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    Tuesday, March 19, 2019

    दैनिक सामान्य ज्ञान | Daily General Knowledge: न्यायालयाचा अपमान (Contempt of Court) | What is Contempt of Court? कंटेप्ट ऑफ कोर्ट

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    दैनिक सामान्य ज्ञान | Daily General Knowledge:

    न्यायालयाचा अपमान (Contempt of Court)What is Contempt of Court?  कंटेप्ट ऑफ कोर्ट


    न्यायालयाचा अपमान (Contempt of Court)

    हजारो कोटींचे कर्ज बुडवून परदेशात आश्रय घेतलेला विजय मल्ल्या असे अनेक उद्योगपती न्यायालयाच्या अवमानप्रकरणी दोषी ठरले आहेत. न्यायालयाच्या आदेशाचे वारंवार उल्लघंन झाल्याने त्यांच्यावर न्यायालयाचा अवमान केल्याचा आरोप लावण्यात आला आहे. तर आजा आपण येथे न्यायालयाचा अवमान म्हणजे नेमका काय असतो, त्याविषयी माहिती जाणून घेऊया.
    न्यायालयाचा अवमान म्हणजे काय?
    न्यायालयाने दिलेल्या आदेशाचा अव्हेर करणे अथवा जाणीवपूर्वक त्याकडे दुर्लक्ष करणे हा ‘न्यायालयाचा अवमान’ समजला जातो. अशा वेळी न्यायालय संबंधित व्यक्तीस शिक्षा करू शकते.
    न्यायव्यवस्थेत अडथळा आणणारे बोलले जाणारे किंवा लिखित शब्दांचा वापर करणे तसेच न्यायालयाच्या कामकाजात अडथळा आणणे हे देखील गंभीर गुन्हे आहेत.
    संविधानातल्या तरतुदी
    • संविधानाच्या कलम क्र. 219 (सर्वोच्च न्यायालयासाठी) आणि कलम क्र. 215 (उच्च न्यायालयासाठी) अन्वये न्यायालयाला आपल्या अवमानाच्या आरोपांची सुनावणी करण्याचा अधिकार आहे.
    • कलम क्र. 141 अन्वये सर्वोच्च न्यायालयाने घोषित केलेला कायदा भारतामधील सर्व न्यायालयांना बंधनकारक असेल.
    • कलम क्र. 261 अन्वये संपूर्ण भारतीय प्रदेशातल्या केंद्रशासित प्रदेश आणि प्रत्येक राज्यात चालविल्या जाणार्‍या न्यायालयीन कार्यवाहीवर तसेच सार्वजनिक कृती, अभिलेखासंबंधी दस्तऐवजावर पूर्णपणे विश्वास ठेवला जाईल.
    न्यायालयाचा अवमान अधिनियम-1971
    न्यायालयाचा अवमान केल्याप्रकरणी विशिष्ट न्यायालयांचे अधिकार निश्चित करणे व मर्यादित करणे तसेच न्यायालयाची विश्वासार्ह प्रतिमा नागरिकांच्या मनात जपून ठेवणे, या उद्दिष्टांनी ‘न्यायालयाचा अवमान अधिनियम-1971’ हा कायदा तयार करण्यात आला आहे.
    यात न्यायालयाचा अवमान, नागरी अवमान, गुन्हेगारीसंबंधी अवमान या तीन संज्ञेची व्याख्या स्पष्ट करण्यात आली आहे आणि त्यासंबंधी दंडात्मक तरतुदी देण्यात आल्या आहेत.



    #दैनिक_सामान्य_ज्ञान | #Daily_General_Knowledge


     What is Contempt of Court?

    The Supreme Court has stayed the conviction and punishment of The Shillong Times editor and publisher by the Meghalaya High Court in a contempt case.
    In India, the Contempt of Courts Act, 1971, divides contempt into civil contempt and criminal contempt.
    Civil Contempt
    It is a ‘wilful disobedience to any judgment, decree, direction, order, writ or other processes of a Court or wilful breach of an undertaking given to the court’.

    Criminal Contempt

    It is ‘the publication (whether by words, spoken or written, or by signs, or by visible representation, or otherwise) of any matter or the doing of any other act whatsoever which:
    • Scandalises or tends to scandalise, or lowers or tends to lower the authority of, any court.
    • Prejudices, or interferes or tends to interfere with the due course of any judicial proceeding.
    • Interferes or tends to interfere with, or obstructs or tends to obstruct, the administration of justice in any other manner.’

    Why there is a need of it?

    Judiciary ensures justice and equality to every individual and institutions, therefore, the makers of the constitution upheld the sanctity and prestige of the revered institution by placing provisions under articles 129 and 215 of the constitution, which enables the courts to hold individuals in contempt if they attempt to demean or belittle their authority.

    Contempt of Courts (Amendment) Act, 2006:

    The statute of 1971 has been amended by the Contempt of Courts (Amendment) Act, 2006 to include the defence of truth under Section 13 of the original legislation.
    Section 13 that already served to restrict the powers of the court in that they were not to hold anyone in contempt unless it would substantially interfere with the due process of justice, the amendment further states that the court must permit ‘justification by truth as a valid defence if it is satisfied that it is in public interest and the request for invoking the said defence is bona fide.’

    #दैनिक_सामान्य_ज्ञान | #Daily_General_Knowledge


    कंटेप्ट ऑफ कोर्ट

    कंटेप्ट ऑफ कोर्ट दो तरह का होता है सिविल कंटेप्ट और क्रिमिनल कंटेप्ट। जब किसी अदालती फैसले की अवहेलना होती है तब वह सिविल कंटेप्ट होता है। जैसे अदालती आदेश हो या फिर कई जजमेंट हो और उस आदेश का तय समय पर पालन न हो। साथ ही अदालत के आदेश की अवहेलना हो रही हो तो यह मामला सिविल कंटेप्ट का बनता है।
    सिविल कंटेप्ट के मामले में जो पीड़ित पक्ष है वह अदालत को इस बारे में सूचित करता है और फिर अदालत उस शख्स को नोटिस जारी करती है जिस पर अदालत के आदेश का पालन करने का दायित्व होता है। सिविल कंटेप्ट में पीड़ित पक्ष अदालत को बताता है कि कैसे अदालत के आदेश की अवहेलना हो रही है और तब अदालत उस शख्स को नोटिस जारी कर पूछती है कि अदालती आदेश का पालन न करने के मामले में क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए। नोटिस के बाद दूसरा पक्ष जवाब देता है और अगर उस जवाब से अदालत संतुष्ट हो जाए तो कार्रवाई वहीं खत्म हो जाती है अगर नहीं तो अदालत अवमानना की कार्रवाई शुरू करती है। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के लिए अधिकतम 6 महीने कैद की सजा का प्रावधान है।
    अगर कोई शख्स अदालत अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देता है, या उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने की कोशिश करता है, या उसके मान सम्मान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है या अदालती कार्रवाई में दखल देता है या खलल डालता है तो यह क्रिमिनल कंटेप्ट ऑफ कोर्ट है। इस तरह की हरकत चाहे लिखकर की जाए या बोलकर या फिर अपने हाव-भाव से ऐसा किया जाए ये तमाम हरकतें कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में होंगी। इस तरह के मामले अगर कोर्ट के संज्ञान में आए तो कोर्ट स्वयं संज्ञान ले सकता है या फिर कोर्ट के संज्ञान में जब यह मामला आता है तो वह ऐसे मामले में ऐसा करने वालों को नोटिस जारी करती है।
    अदालत कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के आरोपी को नोटिस जारी करती है और पूछती है कि उसने जो हरकत की है वह पहली नजर में कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में आता है ऐसे में क्यों न उसके खिलाफ कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई की जाए। वह शख्स अदालत में अपनी सफाई पेश करता है। कई बार वह बिना शर्त माफी भी मांग लेता है और यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह माफी को स्वीकार करे या न करे। अगर माफी स्वीकार हो जाती है तो मामला वहीं खत्म हो जाता है अन्यथा मामले में कार्रवाई शुरू होती है। अगर इस तरह की हरकत निचली अदालत में की गई हो तो निचली अदालत मामले में लिखित तौर पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई के लिए हाई कोर्ट को रेफर करती है। मामले की सुनवाई के बाद अगर कोई शख्स कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के लिए दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम 6  महीने की कैद की सजा या फिर 2 हजार रुपये तक जुमार्ना या फिर दोनों का प्रावधान है।

    #दैनिक_सामान्य_ज्ञान | #Daily_General_Knowledge

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