दैनिक सामान्य ज्ञान Daily general knowledge
मध्यपूर्व आशियातला येमेन हा एक मुस्लीमबहुल लोकसंख्येचा देश आहे आणि गेल्या तीन वर्षांपासून येमेनमध्ये गृहयुद्ध सुरू आहे, ज्यात आजवर 10,000 हून अधिक लोकांचा मृत्यू झाला आहे आणि लाखो लोक उपासमारीच्या गर्तेत गेले आहेत.यावादाची पार्श्वभूमी आज आपण येथे जाणून घेऊ. तत्पूर्वी मध्यपुर्व प्रदेशाबद्दल जाणून घ्या, मध्यपुर्व (आखाती राष्ट्रे) यामध्ये सौदी अरब, इराक, कतार, येमेन, बहरीन, इराण, कुवेत अशी राष्ट्रे येतात. इराण आणि सौदी अरब यांच्यामध्ये सुन्नी शिया या कट्टर धार्मिक वादाबरोबरच मध्यपुर्वेत वर्चस्व कोण गाजवणार हा देखिल मुद्दा आहे.
येमेन मध्ये अली सालेह हा हुकूमशहा राज्य करत होता. 2011 साली आपल्या मुलाला लष्करप्रमुख करण्यासाठी त्याने हालचाली सुरु केल्यावर मोहसेन अहमार या पदसिद्ध लष्करप्रमुखाने बंड केले. येमेन सैन्यदलाची निष्ठा सालेह व अहमार यांच्या मध्ये विभागली गेली आणि येमेनमध्ये आंतरिक गृहयुद्धाला तोंड फुटले.
याचा फायदा घेण्यासाठी हौदी वंशाचा बंडखोर अब्दुल मलीक हौदी उभा राहिला. हौदी लोक शिया पंथिय आहेत आणि हुकूमशहा सालेह हा सुन्नी पंथिय आहे. दोन्ही समाजाच्या वादातून चिघळलेल्या परिस्थितीत हौदी बंडखोरांनी शिया बहुसंख्याक राज्ये हस्तगत करायला सुरुवात केली त्यामध्ये येमेनची राजधानी “सना” देखिल येते. त्यात इराणने शिया पंथिय हौदींना पाठिंबा द्यायला सुरुवात केली.
जाती बरोबरच आणखी एक कारण म्हणजे येमेन सौदी अरबच्या सीमारेषांना भिडलेले आहे. सीमारेषांवरच्या प्रदेशात अतिरेकी संघटना सक्रिय आहेत. त्यामुळे सौदी अरब हे इराण म्हणजेच हौदींना रोखण्यासाठी येमेन हुकूमशहा सालेहला पाठिंबा देत आहे आणि हौदी बंडखोरांच्या प्रदेशात हवाईहल्ले सुरु केले. आता हौदी बंडखोर तसेच अहमार यांच्या युती विरुध्द हुकूमशहा सालेह असा लढा सुरू आहे.
याशिवाय काही हौदीविरोधी गटे आहेत. यामध्ये दक्षिण येमेनचा एक गट जो येमेनपासून स्वातंत्र्यासाठी वेगळा लढा देतोय आणि त्यांची आणि त्यांचे विरोधकांबरोबर खटके उडत असतातच.
या सगळ्या घडामोडींमुळे तिथे एक मोठे मानवी संकट आले आहे. लाखो-कोटी लोकांना उपासमारी, कुपोषण अश्या समस्यांना तोंड द्यावे लागत आहे. येमेनमधील आरोग्यव्यवस्था देखील कोलमडली आहे.
Gk of the day: Yemen War
Origin
The conflict has its roots in the failure of a political transition supposed to bring stability to Yemen following an Arab Spring uprising that forced its long-time authoritarian president, Ali Abdullah Saleh, to hand over power to his deputy, Abdrabbuh Mansour Hadi, in 2011.As president, Mr Hadi struggled to deal with a variety of problems, including attacks by jihadists, a separatist movement in the south, and the continuing loyalty of security personnel to Saleh, as well as corruption, unemployment and food insecurity.
The War
The Houthi movement, which champions Yemen's Zaidi Shia Muslim minority and fought a series of rebellions against Saleh during the previous decade, took advantage of the new president's weakness by taking control of their northern heartland of Saada province and neighbouring areas.Disillusioned with the transition, many ordinary Yemenis - including Sunnis - supported the Houthis and in late 2014 and early 2015, the rebels took over Sanaa.
Saudi Arabia enters the war
Alarmed by the rise of a group they believed to be backed militarily by regional Shia power Iran, Saudi Arabia and eight other mostly Sunni Arab states began an air campaign aimed at restoring Mr Hadi's government.The coalition received logistical and intelligence support from the US, UK and France.
What UN says?
In short, the situation in Yemen is, the UN says, the world's worst man-made humanitarian disaster.The UN says more than 6,800 civilians have been killed and at least 10,700 injured in the fighting since March 2015, with well over half of the casualties caused by Saudi-led coalition air strikes.
An international group tracking the civil war believes the death toll is far higher. The US-based Armed Conflict Location & Event Data Project estimates that more than 60,000 civilians and combatants have been killed since 2016, based on news reports of each incident of violence.
More than 20 million Yemenis - two thirds of the population - are food insecure. Ten million of them are severely food insecure - more than twice the number of four years ago.
यमन युद्ध : जाने पूरा मामला
सऊदी अरब ने पिछले तीन सालों से यमन में युद्ध छेड़ रखा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ इस युद्ध के कारण 80 लाख लोग भुखमरी की कगार पर खड़े हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप जब से सत्ता में आए हैं, सऊदी प्रिंस सलमान उनसे नज़दीकियां बढ़ाकर उनका भरोसा जीतने में कामयाब रहे। बदले में अमरीका न केवल जमाल ख़ाशोज्जी के मसले पर बल्कि यमन के मुद्दे पर भी चुप रहा।
लेकिन अब अमरीकी सीनेट ने इस युद्ध को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की यमन नीतियों को ज़ोरदार झटका दिया है। सीनेट ने यह प्रस्ताव 46 के मुक़ाबले 54 मतों से पारित किया है। खास बात यह है कि राष्ट्रपति ट्रंप की इच्छा के ख़िलाफ़ जा कर रिपब्लिकन पार्टी के सात सांसदों ने भी इस मुद्दे पर डेमोक्रेटिक पार्टी का साथ दिया।
रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत वाली सीनेट राष्ट्रपति ट्रंप को यह निर्देश दिया गया है कि 30 दिनों में यमन में युद्ध कार्यों में तैनात अमरीकी सैनिकों को वहां से हटाएं।
इसके पारित होने से एक नया इतिहास बनेगा क्योंकि 1973 के बाद यह पहली बार होगा जब राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियों में सीधे तौर पर कटौती की जाएगी।
ट्रंप की आलोचना?
बीते वर्ष सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद से ही ट्रंप का सऊदी अरब को दिया जा रहा समर्थन अमरीकी कांग्रेस में चिंता का विषय बना हुआ है। दोनों पार्टियों के सांसदों ने सऊदी अरब की पर्याप्त निंदा नहीं करने के लिए ट्रंप की आलोचना की है।
दूसरी तरफ यमन युद्ध को शुरू हुए पांच साल होने वाले हैं। अब तक इसमें हज़ारों लोगों की जानें गई हैं जबकि लाखों लोग भुखमरी की कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़ यह दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय आपदा है।
क्या है यमन में संघर्ष की वजह?
यमन में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच लंबे वक़्त से संघर्ष चल रहा है। उत्तर यमन में हूती बसते हैं जो शिया मुसलमान हैं और उन्हें ईरान का समर्थन हासिल है।
यमन के बाक़ी हिस्सों में बहुतायत सुन्नी मुसलमानों की है और उन्हें सऊदी अरब का समर्थन है।
सऊदी अरब ने 2015 से यमन में एक भयानक जंग छेड़ रखी है। सऊदी प्रिंस सलमान के शुरू किए इस युद्ध में हर रोज़ बच्चे, बूढ़े और महिलाओं की मौत हो रही है
क्या कहना है संयुक्त राष्ट्र संघ का?
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यमन में इस समय दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट चल रहा है। वहां चल रहे युद्ध में अब तक लगभग 2।3 करोड़ लोग, जो आबादी का दो-तिहाई हिस्सा हैं, जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता पर भरोसा कर रहे हैं। लगभग 80 लाख लोग अकाल के कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 100 वर्षों में ये सब से बुरा अकाल' हो सकता है।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप जब से सत्ता में आए हैं, सऊदी प्रिंस सलमान उनसे नज़दीकियां बढ़ाकर उनका भरोसा जीतने में कामयाब रहे। बदले में अमरीका न केवल जमाल ख़ाशोज्जी के मसले पर बल्कि यमन के मुद्दे पर भी चुप रहा।
लेकिन अब अमरीकी सीनेट ने इस युद्ध को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की यमन नीतियों को ज़ोरदार झटका दिया है। सीनेट ने यह प्रस्ताव 46 के मुक़ाबले 54 मतों से पारित किया है। खास बात यह है कि राष्ट्रपति ट्रंप की इच्छा के ख़िलाफ़ जा कर रिपब्लिकन पार्टी के सात सांसदों ने भी इस मुद्दे पर डेमोक्रेटिक पार्टी का साथ दिया।
रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत वाली सीनेट राष्ट्रपति ट्रंप को यह निर्देश दिया गया है कि 30 दिनों में यमन में युद्ध कार्यों में तैनात अमरीकी सैनिकों को वहां से हटाएं।
इसके पारित होने से एक नया इतिहास बनेगा क्योंकि 1973 के बाद यह पहली बार होगा जब राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियों में सीधे तौर पर कटौती की जाएगी।
ट्रंप की आलोचना?
बीते वर्ष सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद से ही ट्रंप का सऊदी अरब को दिया जा रहा समर्थन अमरीकी कांग्रेस में चिंता का विषय बना हुआ है। दोनों पार्टियों के सांसदों ने सऊदी अरब की पर्याप्त निंदा नहीं करने के लिए ट्रंप की आलोचना की है।
दूसरी तरफ यमन युद्ध को शुरू हुए पांच साल होने वाले हैं। अब तक इसमें हज़ारों लोगों की जानें गई हैं जबकि लाखों लोग भुखमरी की कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़ यह दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय आपदा है।
क्या है यमन में संघर्ष की वजह?
यमन में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच लंबे वक़्त से संघर्ष चल रहा है। उत्तर यमन में हूती बसते हैं जो शिया मुसलमान हैं और उन्हें ईरान का समर्थन हासिल है।
यमन के बाक़ी हिस्सों में बहुतायत सुन्नी मुसलमानों की है और उन्हें सऊदी अरब का समर्थन है।
सऊदी अरब ने 2015 से यमन में एक भयानक जंग छेड़ रखी है। सऊदी प्रिंस सलमान के शुरू किए इस युद्ध में हर रोज़ बच्चे, बूढ़े और महिलाओं की मौत हो रही है
क्या कहना है संयुक्त राष्ट्र संघ का?
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यमन में इस समय दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट चल रहा है। वहां चल रहे युद्ध में अब तक लगभग 2।3 करोड़ लोग, जो आबादी का दो-तिहाई हिस्सा हैं, जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता पर भरोसा कर रहे हैं। लगभग 80 लाख लोग अकाल के कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 100 वर्षों में ये सब से बुरा अकाल' हो सकता है।
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