Current affairs 3 January 2018 - Hindi / English / Marathi
National Medical Commission Bill, 2017
What is National Medical Bill (NMC)?
A bill to provide for a medical education system that ensures availability of adequate and high quality medical professionals; that encourages medical professionals to adopt latest medical research in their work and to contribute to research; that has an objective periodic assessment of medical institutions and facilitates maintenance of a medical register for India and enforces high ethical standards in all aspects of medical services; that is flexible to adapt to changing needs and has an effective grievance redressal mechanism and for matters connected therewith or incidental thereto.
NMC 2017:
Aim:
The Bill is aimed at bringing reforms in the medical education sector which has been under scrutiny for corruption and unethical practices.
देशामध्ये वैद्यकीय शिक्षणात गुणवत्तापूर्ण बनविण्यासाठी आणि वैद्यकीय सेवांच्या सर्व पैलूंमध्ये उच्च मानदंड राखण्याच्या उद्देशाने भारतीय वैद्यकीय परिषद (MCI) च्या जागी ‘राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग (NMC)’ या नवीन संरचनेची स्थापना करण्याचे प्रस्तावित आहे.
वर्तमान ‘भारतीय वैद्यकीय परिषद अधिनियम-1956’ च्या जागी ‘राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग (NMC) विधेयक-2017’ देशात आणण्यासाठी संसदेपुढे मांडण्यास केंद्रीय मंत्रिमंडळाने आपली मंजूरी दिली आहे.
ठळक बाबी
शासनाकडून अध्यक्ष आणि सदस्य नामांकित केले जातील, ज्यांना मंत्रिमंडळाच्या सचिवाच्या अधिनस्थ एका समितीकडून निवडले जाणार.
25 सदस्यीय आयोगामध्ये 12 पदे (गैर-कार्यकारी) सदस्य असणार, ज्यामध्ये प्रमुख वैद्यकीय संस्था जसे AIIMS आणि ICMR यांच्या संचालक मंडळाच्या चार अध्यक्षांचा समावेश असेल तसेच 11 अंशकालिक सदस्य आणि एक अध्यक्ष व सदस्य-सचिव असतील.
NMC मध्ये चार स्वतंत्र मंडळे असणार, जे वैद्यकीय शिक्षणाला विनियमित करणार. ती मंडळे कार्यानुसार पुढीलप्रमाणे आहेत - पदवी वैद्यकीय शिक्षण; पदविका; वैद्यकीय महाविद्यालयाचे मूल्यांकन आदी कार्ये; मान्यता, नोंदणी आणि डॉक्टरचा परवाना संबंधी कार्ये.
आयोगाकडून चालवली जाणारी मुख्य कार्ये –
Hindi
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बिल, 2017:
लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पेश किया गया था। इस विधेयक में देश में चिकित्सा शिक्षा को गुणवत्तापरक बनाने और चिकित्सा सेवाओं के सभी पहलुओं में उच्च मानकों को बनाये रखने के उद्देश्य से भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) की जगह राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के गठन का प्रस्ताव किया गया है।
एमसीआई की स्थापना भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत, चिकित्सा क्षेत्र में उच्च शिक्षा योग्यता के मानदंडों को स्थापित करने और इसके अभ्यास को विनियमित करने के लिए किया गया था।
भारत में चिकित्सा शिक्षा और डॉक्टरों की गुणवत्ता में सुधार के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की समीक्षा और इसमें बदलाव के लिए नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।
समिति ने यह प्रस्तावित किया था कि इस अधिनियम को एक नए कानून के साथ बदल दिया जाय, और अगस्त 2016 में इसके लिए एक मसौदा बिल का प्रस्ताव भी किया था।
प्रमुख तथ्य:
विधेयक को स्थायी समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही तैयार किया गया है। इस विधेयक में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के गठन का प्रस्ताव किया गया है। यह आयोग मेडिकल (आयुर्विज्ञान) शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और उच्च स्तर को बनाये रखने के लिए नीतियां बनाएगा।
इसके अलावा मेडिकल संस्थाओं, अनुसंधानों और चिकित्सा पेशेवरों के नियमन के लिए नीतियां निर्धारित करेगा। इसके अलावा यह स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबंधी देखभाल से संबंधित बुनियादी ढांचे समेत स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की अपेक्षाओं और जरूरतों तक पहुंच बनाना सुनिश्चित करेगा तथा ऐसी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना।
इसमें कहा गया है कि सभी मेडिकल संस्थाओं में स्नातक आयुर्विज्ञान शिक्षा के लिए प्रवेश के लिहाज से एक सामान्य राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा होगी। आयोग अंग्रेजी और ऐसी अन्य भाषाओं में परीक्षा का संचालन करेगा। आयोग सामान्य काउंसलिंग की नीतियां भी निर्धारित करेगा।
इसके तहत स्नातक आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड, स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड और चिकित्सा निर्धारण और रेटिंग बोर्ड तथा शिष्टाचार और चिकित्सक पंजीकरण बोर्ड का गठन करेगी। स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड का काम पीजी स्तर पर और अति विशिष्ट (सुपर-स्पेशलिटी) स्तर पर मेडिकल शिक्षा के स्तर बनाये रखना और उससे संबंधित पहलुओं की निगरानी करना है।
इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार, उस राज्य में यदि वहां कोई चिकित्सा परिषद नहीं है तो इस कानून के प्रभाव में आने के तीन वर्ष के भीतर उस राज्य में चिकित्सा परिषद स्थापित करने के लिए आवश्यक उपाय करेगी। विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि किसी भी देश में अच्छी स्वास्थ्य देखरेख के लिए मेडिकल शिक्षा का भलीभांति क्रियाशील विधायी ढांचा जरूरी है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की संरचना:
यह एक तीन स्तरीय संरचना है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की रचना, जिसमें 25 प्रभावी सदस्य होंगे, जिनमें से केवल 5 सदस्य (अंशकालिक) चुने जाएंगे।
एक सलाहकार निकाय की रचना जो चिकित्सा सलाहकार परिषद के रूप में जाना जाने चाहिए। पूरी तरह से चिकित्सा सलाहकार परिषद में लगभग 60 सदस्य होंगे। सभी नामांकित सदस्य हैं।
4 स्वायत्त बोर्डों की रचना जिसे यूजीएमई बोर्ड, पीजीएमई बोर्ड, एमएआर (मेडिकल आकलन और रेटिंग बोर्ड) और ईएमआर (एथिक्स एंड मेडिकल पंजीकरण) बोर्ड के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक बोर्ड में केवल 3 सदस्य होते हैं और इन सभी सदस्यों को केंद्रीय सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। पूरी तरह से इन चार बोर्डों में 12 सदस्य होंगे। वे सहायता के लिए और उप समितियों का गठन करेंगे।
जैसे कि यह स्पष्ट है कि प्रस्तावित आयोग में 10% निर्वाचित सदस्य (अंशकालिक) और 90% नामित सदस्य होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह ‘वांछित’ प्रतिनिधि पात्र नहीं होगा ” निर्वाचित और नामित / नियुक्त सदस्य ” के संदर्भ में जबकि वर्तमान मेडिकल कौंसिल के पास 75% निर्वाचित सदस्य हैं और 25% मनोनीत सदस्य हैं।
लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पेश किया गया था। इस विधेयक में देश में चिकित्सा शिक्षा को गुणवत्तापरक बनाने और चिकित्सा सेवाओं के सभी पहलुओं में उच्च मानकों को बनाये रखने के उद्देश्य से भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) की जगह राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के गठन का प्रस्ताव किया गया है।
एमसीआई की स्थापना भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के तहत, चिकित्सा क्षेत्र में उच्च शिक्षा योग्यता के मानदंडों को स्थापित करने और इसके अभ्यास को विनियमित करने के लिए किया गया था।
भारत में चिकित्सा शिक्षा और डॉक्टरों की गुणवत्ता में सुधार के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की समीक्षा और इसमें बदलाव के लिए नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।
समिति ने यह प्रस्तावित किया था कि इस अधिनियम को एक नए कानून के साथ बदल दिया जाय, और अगस्त 2016 में इसके लिए एक मसौदा बिल का प्रस्ताव भी किया था।
प्रमुख तथ्य:
विधेयक को स्थायी समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही तैयार किया गया है। इस विधेयक में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के गठन का प्रस्ताव किया गया है। यह आयोग मेडिकल (आयुर्विज्ञान) शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और उच्च स्तर को बनाये रखने के लिए नीतियां बनाएगा।
इसके अलावा मेडिकल संस्थाओं, अनुसंधानों और चिकित्सा पेशेवरों के नियमन के लिए नीतियां निर्धारित करेगा। इसके अलावा यह स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबंधी देखभाल से संबंधित बुनियादी ढांचे समेत स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की अपेक्षाओं और जरूरतों तक पहुंच बनाना सुनिश्चित करेगा तथा ऐसी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना।
इसमें कहा गया है कि सभी मेडिकल संस्थाओं में स्नातक आयुर्विज्ञान शिक्षा के लिए प्रवेश के लिहाज से एक सामान्य राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा होगी। आयोग अंग्रेजी और ऐसी अन्य भाषाओं में परीक्षा का संचालन करेगा। आयोग सामान्य काउंसलिंग की नीतियां भी निर्धारित करेगा।
इसके तहत स्नातक आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड, स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड और चिकित्सा निर्धारण और रेटिंग बोर्ड तथा शिष्टाचार और चिकित्सक पंजीकरण बोर्ड का गठन करेगी। स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड का काम पीजी स्तर पर और अति विशिष्ट (सुपर-स्पेशलिटी) स्तर पर मेडिकल शिक्षा के स्तर बनाये रखना और उससे संबंधित पहलुओं की निगरानी करना है।
इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार, उस राज्य में यदि वहां कोई चिकित्सा परिषद नहीं है तो इस कानून के प्रभाव में आने के तीन वर्ष के भीतर उस राज्य में चिकित्सा परिषद स्थापित करने के लिए आवश्यक उपाय करेगी। विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि किसी भी देश में अच्छी स्वास्थ्य देखरेख के लिए मेडिकल शिक्षा का भलीभांति क्रियाशील विधायी ढांचा जरूरी है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की संरचना:
यह एक तीन स्तरीय संरचना है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की रचना, जिसमें 25 प्रभावी सदस्य होंगे, जिनमें से केवल 5 सदस्य (अंशकालिक) चुने जाएंगे।
एक सलाहकार निकाय की रचना जो चिकित्सा सलाहकार परिषद के रूप में जाना जाने चाहिए। पूरी तरह से चिकित्सा सलाहकार परिषद में लगभग 60 सदस्य होंगे। सभी नामांकित सदस्य हैं।
4 स्वायत्त बोर्डों की रचना जिसे यूजीएमई बोर्ड, पीजीएमई बोर्ड, एमएआर (मेडिकल आकलन और रेटिंग बोर्ड) और ईएमआर (एथिक्स एंड मेडिकल पंजीकरण) बोर्ड के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक बोर्ड में केवल 3 सदस्य होते हैं और इन सभी सदस्यों को केंद्रीय सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। पूरी तरह से इन चार बोर्डों में 12 सदस्य होंगे। वे सहायता के लिए और उप समितियों का गठन करेंगे।
जैसे कि यह स्पष्ट है कि प्रस्तावित आयोग में 10% निर्वाचित सदस्य (अंशकालिक) और 90% नामित सदस्य होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह ‘वांछित’ प्रतिनिधि पात्र नहीं होगा ” निर्वाचित और नामित / नियुक्त सदस्य ” के संदर्भ में जबकि वर्तमान मेडिकल कौंसिल के पास 75% निर्वाचित सदस्य हैं और 25% मनोनीत सदस्य हैं।
English
National Medical Commission Bill, 2017
What is National Medical Bill (NMC)?
A bill to provide for a medical education system that ensures availability of adequate and high quality medical professionals; that encourages medical professionals to adopt latest medical research in their work and to contribute to research; that has an objective periodic assessment of medical institutions and facilitates maintenance of a medical register for India and enforces high ethical standards in all aspects of medical services; that is flexible to adapt to changing needs and has an effective grievance redressal mechanism and for matters connected therewith or incidental thereto.
NMC 2017:
Aim:
The Bill is aimed at bringing reforms in the medical education sector which has been under scrutiny for corruption and unethical practices.
- The National Medical Commission Bill, 2017, which seeks to replace the Medical Council of India with a new body, was referred to the Standing Committee on 3 January 2018.
- The Bill proposes a government-nominated chairman and members, who will be selected by a committee under the Cabinet Secretary. The medical fraternity is opposing the clause fearing the body would effectively be run by the government.
- The bill seeks to allow practitioners of Ayurveda, Homeopathy, Yoga and other alternative medicines to enter the field of modern medicine after completing a “bridge course”.
- Clause 49 of the Bill calls for a joint sitting of the National Medical Commission, the Central Council of Homoeopathy and the Central Council of Indian Medicine at least once a year "to enhance the interface between homoeopathy, Indian Systems of Medicine and modern systems of medicine".
- The Bill also proposes a common entrance exam and licentiate (exit) exam which all medical graduates will have to clear to get practicing licences. The licentiate (exit) examination will have to be coducted within three years after Parliament passes it.
- It has also proposed that specific educational modules or programmes for developing bridges across the various systems of medicine and promotion of medical pluralism, can be done with the approval of all the members present in the joint sitting.
Marathi
लोकसभेत ‘राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग’ विधेयक चर्चेसाठी मांडले
संसदेच्या लोकसभेत चर्चेसाठी ‘राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग विधेयक-2017’ मांडण्यात आले आहे.देशामध्ये वैद्यकीय शिक्षणात गुणवत्तापूर्ण बनविण्यासाठी आणि वैद्यकीय सेवांच्या सर्व पैलूंमध्ये उच्च मानदंड राखण्याच्या उद्देशाने भारतीय वैद्यकीय परिषद (MCI) च्या जागी ‘राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग (NMC)’ या नवीन संरचनेची स्थापना करण्याचे प्रस्तावित आहे.
वर्तमान ‘भारतीय वैद्यकीय परिषद अधिनियम-1956’ च्या जागी ‘राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग (NMC) विधेयक-2017’ देशात आणण्यासाठी संसदेपुढे मांडण्यास केंद्रीय मंत्रिमंडळाने आपली मंजूरी दिली आहे.
ठळक बाबी
- विधेयकामध्ये MBBS आणि अन्य वैद्यकीय अभ्यासक्रमात गुणवत्ता प्रदान करण्याच्या हेतूने तसेच या क्षेत्रात पारदर्शिता आणि कार्यकुशलता सुनिश्चित करण्यासाठी उपाययोजना करण्यात आल्या आहेत.
- विधेयकामध्ये महाविद्यालयांना MBBS आणि पदव्युत्तर पदवी अभ्यासक्रमासाठीच्या जागांना वाढविण्यासाठी परवानगी घेण्याची व्यवस्था संपुष्टात आणली जाणार.
- पाच वर्षांचा MBBS अभ्यासक्रम पूर्ण करणार्या प्रत्येक उमेदवाराला वैद्यकीय व्यवसायीक होण्यासाठी किंवा पदव्युत्तर पदवी अभ्यासक्रमात प्रवेश मिळविण्यासाठी राष्ट्रीय परवानाधारक परीक्षा देणे अनिवार्य असणार.
- विधेयकात वैद्यकीय शिक्षणाच्या नियमनासाठी चार स्तरीय संरचनेची संकल्पना मांडण्यात आली आहे, ज्यामध्ये 20 सदस्यीय राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग शीर्ष स्थानी असणार.
- देशात वैद्यकीय क्षेत्रातील इंस्पेक्टर राजला संपुष्टात आणणे हा या विधेयकाचा मुख्य उद्देश्य आहे.
- होमिओपॅथी, औषधांची भारतीय व्यवस्था आणि आधुनिक व्यवस्था यामध्ये समन्वय वाढविण्यासाठी राष्ट्रीय वैद्यकीय आयोग (NMC), केंद्रीय होमिओपॅथी परिषद (CCH) आणि केंद्रीय भारतीय औषधी परिषद (CCIM) यांची वर्षातून किमान एकदातरी एकत्रित बैठक आयोजित केली जावी.
शासनाकडून अध्यक्ष आणि सदस्य नामांकित केले जातील, ज्यांना मंत्रिमंडळाच्या सचिवाच्या अधिनस्थ एका समितीकडून निवडले जाणार.
25 सदस्यीय आयोगामध्ये 12 पदे (गैर-कार्यकारी) सदस्य असणार, ज्यामध्ये प्रमुख वैद्यकीय संस्था जसे AIIMS आणि ICMR यांच्या संचालक मंडळाच्या चार अध्यक्षांचा समावेश असेल तसेच 11 अंशकालिक सदस्य आणि एक अध्यक्ष व सदस्य-सचिव असतील.
NMC मध्ये चार स्वतंत्र मंडळे असणार, जे वैद्यकीय शिक्षणाला विनियमित करणार. ती मंडळे कार्यानुसार पुढीलप्रमाणे आहेत - पदवी वैद्यकीय शिक्षण; पदविका; वैद्यकीय महाविद्यालयाचे मूल्यांकन आदी कार्ये; मान्यता, नोंदणी आणि डॉक्टरचा परवाना संबंधी कार्ये.
आयोगाकडून चालवली जाणारी मुख्य कार्ये –
- वैद्यकीय शिक्षणासाठी आवश्यक धोरणांची निर्मिती करणे. वैद्यकीय सेवांच्या आधारभूत संरचनेच्या विकासासाठी आवश्यक पाऊल उचलण्याच्या विषयासंदर्भात रूपरेखा तयार करणे.
- खाजगी वैद्यकीय संस्थांमध्ये किमान 40% जागांसाठी शुल्क निर्धारणासंबंधी नियम निर्धारित करणे.
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