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    Tuesday, June 5, 2018

    Environmental Policies and Programmes in India भारत में पर्यावरण नीतियाँ और कार्यक्रम: पर्यावरणविषयक धोरणे आणि भारतामधील कार्यक्रमे

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    Environmental Policies and Programmes in India
    • Environment policies of the Government of India includes legislations related to environment.
    • Article 48- Article 48 says "the state shall endeavour to protect and improve the environment and to safeguard the forests and wildlife of the country";
    • Article 51-A states that "it shall be the duty of every citizen of India to protect and improve the natural environment including forests, lakes, rivers and wildlife and to have compassion for living creatures."
    • The Indian Wildlife Protection Act 1972protected the biodiversity.
    • The 1988 National Forest Policy had conservation as its fundamental principle.
    • The government passed the Environment (Protection) Act 1986 and Foreign Trade (Development and Regulation) Act 1992 for control of biodiversity.
    • The Ministry of Environment & Forests is the nodal agency in the administrative structure of the Central Government, for the planning, promotion, co-ordination and overseeing the implementation of environmental and forestry programmes. The Ministry is also the Nodal agency in the country for the United Nations Environment Programme (UNEP).
    • The principal activities undertaken by Ministry of Environment & Forests, consist of conservation & survey of flora, fauna, forests and Wildlife, prevention & control of pollution, afforestation & regeneration of degraded areas and protection of environment, in the frame work of legislations.
    • The Central Pollution Control Board (CPCB), statutory organisation, was constituted in September, 1974 under the Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974. Further, CPCB was entrusted with the powers and functions under the Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981. It serves as a field formation and also provides technical services to the Ministry of Environment and Forests of the provisions of the Environment (Protection) Act, 1986. Principal Functions of the CPCB, as spelt out in the Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974, and the Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981
      • To promote cleanliness of streams and wells in different areas of the States by prevention, control and abatement of water pollution, and
      • To improve the quality of air and to prevent, control or abate air pollution in the country.
      • The Central Pollution Control Board (CPCB) of India is a statutory organisation under the Ministry of Environment, Forest and Climate Change (MoE,FCC). It was established in 1974 under the Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974. CPCB is also entrusted with the powers and functions under the Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981. It serves as a field formation and also provides technical services to the Ministry of Environment and Forests under the provisions of the Environment (Protection) Act, 1986. It Co-ordinates the activities of the State Pollution Control Boards by providing technical assistance and guidance and also resolves disputes among them. It is the apex organisation in country in the field of pollution control, as a technical wing of MoEF. The board is led by its chairman, who is nominated by the Central Government.[6] The current acting chairman is Shri S.P. Singh Parihar IAS .
    • The United Nations Conference on Environment and Development (1992) (Rio Conference) specified the policy statement for the abatement of pollution. to incorporate environmental costs in the decisions of producers and consumers.
    • To reverse the tendency to treat environment as a ‘free good’ and to pass these costs onto other parts of society or other countries or to future generations. to move fully towards the integration of social and environmental costs into economic activities so that prices will appropriately reflect the relative scarcity and total value of resources and contribute towards the prevention of environmental degradation to include wherever appropriate the use of market principles in the framing of economic instruments and policies to pursue sustainable development.






    भारत में पर्यावरण नीतियाँ और कार्यक्रम:
    विश्व पर्यावरण दिवस 2018 की वैश्विक मेजबानी भारत को प्राप्त हुई है। ‘बीट प्‍लास्टिक पॉल्‍यूशन’ की थीम के साथ यह दिवस विश्व भर में पर्यावरण प्रदूषण एवं अन्य प्रकार के खतरों के प्रति जागरूकता प्रदान करेगा।
    विश्‍व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्‍या पर राज्‍य पर्यावरण मंत्रियों के सम्‍मेलन में उद्घाटन संबोधन देते हुए पर्यावरण मंत्री डॉ.हर्षवर्धन ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय में कई विशेष प्रकार के मूलभूत परिवर्तन किए गए हैं और राज्‍यों को अधिकार सौंपे गए हैं। इसके साथ विभिन्न प्रकार की योजनाएं, कार्यक्रम और नीतियां पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार द्वारा धरातल पर लायी जा रही हैं।
    आइये भारत की प्रमुख पर्यावरण नीतियों और कार्यक्रमों को जानें:
    वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन ने भारत सरकार का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर खींचा। सरकार ने 1976 में संविधान में संशोधन कर दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद 48 ए तथा 51 ए (जी) जोड़ें।
    अनुच्छेद 48 ए राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह ‘पर्यावरण की सुरक्षा और उसमें सुधार सुनिश्चित करे, तथा देश के वनों तथा वन्यजीवन की रक्षा करे’। अनुच्छेद 51 ए (जी) नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे तथा उसका संवर्धन करे और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहे’।
    स्वतंत्रता के पश्चात बढते औद्योगिकरण, शहरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण की गुणवत्ता में निरंतर कमी आती गई। पर्यावरण की गुणवत्ता की इस कमी में प्रभावी नियंत्रण व प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून व नियम बनाए। इनमें से अधिकांश का मुख्य आधार प्रदूषण नियंत्रण व निवारण था।
    प्रमुख पर्यावरणीय कानून व नियम निम्नलिखित हैं:
    • जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम, 1974
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
    • वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम, 1981
    • फोरेस्टस कंजरवेशन एक्ट, 1960
    • वाइल्ड लाईफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972
    • फोरेस्ट (कनजरवेशन) एक्ट, 1980
    • वाइल्ड लाईफ (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1995
    • जैव-विविधता अधिनियम, 2002
    • राष्ट्रीय पर्यावरण नीति – 2006
    राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006:
    राष्ट्रीय पर्यावरण नीति विभिन्न नीतियों (राष्ट्रीय वन नीति, 1988; राष्ट्रीय संरक्षण रणनीति तथा पर्यावरण एवं विकास पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; तथा प्रदूषण निवारण पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000; राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000; राष्ट्रीय जल नीति, 2002 इत्यादि) का एकीकरण करती है।
    नियामकीय सुधार, पर्यावरणीय संरक्षण कार्यक्रम एवं परियोजना, केंद्र, राज्य व स्थानीय सरकार द्वारा कानूनों के पुनरावलोकन एवं उसके कार्यान्वयन में, इसकी भूमिका मार्गदर्शन देने की होगी।
    इस नीति की मुख्य विषयवस्तु है पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण सबके कल्याण एवं आजीविका सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक है। अतः संरक्षण का सबसे मुख्य आधार यह होना चाहिए कि किसी संसाधन पर निर्भर रहने वाले लोगों को संसाधन के निम्नीकरण की बजाय उसके संरक्षण के द्वारा आजीविका के बेहतर अवसर प्राप्त हो सकें।
    यह नीति विभिन्न सहभागियों जैसे सरकारी अभिकरणों, स्थानीय समुदायों, अकादमिक एवं वैज्ञानिक संस्थानों, निवेश समुदायों एवं अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोगियों द्वारा उनसे संबद्ध संसाधनों के उपयोग तथा पर्यावरण प्रबंधन के सशक्तीकरण हेतु उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
    टिप्पणी
    वन अधिकार अधिनियम, 2006:
    वन अधिकार अधिनियम (2006), वन संबंधी नियमों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो 18 दिसम्बर, 2006 को पास हुआ। यह कानून जंगलों में रह रहे लोगों के भूमि तथा प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार से जुड़ा हुआ है जिनसे, औपनिवेशिक काल से ही उन्हें वंचित किया हुआ था। इसका उद्देश्य जहां एक ओर वन संरक्षण है वहां दूसरी ओर यह जंगलों में रहने वाले लोगों को उनके साथ सदियों तक हुए अन्याय की भरपाई का भी प्रयास है।
    भारत ने पर्यावरणीय कानूनों का व्यापक निर्माण किया है तथा हमारी नीतियाँ पर्यावरण संरक्षण में भारत की पहल दर्शाती हैं। पर्यावरण संबंधी सभी विधेयक होने पर भी भारत में पर्यावरण की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है। दिल्ली में यमुना नदी एक नाला बनकर रह गई है।
    वन क्षेत्र में कटाव लगातार बढता जा रहा है जिसके परिणाम हमें हाल ही में बिहार में आई भीषण बाढ़ के रूप में स्पष्ट देखने को मिलता है। भारत में जिस प्रकार से पर्यावरण कानूनों केा लागू किया जा रहा है उसे देखते हुए लगता है कि इन कानूनो के महत्त्व केा समझा ही नहीं गया है। इस दिशा में पर्यावरण नीतियों को गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है। पर्यावरण को सुरक्षित करने के प्रयासों में आम जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित करने की जरूरत है।


    पर्यावरणविषयक धोरणे आणि भारतामधील कार्यक्रमे

    5 जून 2018 रोजी जगभरात जागतिक पर्यावरण दिन पाळला जात आहे.
    पर्यावरण हा नेहमीच एक महत्त्वाचा मुद्दा ठरलेला आहे. वाढत्या औद्योगिक क्रांतीमुळे पर्यावरणाला पोहचणारी हानी अर्थातच मानवी जीवनावरही प्रभाव करते.
    पर्यावरणविषयक समस्या 21 व्या शतकातील सर्वात मोठ्या आव्हानांपैकी एक आहे. पृथ्वीवरील हवा, पाणी, माती आणि प्रजातींच्या विविधतेचा व्यापक ह्रास हे पृथ्वीवरील बर्‍याच लोकांच्या जीवनाशी तडजोड करीत आहे आणि अत्यंत तीव्रतेने, ग्रह वर जीवनाच्या मूलभूत पायाभूत संरचनेला धोका निर्माण करतो आहे.
    पर्यावरणविषयी जागतिक धोरणाचे स्वरूप काय आहे?
    पर्यावरणविषयक धोरण म्हणजे कायदे, नियमावली, आणि पर्यावरणीय समस्यांबद्दलच्या अन्य धोरणात्मक यंत्रणा या मुद्द्यांमध्ये संस्थांची वचनबद्धता होय. या मुद्द्यांमध्ये सामान्यतः हवा आणि जल प्रदूषण, कचरा व्यवस्थापन, पर्यावरणास व्यवस्थापन, जैवविविधतांचे जतन, नैसर्गिक संसाधनांचे संरक्षण, वन्यजीवन आणि लुप्त होणार्‍या प्रजाती यांचा समावेश होतो.
    ऊर्जेचा वापर किंवा विषारी पदार्थांचे नियमन आणि अनेक प्रकारचा औद्योगिक कचरा यांचे व्यवस्थापन हे देखील धोरणाचे भाग आहेत. जैविक पर्यावरण आणि नैसर्गिक संसाधनांवर होणारा हानिकारक प्रभाव टाळण्यासाठी मानवी कृतींना देखील यामध्ये गृहीत धरल्या जाते.
    पर्यावरणविषयक धोरण साधने हे पर्यावरणविषयक धोरणे अंमलात आणण्यासाठी सरकारद्वारे वापरली जाणारी साधने आहेत. सरकार अनेक प्रकारची साधने वापरू शकते. उदाहरणार्थ –
    • धोरणाच्या पालनाला प्रोत्साहित करण्यासाठी कर आणि कर सवलती, व्यापारक्षम परवाने आणि शुल्क यासारख्या क्रिया खूप प्रभावी ठरू शकतात. ज्या कॉर्पोरेट कंपन्या कार्यक्षम पर्यावरणीय व्यवस्थापनात गुंतलेल्या आहेत त्यांच्याकडील पर्यावरणविषयक माहिती पारदर्शी असल्याने व्यवसायाच्या कामगिरीत सुधारणा घडते.
    • सरकार आणि खाजगी कंपन्यांमधील द्विपक्षीय करारामधून कंपनीद्वारा पर्यावरणविषयक स्वैच्छिक वचनबद्धता प्रदर्शित होते.
    • विविध धोरण विकल्पांच्या परिणामांची तुलना करण्यासाठी पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (Environmental impact assessments -EIA) आयोजित केले जाते.
    युरोप विशेषत: याविषयी संशोधन क्षेत्रात सक्रिय आहे. युरोप विशेषत: संसाधनांच्या दृष्टीने कार्यक्षम, हवामानाविषयी संवेदनक्षम समाजाची निर्मिती करणे आणि त्याच्या नैसर्गिक वातावरणाशी जुळणारे समृद्ध अर्थव्यवस्थेची उभारणी करण्याकरिता अधिक अभिनवता आणि संशोधनास प्रोत्साहन देण्यासाठी योजनांचा संच, कृती आणि कार्यक्रमांविषयी सक्रिय आहे. युरोपमधील संशोधन कार्यक्रमाला ‘होरीझोन 2020’ चे पाठबळ आहे, जे जगभरातील सहभागासाठी खुले आहे.
    आज सर्व प्रकारच्या संस्था त्यांच्या पर्यावरणीय जोखम आणि कामगिरीच्या गरजेबद्दल अधिक जागरूक होत आहेत. त्यासाठी ISO 14001 मानकांनुसार ते त्यांच्या संस्थेसाठी योग्य पर्यावरणीय धोरणे विकसित करत आहेत.
    यात भारताची भूमिका काय आहे?
    भारतीय घटनेत थेट स्वरुपात पर्यावरण संरक्षणाच्या तरतुदींशी जुळलेला नाही. सरकारने 1976 साली घटनेत सुधारणा करून दोन महत्वाच्या तरतुदी केल्या -  परिशिष्ट 48 ए आणि 51 ए (जी). परिशिष्ट 48 ए राज्य सरकारला निर्देश देते की ते ‘पर्यावरणाची सुरक्षा आणि त्यामध्ये सुधारणा होण्याची खात्री करावी, तसेच देशाच्या वनसंपत्तीचे व वन्यजीवनाचे जतन करावे’. परिशिष्ट 51 ए (जी) नागरिकांना कर्तव्य प्रदान करते की त्यांनी ‘नैसर्गिक पर्यावरणाचे संरक्षण करावे तसेच त्याचे संवर्धन करावे आणि सर्व जीवांच्या प्रति दयाळू राहावे’.
    पर्यावरणाची गुणवत्ता राखण्यासाठी व प्रदूषण नियंत्रित करण्यासाठी सरकार वेळोवेळी अनेक कायदे व नियम तयार करीत आहे. काही मुख्य पुढीलप्रमाणे आहेत –
    जलप्रदूषण संबंधी
    • नदी सीमा अधिनियम, 1956
    • जल (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) अधिनियम, 1974
    • जल उपकर (प्रदूषण निवारण आणि नियंत्रण) अधिनियम, 1977
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
    भू-प्रदूषण संबंधी
    • कारखाने अधिनियम, 1948
    • उद्योग (विकास आणि नियंत्रण) अधिनियम, 1951
    • किटनाशक अधिनियम, 1968
    • शहरी भूमी (सीलिंग व नियंत्रण) अधिनियम, 1976
    वायुप्रदूषण संबंधी
    • कारखाने अधिनियम, 1948
    • ज्वलनशील पदार्थ अधिनियम, 1952
    • वायू (प्रदूषण निवारण व नियंत्रण) अधिनियम, 1981
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
    वन आणि वन्यजीव संबंधी
    • वन संवर्धन अधिनियम, 1960
    • वन्यजीवन सुरक्षा अधिनियम, 1972
    • वने (संवर्धन) अधिनियम, 1980
    • वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1995
    • जैव-विविधता अधिनियम, 2002
    याशिवाय, पर्यावरणाविषयी वाढत्या जागरूकतेला बघता याच्या समस्येवर मात करण्याकरिता अधिकाधिक कठोर कायदे, नियम तसेच धोरणे उपक्रम आंतरराष्ट्रीय संघटनांच्या नेतृत्वात राबवले जात आहेत.
    पर्यावरणीय व्यवस्थापन क्षमता निर्माण प्रकल्पाअंतर्गत, भारतात पर्यावरण कायद्यांच्या अंमलबजावणीला सुदृढ बनविण्याचे कार्य केले गेले आहे. या प्रकल्पाअंतर्गत नॅशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया विद्यापीठ, बंगलोर द्वारे विधीविषयक संरचनेला सुदृढ बनविण्यासाठी कित्येक प्रशिक्षण/कार्यशाळा/परिचर्चा अश्या कार्यक्रमांचे आयोजन केले गेले आहे आणि केले जात आहेत. शासकीय अधिकारी, न्यायाधीश, विधी शिक्षक, अधिवक्ता, औद्योगिक व्यवस्थापक, LSG व NGO साठी प्रशिक्षणाचे आयोजन केले जातात.
    देशात ‘राष्ट्रीय पर्यावरण धोरण–2006’ तयार केले गेले. देशात पर्यावरणविषयक तक्रारी लवकर निकाली काढण्यासाठी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) स्थापन केले गेले. तसेच राष्ट्रीय पर्यावरण मूल्यांकन व देखरेख प्राधिकरण (NEAMA) आणि भारताचे राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (NEPA) यांची स्थापना केली गेली. आणि हा प्रवास असाच प्रगतीपथावर सतत चालू राहणार आहे.

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