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    Friday, June 8, 2018

    Inter-Linking of Rivers in India नदियों को इंटरलिंक करने के लिए गठित विशेष समिति की स्थिति-सह-प्रगति रिपोर्ट: भारतामधील नदी जोड प्रकल्प: ताज्या घडामोडी

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    Current Affairs 8 June 2018 
    करेंट अफेयर्स 8 जून  2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
    Inter-Linking of Rivers in India


    नदियों को इंटरलिंक करने के लिए गठित विशेष समिति की स्थिति-सह-प्रगति रिपोर्ट:

    भारतामधील नदी जोड प्रकल्प: ताज्या घडामोडी








    Hindi | हिंदी


    नदियों को इंटरलिंक करने के लिए गठित विशेष समिति की स्थिति-सह-प्रगति रिपोर्ट:
    प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल को 1 जुलाई 2016 से 31 मार्च 2018 के बीच नदियों को इंटरलिंक करने के लिए गठित विशेष समिति की रिपोर्ट से अवगत कराया गया।
    नदियों को इंटरलिंक करने की प्रगति रिपोर्ट 2002 की रिट याचिका (दीवानी) – 512: ‘नदियों की नेटवर्किंग’ के साथ-साथ 2002 की रिट याचिका संख्‍या 668 के मामले में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के दिनांक 27 फरवरी 2012 के फैसले के संदर्भ में तैयार की गई है।
    इसके तहत केंद्र सरकार को नदियों को इंटरलिंक करने के लिए एक विशेष समिति गठित करने का निर्देश दिया गया था। नदियों को इंटरलिंक करने के लिए गठित इस विशेष समिति की प्रगति रिपोर्ट समय-समय पर मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्‍तुत करना जरूरी है।
    आईएलआर पर विशेष समिति की स्थिति रिपोर्ट में इन तीन क्षेत्रों में हुई प्रगति की जानकारी दी गई है – केन-बेतवा लिंक, दमनगंगा-पिंजल लिंक और पारा-तापी-नर्मदा लिंक। इसके अलावा 1980 की राष्‍ट्रीय परिप्रेक्ष्‍य योजना के तहत पहचान की गई अन्‍य हिमालयी एवं प्रायद्वीपीय लिंक।
    नदियों को आपस में जोड़ने की योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। रिवर इंटरलिंकिंग के ज़रिए देशभर में जलाशयों और नहरों के नेटवर्क के माध्यम से नदियों को आपस में जोड़ा जाना है।
    इस योजना के तहत गंगा सहित करीब 60 नदियों को जोड़ा जाना है। इसके लिए पीएम मोदी की ओर से 5.5 लाख करोड़ के बजट का प्रावधान है। इस प्रोजेक्ट का मकसद यह है कि जिन जगहों में पानी ज्यादा है, वहां से ऐसे इलाकों में पानी भेजा जाए जहां पर सूखा पड़ता है। रिवर इंटरलिंकिंग से किसानो की सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भरता को कम होगी।
    उद्देश्य:
    इस प्रोजेक्ट के पीछे की वजह देश में सूखे और बाढ़ की समस्या को दूर करने का लक्ष्य है। इस राष्ट्रीय योजना के जरिए करीब 15 लाख एकड़ फीट या 185 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी के भंडारण करने की योजना है।
    कार्यान्वन:
    इस प्रोजेक्ट की निगरानी जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली राष्ट्रीय जल विकास एंजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) करेगी। इस प्रोजेक्ट को तीन चरणों में बांटा गया है:
    • उत्तरी हिमालय नदी इंटरलिंक परियोजना
    • दक्षिणी पेंनिंसुलर कांपोनेंट
    • अंतरराज्यीय नदी लिंक परियोजना
    नदियों को जोड़े जाने का इतिहास:
    देश में नदियों को जोड़ने का एक लंबा इतिहास रहा है। 19वीं सदी में ब्रिटिश इंजीनियर ने नदियों को जोड़ने की योजना का प्रस्ताव रखा था और इससे आंध्र प्रदेश व ओडिशा क्षेत्र में सूखे की समस्या दूर होने की बात कही गई थी।
    वर्ष 1970 में डॉ. केएल राव डैम डिजाइनर और पूर्व सिंचाई मंत्री ने ब्रह्मपुत्र और गंगा बेसिन के आवश्यकता से अधिक जल को मध्य और दक्षिण भारत की ओर मोड़ने का प्रस्ताव रखा था।
    वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नदी जोड़ने की परियोजना को आगे बढ़ाया। एनडीए की सरकार आने के बाद वर्ष 2014 में नदी जोड़ने की परियोजना को लेकर एक स्पेशल कमेटी गठित की गई। जल संसाधन मंत्रालय की ओर से अप्रैल 2015 में नदी जोड़ने की परियोजना को लेकर एक टास्ट फोर्स गठित की गई।
    केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट:
    भारत सरकार की ओर से केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट घोषित किया गया, जिसके तहत केन नदी पर एक बांध बनाया जाएगा। इस नदी को कर्णवती के नाम से भी जाना जाता है, जो कि उत्तर मध्य भारत में बहती है। इसे 22 किमी. की लंबी नहर से बेतवा नदी से जोड़ा जाएगा।
    दमनगंगा-पींजल लिंक प्रोजेक्ट:
    दमनगंगा और पिंजल लिंक प्रोजेक्ट की डिटेल रिपोर्ट मार्च 2014 में महाराष्ट्र और गुजरात सरकार को सौंप दी गई थी।
    पार-तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट:
    पार-तापी-नर्मदा लिंक प्रोजेक्ट का पीडीआर राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी को अगस्त 2015 में गुजरात और महाराष्ट्र सरकार को सौप दिया गया था।
    इन नदियों के जुड़ जाने से करीब 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी, साथ ही 34,000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा। इसके साथ ही जल परिवहन, वाटर सप्लाई, मत्यस्य पालन किया जा सकेगा।




    English | इंग्लिश


    Inter-Linking of Rivers in India


     The Indian Rivers Inter-link is a proposed large-scale civil engineering project that aims to effectively manage water resources in India by linking Indian rivers by a network of reservoirs and canals and so reduce persistent floods in some parts and water shortages in other parts of India.
    The Inter-link project has been split into three parts:
     a northern Himalayan rivers inter-link component,
     a southern Peninsular component and
    starting 2005, an intrastate rivers linking component.
    The project is being managed by India's National Water Development Agency (NWDA), under its Ministry of Water Resources. NWDA has studied and prepared reports on 14 inter-link projects for Himalayan component, 16 inter-link projects for Peninsular component and 37 intrastate river linking projects.
    Need of Linking : The average rainfall in India is about 4,000 billion cubic meters, but most of India's rainfall comes over a 4-month period – June through September. Furthermore, the rain across the very large nation is not uniform, the east and north gets most of the rain, while the west and south get less.India also sees years of excess monsoons and floods, followed by below average or late monsoons with droughts. This geographical and time variance in availability of natural water versus the year round demand for irrigation, drinking and industrial water creates a demand-supply gap, that has been worsening with India's rising population.
    Background:
    British colonial era
    British colonial era
    -          During the British colonial rule, for example, the 19th century engineer Arthur Cotton proposed the plan to interlink major Indian rivers in order to hasten import and export of goods from its colony in South Asia, as well as to address water shortages and droughts in southeastern India, now Andhra Pradesh and Orissa.
    -          Post independence
    -          In the 1970s, Dr. K.L. Rao, a dams designer and former irrigation minister proposed "National Water Grid".
    -          In 1980, India’s Ministry of Water Resources came out with a report entitled "National Perspectives for Water Resources Development". This report split the water development project in two parts – the Himalayan and Peninsular components.
    -          The National Perspective Plan comprised, starting 1980s, of two main components:
    -          Himalayan Rivers Development, and
    -          Peninsular Rivers Development
    -          The Himalayan component would consist of a series of dams built along the Ganga and Brahmaputra rivers in India, Nepal and Bhutan for the purposes of storage. Canals would be built to transfer surplus water from the eastern tributaries of the Ganga to the west.
    -          Peninsular Component:
    -          This Scheme is divided in four major parts.
    1. Interlinking of Mahanadi-Godavari-Krishna-Palar-Pennar-Kaveri,
    2. Interlinking of West Flowing Rivers, North of Bombay and South of Tapi,
    3. Inter-linking of Ken with Chambal and
    4. Diversion of some water from West Flowing Rivers
    This component will irrigate an additional 25 million hectares by surface waters, 10 million hectares by increased use of ground waters and generate hydro power, apart from benefits of improved flood control and regional navigation.
    Four priority links under Peninsular Rivers Component have been identified for preparation of Detailed Project Report (DPR) viz; Ken-Betwa link project (KBLP) Phase –I & II, Damanganga-Pinjal link project, Par-Tapi-Narmada link project and Mahanadi Godavari link project. The preparation of DPR of a project is taken up after consent of concerned State Governments.
    Disadvantages of Interlinking River Project
    1. For the completion of Interlinking River project, many big dams, canals and reservoirs will have to be constructed due to which the surrounding land will become swampy and will not be suitable for agriculture.
    2. This can also reduce the production of food grains. Where or in which area to bring so much of water, which canal is to be transferred, it is mandatory to study and research about it adequately.
    3. The cost of the project is Extremely high.
    4. Ecological imbalance can occur by changing the natural course of water flow.
    5. Forests will also be submerged in water.






    Marathi | मराठी

    भारतामधील नदी जोड प्रकल्प: ताज्या घडामोडी

    पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांच्या अध्यक्षतेखाली केंद्रीय मंत्रिमंडळाच्या बैठकीत नदी जोड प्रकल्पासाठी स्थापन करण्यात आलेल्या विशेष समितीच्या सद्यस्थिती आणि प्रगतीचा अलीकडेच आढावा घेण्यात आला.
    नदी जोड प्रकल्पासंदर्भात 27 फेब्रुवारी 2015 रोजी सर्वोच्च न्यायालयाने दिलेल्या निकालाला अनुसरून तसेच त्यानंतर दाखल करण्यात आलेल्या रिट याचिकेवर सुनावणी करतांना नदी जोड प्रकल्पाच्या अध्ययनासाठी सर्वोच्च न्यायालयाने केंद्र सरकारला दिलेल्या निर्देशांना अनुसरून ही समिती तयार करण्यात आली आहे.
    या समितीच्या अहवालात, केन-बेटवा जोड, दमणगंगा-पिंजाळ जोड, पारा-तापी-नर्मदा जोड आणि इतर हिमालयन आणि बारमाही नद्यांच्या जोडणीविषयीच्या अध्ययनाची सविस्तर माहिती देण्यात आली आहे.
    शासनाची योजना
    जलसंपदा मंत्रालयाकडून तयार केलेल्या राष्ट्रीय दृष्टीकोन योजना (National Perspective Plan -NPP) अंतर्गत, NWDA कडून हिमालयीन नद्याअंतर्गत 14 आणि द्वीपकल्पाच्या नद्याअंतर्गत 16  नदी जोड प्रकल्पांना ओळखले गेले आहे. त्यापैकी, केन-बेटवा नदी जोड प्रकल्प हे प्रथम ठरले आहे. उत्तर प्रदेश आणि मध्यप्रदेश या प्रदेशाअंतर्गत येणार्‍या केन-बेटवा नदी जोड प्रकल्पाला भारत सरकारने राष्ट्रीय प्रकल्प म्हणून घोषित केले आहे. तसेच या प्रकल्पाअंतर्गत मध्यप्रदेशामधील पन्ना व्याघ्र संवर्धन प्रकल्पाला आणल्या गेले आहे. या प्रकल्पामध्ये पन्ना व्याघ्र संरक्षण क्षेत्राचा सुमारे 8,650 हेक्टर चा भूभाग समाविष्ट आहे.
    बेटवा ही यमुना नदीची उपनदी आहे जी, उत्तर भारताच्या प्रदेशात मध्यप्रदेश आणि उत्तरप्रदेश मधून वाहते. तर केन नदी ही सुद्धा यमुना नदीची उपनदी आहे, जी मध्य भारताच्या बुंदेलखंड प्रदेशातली मोठी नदी आहे आणि मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश मधून वाहते. 
    नदी जोड (Inter-linking of Rivers) म्हणजे काय?
    देशभरात अन्न-धान्यांच्या उत्पादनात वाढ करण्यासाठी सिंचन क्षमतेत वाढ करण्यासाठी, पूर व दुष्काळ परिस्थितीमध्ये कमतरता आणण्यासाठी आणि पाण्याची उपलब्धतेमध्ये असलेला प्रादेशिक असमतोल कमी करण्यासाठी राष्ट्रीय जल विकास संस्था (NWDA) ने एक सर्वात प्रभावी मार्ग शोधून काढला आहे आणि तो म्हणजे - आंतर-नदीच्या पात्रातील पाण्याचे हस्तांतरण (inter-basin water transfer –IBWT)  किंवा नदी जोड प्रकल्प.
    या प्रकल्पाअंतर्गत, भारतामधील उपलब्ध नद्या, ज्या पुर्णपणे समुद्राला मिळत नाही. त्यांचे पात्र नियोजित आराखड्याने इतर नद्यांच्या पात्रांशी जोडले जाणार. ज्यामुळे देशातील अधिकाधिक क्षेत्र ओलीताखाली येण्यास मदत होईल आणि पाण्याच्या उपलब्धतेच्या बाबतीत असलेला प्रादेशिक असमतोलता कमी करता येईल.
    या प्रकल्पांचा देशाला कसा फायदा होईल?
    देशातील प्रमुख नद्या एकमेकांना जोडल्या गेल्यास, एकूण अंमलबजावणीनंतर सुमारे 35 दशलक्ष हेक्टर क्षेत्र ओलीताखाली येईल, त्यामुळे देशातील एकूण ओलीताखालील क्षेत्र 175 दशलक्ष हेक्टर इतके होईल. तसेच जलविद्युत प्रकल्पामधून 34000 मेगावॅट ऊर्जा निर्मिती होऊ शकणार. त्यासोबतच पुर परिस्थितीवर नियंत्रण, सुचालन, उत्तम पाणी पुरवठा, मत्स्यव्यवसाय, क्षार आणि प्रदूषण नियंत्रण इ. विषय प्रभावीपणे हाताळले जाऊ शकतील.
    यामधील अडथळे आणि दृष्टिकोन
    नद्यांची जोडणी या संदर्भात विविध पर्यावरण समस्या पाहील्या गेल्या आहेत. उदाहरणार्थ मध्य प्रदेशातील पन्ना व्याघ्र प्रकल्प. केन आणि बेतवा नद्यांच्या जोडणीमुळे या वन्य क्षेत्रात ध्वनी प्रदूषण आणि डिझेल इंधनावर चालणार्‍या वाहनांचे दळणवळण यामध्ये मोठ्या प्रमाणात वाढ झाली आहे. यामुळे वन्य पर्यावरणाला धोका निर्माण झाला आहे. याखेरीज, प्रदूषित नद्या आता प्रदूषित नसलेल्या नद्यांना मिळतील आणि त्यामुळे जलसुरक्षेचा प्रश्न मोठ्या प्रमाणावर उभा राहणार आहे. तसेच, या प्रकल्पांच्या अंमलबजावणीचा अर्थ म्हणजेच प्राकृतिक संरचनेमध्ये मानवी हस्तक्षेप असा होतो. यामुळे भविष्यात मानवी अर्थातच इतर घटकांना सुद्धा मोठ्या गंभीर समस्यांना सामोरे जावे लागणार आहे हे निश्चित. पण त्याचबरोबर, जर आपण भारतातील उपलब्धतेचा आणि विकासाचा अभ्यास केला, तर नद्यांची जोडणी ही काळाची गरज दिसून आली आहे.






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