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    Friday, May 11, 2018

    पोखरण परमाणु परीक्षण के 20 साल बाद:

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    करेंट अफेयर्स 11 मे 2018 हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
    / currentaffairs





    हिंदी


    पोखरण परमाणु परीक्षण के 20 साल बाद:
    भारत ने 11 मई 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पोखरण परीक्षण रेंज में पांच परमाणु परीक्षणों में से पहला परीक्षण किया था। अचानक किए गए इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, पाकिस्तान समेत कई देश दंग रह गए थे।
    पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुआई में यह मिशन बहुत ही रहस्यमयी तरीके से किया गया था। इस मिशन की जरा से भी जानकारी विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों (सीआईए) को नहीं लग पायी थी। यहाँ तक अमेरिकी सैटेलाइट भी इस घटना का पता लगाने में सक्षम नहीं हो पाए थे।
    इससे पूर्व वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पहला परमाणु परीक्षण (पोखरण-1) कर दुनिया को भारत की ताकत का लोहा मनवाया था, इसे ऑपरेशन 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम दिया गया था। पोखरण-2 का नाम अटल बिहारी वाजपेयी ने 'शक्ति' रखा था।
    प्रमुख तथ्य:
    11 मई 1998 को भारत ने पोखरण रेंज में 3 अंडरग्राउड न्यूक्लियर टेस्ट किये। इसके बाद 13 मई को भी भारत ने 2 न्यूक्लियर टेस्ट किये जिसकी घोषणा खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने की।
    पोखरण परीक्षण रेंज पर 5 परमाणु परीक्षण करने के बाद भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर ही नहीं किए थे।
    प्रतिबंधों का सामना:
    इस परीक्षण के बाद भारत को विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आर्थिक तौर पर कई प्रतिबंधों का सामना भारत को करना पड़ा। भारत को एक प्रकार से अलग-थलग कर दिया गया था।
    उस वक्त भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस अलगाव की स्थिति से निपटना और अमेरिका-भारत की दूरियों को कम करना था। परमाणु परीक्षण के तुरंत बाद ही अमेरिका ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता को स्थगित कर दिया।
    अमेरिका ने 200 से अधिक भारतीय इकाइयों को प्रतिबंधित कर दिया। इस लिस्ट में न केवल परमाणु ऊर्जा विभाग और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और अंतरिक्ष विभाग की इकाइयां थीं, बल्कि प्राइवेट फर्मों का एक समूह भी शामिल था, जो उनके लिए काम करता था।
    परमाणु परीक्षण की आवश्यकता क्यों थी?
    90 के दशक में विश्व में सीटीबीटी अर्थात परमाणु अप्रसार संधि को लेकर चर्चाएं जोरों पर थीं। देश के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडकर के मुताबिक वह समय भारत के लिए फैसले की घड़ी थी। अगर भारत बिना परमाणु शक्ति बने सीटीबीटी पर दस्तखत कर देता, तो फिर उसे परमाणु परीक्षण करने का मौका कभी नहीं मिलता।
    और अगर भारत दस्तखत करने से मना करता तो उससे पूछा जाता कि वह परमाणु हथियारों पर पाबंदी से मुंह क्यों छुपा रहा है। यानी भारत का परमाणु शक्ति बनने का वह रणनीतिक सपना कभी पूरा नहीं हो पाता, जिसे देश के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने आजादी से कहीं पहले 1944 में केवल देखा ही नहीं था, बल्कि इसके लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मना भी लिया था।
    पिछले 20 वर्षों में क्या बदला?
    भारत के परमाणु परीक्षणों के तुरंत बाद चिरप्रतिद्वंदी पाकिस्तान ने तत्काल सात परमाणु परीक्षण किये। लेकिन तकनीक और दूसरी तरह के प्रतिबंधों के मामले में भारत ने एक दशक के भीतर अपनी स्थिति सुधार ली।
    मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में अमेरिका के साथ हुए असैनिक परमाणु समझौते (123 समझौता) के बाद दुनिया के साथ भारत के परमाणु संबंध फिर से शुरू हो गए।
    इसके बाद भारत ने कुछ रिएक्टरों को IAEA के तहत रखा और परमाणु व्यापार एंव तकनीक के साक्षेदार देशों के एलीट क्लब एनएसजी से छूट भी प्राप्त की। सितंबर 2008 में NSG से मिली राहत ने भारत पर तीन दशक से अधिक समय तक अमेरिका के नेतृत्व में लगे वैश्विक प्रतिबंध को हटाया जो 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगाया गया था। इसके बाद भारत को सिविलियन न्यूक्लियर तकनीक के लिए व्यापार का अधिकार भी मिल गया।
    सरकार ने जून 2017 में 9000 मेगावाट क्षमता वाले 12 और रिएक्टरों के लिए प्रशासनिक अनुमोदन और वित्तीय मंजूरी दे दी जोकि 2031 तक पूरा होने की उम्मीद है। साल 2031 तक 'भावीनी' द्वारा लागू की गई नीति के बाद न्यूक्लियर पावर क्षमता 22480 मेगावाट तक पहुंच जाएगी।
    भारत जापान न्यूक्लियर डील:
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके समकक्ष शिंजो आबे के बीच वार्ता के बाद भारत और जापान ने असैन्य परमाणु ऊर्जा को लेकर एक ऐतिहासिक करार पर हस्ताक्षर किए थे। इस करार से जापान भारत में परमाणु तकनीक का निर्यात कर सकेगा।
    इसके साथ ही भारत टोक्यो के साथ ऐसा करार करने वाला पहला ऐसा देश बन गया था जिसने एनपीटी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए। यह करार द्विपक्षीय आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को भी मजबूती प्रदान करने वाला था।
    भारत के साथ परमाणु करार करने वाले अन्य देशों में अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, फ्रांस, नामिबिया, अर्जेंटीना, कनाडा, कजाखस्तान तथा आस्ट्रेलिया शामिल हैं।




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    यशस्वी पोखरण अणू चाचणीनंतर भारताची दोन दशके

    सन 1998 मध्ये 11 मे या दिवशी भारताने अटल बिहारी वाजपेयी यांच्या प्रतिनिधीत्वात ‘ऑपरेशन शक्ती’ (पोखरण-2) ही दुसरी अणुचाचणी यशस्वी केली होती. तेव्हा अणुशास्त्रज्ञ अनिल काकोदर हे भाभा अणू संशोधन केंद्राचे (BARC) संचालक होते.
    भारतीय इतिहासातली एक मुख्य घटना आणि तंत्रज्ञान क्षेत्रातले सर्वात मोठे यश म्हणून दरवर्षी 11 मे रोजी भारतात राष्ट्रीय तंत्रज्ञान दिन पाळला जातो.
    चला तर आज आपण जाणून घेववूयात त्यानंतर उद्भवलेली परिस्थिती आणि भारताचा विकासपूर्ण प्रवास!
    पोखरण अणुचाचण्या
    इंदिरा गांधी यांनी प्रथम 1974 साली अणुचाचणी घेण्याचा निर्णय घेतला होता. ऑपरेशन 'स्माइलिंग बुद्धा' अंतर्गत पहिली अणु-चाचणी (पोखरण-1) घेतली गेली. त्यानंतर अटल बिहारी वाजपेयी भारताचे पंतप्रधान असताना राजस्थानच्या जैसलमेर जिल्ह्यातल्या पोखरण शहरात भारताने अणुचाचण्या केल्या.
    पोखरण क्षेत्रात 5 अणुचाचण्या केल्यानंतर भारत पहिला असा अणुशक्ती संपन्न देश बनला, ज्याने अण्वस्त्रांचा प्रसार रोखणारी संधि (NPT) यावर स्वाक्षरी केलेली नव्हती.
    अणुचाचण्या नंतर भारतापुढील आव्हाने
    पाकिस्तान आणि भारत यांच्यामधील अणू-होड ही वैश्विक शांततेच्या दृष्टीने धोकादायक होती, कारण पाकिस्तानने देखील या स्पर्धेत भाग घेतलेला होता.
    त्या घटनांनंतर भारतावर अनेक देशांकडून मुख्यताः अमेरिकेकडून अनेक आर्थिक प्रतिबंध लादले गेले होते. आंतरराष्ट्रीय पातळीवर भारताची भूमिका आणि शांततेच्या बाबतीत त्याचा दृष्टीकोण याबाबत सुधारण्यासाठी अनेक प्रयत्न केले गेले होते.
    त्यानंतरचे काही मुख्य घटनाक्रम
    • आलेल्या दुराव्यानंतर भारत-अमेरिका संबंध सुधारण्यामध्ये अमेरिकेतले परराष्ट्र सचिव आणि भारताचे तत्कालीन परराष्ट्र मंत्री जसवंत सिंग यांनी महत्त्वाची भूमिका बजावली होती.
    • मनमोहन सिंग आणि जॉर्ज बुश जूनियर यांच्या भेटीत भारत NPT वर स्वाक्षरी न करताच सर्व व्यावहारिक हेतूंसाठी अणु-मंचावर जागा बनवीत होता. 18 जुलै 2005 रोजी तत्कालीन पंतप्रधान मनमोहन सिंग आणि अमेरिकेचे राष्ट्रपती जॉर्ज डब्ल्यू. बुश यांच्या संयुक्त घोषणापत्रात यासंबंधी दुजोरा देण्यात आला.
    • त्यानंतर भारताने काही न्यूक्लियर रिएक्टरांना इंटरनॅशनल अटॉमिक एनर्जी एजन्सी (IAEA) अंतर्गत देशात ठेवले आणि आण्विक पुरवठादार गट (NSG) या अणू-व्यापार व तंत्रज्ञानाच्या भागीदार देशांच्या प्रमुख गटापासून मुक्तता प्राप्त केली. सप्टेंबर 2008 मध्ये NSG पासून सूट मिळाल्याने भारतावरील तीन दशकांहून अधिक काळापासून लादण्यात आलेल्या वैश्विक बंदीना हटविण्यात आले, जे 1974 आणि 1998 साली अणु-चाचणीनंतर भारतावर लादण्यात आले होते. त्यानंतर भारताला सिव्हीलियन न्यूक्लियर तंत्रज्ञानासाठी व्यापाराचे हक्क देखील मिळालेत.
    • भारत सरकारने जून 2017 मध्ये 9000 मेगावॉट क्षमतेचे 12 रिएक्टर आणि रिएक्टरांच्या प्रशासकीय मान्यता आणि वित्तीय मंजूरी दिली.
    • अलीकडेच भारत आणि जपान संबंधातून शांतता राखण्याच्या उद्देशाने अणुऊर्जा क्षेत्रात एक ऐतिहासिक करार करण्यात आला, ज्याअंतर्गत जपान भारतात आण्विक तंत्रज्ञानाची निर्यात करू शकणार. यासोबतच NPT वर स्वाक्षरी न केलेला भारत असा करार करणारा पहिला देश ठरणार आहे.
    • वर्तमानात अमेरिका, रशिया, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, फ्रान्स, नामिबीया, अर्जेंटिना, कॅनडा, कझाकिस्तान आणि ऑस्ट्रेलिया या देशांबरोबरही भारताने अणुकरार केलेला आहे.
    आज भारत सर्वात वेगाने वाढणारी मोठी अर्थव्यवस्था बनली आहे. भारतीय अर्थव्यवस्था $2.6 लक्ष कोटी (जवळजवळ 170 लक्ष कोटी रुपये) पर्यंत पोहचलेली आहे, जी फ्रांसपेक्षा अधिक आहे. आज जागतिक पातळीवर भारतीय अर्थव्यवस्था सहाव्या क्रमांकाची अर्थव्यवस्था आहे.
    “एकूणच वैश्विक सर्वदूर यशप्राप्ती आणि शांतता यांमध्ये भारताचा वाटा दिवसांगणिक असाच वाढत राहावा ही अपेक्षा बाळगता येईल”.




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