में होते हैं और इनमें से भी अधिकांश मामले गोरखपुर और बस्ती मंडलों से होते हैं। बच्चे इस बीमारी के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील होते हैं। सूचित होने वाले मामलों में 85 फीसदी मामले दस साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं।
इंग्लिश
मराठी
उत्तरप्रदेशात जपानी एन्सेफलायटीसच्या निर्मूलनासाठी ‘दस्तक’ अभियानाचा शुभारंभ
पूर्व उत्तरप्रदेशात पसरलेल्या जपानी एन्सेफलायटीस (मेंदूला सूज येणे) रोगावर नियंत्रण मिळविण्यासाठी आणि उपचारांच्या बाबतीत लोकांमध्ये जागृती निर्माण करण्याकरिता 12 फेब्रुवारी 2018 रोजी ‘दस्तक’ अभियानाला सुरुवात केली गेली.या अभियानांतर्गत जिल्हा आरोग्य शिक्षण अधिकार्यांना दोन दिवसांच्या प्रशिक्षणासोबतच अभियानामध्ये उपयोगात आणल्या जाणार्या ध्वनीमुद्रित चलचित्रपट, रेडियो जाहिराती, एन्सेफलायटीस संबंधी घेतल्या जाणार्या काळजी घेण्यासाठीचे साहित्य व स्वच्छता किट आणि अन्य माहिती प्रदान केले गेले.
अभियानाच्या मुख्य बाबी
- हा अभियान मार्च-18 ते जून-18 तसेच जून-18 ते नोव्हेंबर-18 पर्यंत या कालावधीत चालवले जाण्याचे नियोजित आहे.
- प्रदेशातील पाच वर्षाखालील सर्व बालकांची रक्तचाचणी, 6 महीने ते पाच वर्ष वयोगटातील गंभीर कुपोषित बालकांची ओळख पटवणे आणि 9 महीने ते पाच वर्ष वयोगटातील बालकांना ‘अ’ जीवनसत्त्वाचे मिश्रण पाजणे अशी कार्ये चालवली जाणार.
- सोबतच हगवण, निमोनिया आणि जन्मजात आजारांनी ग्रस्त असलेल्या बालकांची ओळख करून त्यांना निःशुल्क तपासणी उपचार आणि परिवहन सेवा दिली जाणार.
- राज्याच्या आजाराने प्रभावित झालेल्या 38 जिल्ह्यांमध्ये दूरदर्शन, रेडियो आणि वर्तमानपत्रे यांच्या माध्यमातून जपानी एन्सेफलायटीस संबंधी माहिती व बचावाचे उपाय प्रसारित केले जाणार.
- आरोग्य सेवक गोरखपुर व बस्ती मंडल यांच्या सात प्रभावित जिल्ह्यांमध्ये घरोघरी जाऊन आजारासंबंधी उपचार व निगा राखण्यासंबंधी लोकांना सांगणार.
जपानी एन्सेफलायटीस या आजाराची लागण झाल्यास मेंदूला सूज येते. हा आजार ‘फ्लॅवी’ विषाणूमुळे होता. 1871 साली पहिल्यांदा जपानमध्ये आढळून आला, त्यामुळे त्याला ‘जपानी ज्वर’ असेही नाव दिले गेले आहे. हा प्रामुख्याने लहान बालकांना प्रभावित करतो. ‘फ्लॅवी’ विषाणू जंगली डुक्कर व पक्ष्यांच्या माध्यमातून पसरतो.
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