Current affairs 10 January 2018 - Hindi / English / Marathi
अब सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
अब सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2016 के अपने आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि फिल्म शुरू होने से पहले सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने संबंधी अंतिम फैसला केंद्र की तरफ से गठित अंतर मंत्रालयी समिति लेगी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस विषय पर विचार के लिए 12 सदस्यीय अंतर मंत्रालयी समिति गठित कर दी है। यह समिति सिनेमाघरों और सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्र गान गाने को लेकर मानकों का निर्धारण करेगी।
समिति को छह महीने के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया है। राष्ट्र गान गाने को तौर तरीकों को लेकर समिति सुझाव देगी। इस बात का भी सुझाव देगी कि प्रीवेंशन ऑफ इनसल्ट नेशनल ऑनर एक्ट 1971 में इसके लिए बदलाव जरूरी है या नहीं।
समिति की संरचना:
इस समिति में 11 मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को शामिल किया गया है। इस समिति नेतृत्व अतिरिक्त सचिव बीआर शर्मा करेंगे। इस समिति में आवश्यकता पडऩे पर मौजूदा कानूनों में आवश्यक संशोधन करने को लेकर सुझाव देने को भी कहा गया है। इसकी पहली बैठक 19 जनवरी को होगी।
राष्ट्र गान की महत्ता को देखते हुए इस समिति में 11 मंत्रालयों के अधिकारियों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। इनमें गृह, रक्षा, विदेश, महिला और बाल विकास, मानव संसाधन विकास, संंस्कृति, संसदीय, कानून, अल्पसंख्य, सूचना और प्रसारण और दिव्यांग शक्तिकरण मंत्रालय शामिल हैं।
अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राष्ट्र गान को लेकर समिति का गठन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि देशभक्ति का परिचय देने के लिए राष्ट्र गान गाने के लिए लोगों को बाध्य नहीं किया जा सकता। न ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्र गान के अपनी सीट से खड़ा नहीं होता है तो वह कम देशभक्त है।
पृष्ठभूमि:
3 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सिनेमाहॉल और दूसरी जगहों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, इसे वह (सरकार) तय करे। इस संबंध में जारी कोई भी सर्कुलर कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित न हो।
साथ ही इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह भी देखना चाहिए कि सिनेमाहॉल में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई कानून तय होनी चाहिए या नहीं? इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है, लिहाजा यह काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए?
बता दें कि नवंबर 2016 के इस फैसले के समर्थन में आने के केंद्र के रुख का कई कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था। फैसले के करीब एक साल बाद आदेश को लागू किया गया था।
राष्ट्रगान:
भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' है, जो मूलतः बांग्ला भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा गया था, जिसे भारत सरकार द्वारा 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के रूप में अंगीकृत किया गया। इसके गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड निर्धारित है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिनकी रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। उनकी एक दूसरी कविता 'आमार सोनार बाँग्ला' को आज भी बांग्लादेश में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है।
चित्रपटगृहात चित्रपट सुरु होण्यापूर्वी आता राष्ट्रगीत वाजवणे सक्तीचे नसणार. न्यायालयाने 30 नोव्हेंबर 2016 रोजी चित्रपटगृहांमध्ये चित्रपट सुरू होण्यापूर्वी राष्ट्रगीत वाजवणे अनिवार्य केले होते, ज्यातून केवळ शारिरीकदृष्ट्या अपंग असलेल्या व्यक्तींना सूट देण्यात आली होती. त्या आदेशात भारताचे सरन्यायाधीश दीपक मिश्रा यांच्या अध्यक्षतेत खंडपीठाने बदल करत हा निर्णय दिला आहे.
मात्र यासंदर्भातला अंतिम निर्णय केंद्र सरकारने स्थापन केलेली 12 सदस्यीय समिती घेणार असल्याचे स्पष्ट करण्यात आले आहे. ही समिती पुढच्या सहा महिन्यांत आपला अहवाल सादर करणार.
मात्र सिनेमागृहात राष्ट्रगीत वाजवण्याची अनिवार्यता तोपर्यंत पाळली जाणार, जोपर्यंत सर्वोच्च न्यायालय आपल्या आदेशात दुरूस्ती करत त्यामध्ये सवलत देत नाही किंवा आंतरमंत्रालय समितीचा अहवाल तयार होत नाही.
गृहमंत्रालयाचे विशेष सचिव बी. आर. शर्मा यांच्या नेतृत्वात 12 सदस्यीय आंतरमंत्रालयीन समिती विद्यमान कायद्यात जर बदल करण्याची आवश्यकता भासल्यास तसेच सिनेमागृहात आणि सार्वजनिक ठिकाणी राष्ट्रगीत वाजविण्यासंबंधी अंतिम निर्णय घेतील आणि गरज पडल्यास शिफारस करतील.
पार्श्वभूमी
1 डिसेंबर 2016 रोजी सर्वोच्च न्यायालयाने चित्रपटगृहात चित्रपट सुरू करण्याअगोदर राष्ट्रगीत म्हणणे सक्तीचे आहे यासंबंधी देशभरातील सर्व चित्रपटगृहासाठी आदेश दिला. या आदेशन्वये, राष्ट्रगीत दरम्यान सर्व उपस्थित उभे राहतील आणि पडद्यावर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित केला जाणार.
हा निर्णय न्यायमूर्ती दीपक मिश्रा आणि अमिताव रॉय यांच्या खंडपीठाने दिला आहे. खंडपीठाने राष्ट्रीय सन्मानाचा अपमान रोखण्याचा कायदा, 1951 अन्वये हा निर्णय दिला आहे.
त्यानंतर, 9 डिसेंबर 2016 रोजी सर्वोच्च न्यायालयाने राष्ट्रगीतावरील त्यांच्या आदेशामध्ये सुधारणा केली आणि देशभरात सिनेमा हॉलमध्ये चित्रपट प्रदर्शनाआधी गायल्या जाणार्या गीतावेळी शारीरिकदृष्ट्या अपंग व्यक्तींना उभे राहण्यापासून सूट दिली आहे.
पूर्वीचे आदेश
भारताचे राष्ट्रगीत ‘जन गण मन’ नोबेल विजेते साहित्यिक रवींद्रनाथ टैगोर यांनी लिहिलेले आहे. 24 जानेवारी 1950 रोजी भारतीय संविधानिक सभेने हिंदी भाषेत भाषांतर केलेले हे गीत राष्ट्रगीत म्हणून स्वीकारले. 27 डिसेंबर 1911 रोजी कलकत्ता (आताचे कोलकाता) येथे झालेल्या भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेसच्या सत्रात सार्वजनिकरित्या गायिले गेले.
Hindi
अब सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
अब सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2016 के अपने आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि फिल्म शुरू होने से पहले सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने संबंधी अंतिम फैसला केंद्र की तरफ से गठित अंतर मंत्रालयी समिति लेगी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस विषय पर विचार के लिए 12 सदस्यीय अंतर मंत्रालयी समिति गठित कर दी है। यह समिति सिनेमाघरों और सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्र गान गाने को लेकर मानकों का निर्धारण करेगी।
समिति को छह महीने के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया है। राष्ट्र गान गाने को तौर तरीकों को लेकर समिति सुझाव देगी। इस बात का भी सुझाव देगी कि प्रीवेंशन ऑफ इनसल्ट नेशनल ऑनर एक्ट 1971 में इसके लिए बदलाव जरूरी है या नहीं।
समिति की संरचना:
इस समिति में 11 मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को शामिल किया गया है। इस समिति नेतृत्व अतिरिक्त सचिव बीआर शर्मा करेंगे। इस समिति में आवश्यकता पडऩे पर मौजूदा कानूनों में आवश्यक संशोधन करने को लेकर सुझाव देने को भी कहा गया है। इसकी पहली बैठक 19 जनवरी को होगी।
राष्ट्र गान की महत्ता को देखते हुए इस समिति में 11 मंत्रालयों के अधिकारियों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। इनमें गृह, रक्षा, विदेश, महिला और बाल विकास, मानव संसाधन विकास, संंस्कृति, संसदीय, कानून, अल्पसंख्य, सूचना और प्रसारण और दिव्यांग शक्तिकरण मंत्रालय शामिल हैं।
अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राष्ट्र गान को लेकर समिति का गठन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि देशभक्ति का परिचय देने के लिए राष्ट्र गान गाने के लिए लोगों को बाध्य नहीं किया जा सकता। न ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्र गान के अपनी सीट से खड़ा नहीं होता है तो वह कम देशभक्त है।
पृष्ठभूमि:
3 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सिनेमाहॉल और दूसरी जगहों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, इसे वह (सरकार) तय करे। इस संबंध में जारी कोई भी सर्कुलर कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित न हो।
साथ ही इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह भी देखना चाहिए कि सिनेमाहॉल में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई कानून तय होनी चाहिए या नहीं? इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है, लिहाजा यह काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए?
बता दें कि नवंबर 2016 के इस फैसले के समर्थन में आने के केंद्र के रुख का कई कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था। फैसले के करीब एक साल बाद आदेश को लागू किया गया था।
राष्ट्रगान:
भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' है, जो मूलतः बांग्ला भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा गया था, जिसे भारत सरकार द्वारा 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के रूप में अंगीकृत किया गया। इसके गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड निर्धारित है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिनकी रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। उनकी एक दूसरी कविता 'आमार सोनार बाँग्ला' को आज भी बांग्लादेश में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है।
English
Playing of national anthem in cinema halls no longer mandatory: SC
The Supreme Court has modified its order of November 30, 2016 relating to playing of National Anthem in cinema halls. The order was given by a bench headed by Chief Justice Dipak Misra and comprised of Justices A M Khanwilkar and D Y Chandrachud on January 9, 2018.
Under the modified order, the playing of national anthem is optional, that is, it is now up to cinema hall owners whether or not to play the national anthem.
Five Directions given by SC
The affidavit filed after apex court in October 2017 had asked the Centre to decide on the issue following a nationwide debate on its earlier order.
12-member Panel constituted
The Union Home Ministry has constituted a 12-member inter-ministerial committee headed by Additional Secretary (Home) BR Sharma. The committee will take a call on the playing of the national anthem in cinema halls and public places. The committee will submit its report within six months.
The committee would make recommendations on the regulations for playing/singing of the national anthem and suggest changes in the Acts and orders relating to the Prevention of Insults to National Honour Act, 1971.
November 30, 2016 Order
As per the court's initial order in November 2016, all present in theatres must "stand up in respect" till the anthem played. That would "instill a feeling within one, a sense of committed patriotism and nationalism," the bench, led by Justice Dipak Misra, who later became the Chief Justice of India, had ordered.
Another bench of the apex court, in October 2017, modified its order after an appeal. It said that "People do not need to stand up at a cinema hall to be perceived as patriotic".
The Supreme Court has modified its order of November 30, 2016 relating to playing of National Anthem in cinema halls. The order was given by a bench headed by Chief Justice Dipak Misra and comprised of Justices A M Khanwilkar and D Y Chandrachud on January 9, 2018.
Under the modified order, the playing of national anthem is optional, that is, it is now up to cinema hall owners whether or not to play the national anthem.
Five Directions given by SC
- The Committee appointed by the Union government shall submit its recommendations to the competent authority in terms of the Notification dated December 5, 2017, for follow-up action.
- The order passed on November 30, 2016, is modified to the extent that playing of the National Anthem prior to the screening of feature films in cinema halls is not mandatory, but optional or directory.
- Since the Committee constituted by the Union government is looking into all aspects of the matter, it shall make its recommendations uninfluenced by the interim directions of this Court, as clarified in our order dated October 23, 2017. Similarly, the competent authority shall in taking its decision(s) not be constrained or influenced by any of the interim directions.
- Citizens or persons are bound to show respect as required under executive orders relating to the National Anthem of India and the prevailing law, whenever it is played or sung on specified occasions, and
- The exemption granted to disabled persons shall remain in force till the final decision of the competent authority with regard to each occasion whenever the National Anthem is played or sung.”
The affidavit filed after apex court in October 2017 had asked the Centre to decide on the issue following a nationwide debate on its earlier order.
12-member Panel constituted
The Union Home Ministry has constituted a 12-member inter-ministerial committee headed by Additional Secretary (Home) BR Sharma. The committee will take a call on the playing of the national anthem in cinema halls and public places. The committee will submit its report within six months.
The committee would make recommendations on the regulations for playing/singing of the national anthem and suggest changes in the Acts and orders relating to the Prevention of Insults to National Honour Act, 1971.
November 30, 2016 Order
As per the court's initial order in November 2016, all present in theatres must "stand up in respect" till the anthem played. That would "instill a feeling within one, a sense of committed patriotism and nationalism," the bench, led by Justice Dipak Misra, who later became the Chief Justice of India, had ordered.
Another bench of the apex court, in October 2017, modified its order after an appeal. It said that "People do not need to stand up at a cinema hall to be perceived as patriotic".
Marathi
सिनेमागृहात राष्ट्रगीत वाजवणे आता अनिवार्य नाही - सर्वोच्च न्यायालय
चित्रपट सुरु होण्यापूर्वी राष्ट्रगीत वाजवण्याची सक्ती सर्वोच्च न्यायालयाने रद्द केली आहे. तसेच आंतरमंत्रालयीन समितीला सहा महिन्यात नवे नियम जाहीर करण्याचे आदेश दिलेत.चित्रपटगृहात चित्रपट सुरु होण्यापूर्वी आता राष्ट्रगीत वाजवणे सक्तीचे नसणार. न्यायालयाने 30 नोव्हेंबर 2016 रोजी चित्रपटगृहांमध्ये चित्रपट सुरू होण्यापूर्वी राष्ट्रगीत वाजवणे अनिवार्य केले होते, ज्यातून केवळ शारिरीकदृष्ट्या अपंग असलेल्या व्यक्तींना सूट देण्यात आली होती. त्या आदेशात भारताचे सरन्यायाधीश दीपक मिश्रा यांच्या अध्यक्षतेत खंडपीठाने बदल करत हा निर्णय दिला आहे.
मात्र यासंदर्भातला अंतिम निर्णय केंद्र सरकारने स्थापन केलेली 12 सदस्यीय समिती घेणार असल्याचे स्पष्ट करण्यात आले आहे. ही समिती पुढच्या सहा महिन्यांत आपला अहवाल सादर करणार.
मात्र सिनेमागृहात राष्ट्रगीत वाजवण्याची अनिवार्यता तोपर्यंत पाळली जाणार, जोपर्यंत सर्वोच्च न्यायालय आपल्या आदेशात दुरूस्ती करत त्यामध्ये सवलत देत नाही किंवा आंतरमंत्रालय समितीचा अहवाल तयार होत नाही.
गृहमंत्रालयाचे विशेष सचिव बी. आर. शर्मा यांच्या नेतृत्वात 12 सदस्यीय आंतरमंत्रालयीन समिती विद्यमान कायद्यात जर बदल करण्याची आवश्यकता भासल्यास तसेच सिनेमागृहात आणि सार्वजनिक ठिकाणी राष्ट्रगीत वाजविण्यासंबंधी अंतिम निर्णय घेतील आणि गरज पडल्यास शिफारस करतील.
पार्श्वभूमी
1 डिसेंबर 2016 रोजी सर्वोच्च न्यायालयाने चित्रपटगृहात चित्रपट सुरू करण्याअगोदर राष्ट्रगीत म्हणणे सक्तीचे आहे यासंबंधी देशभरातील सर्व चित्रपटगृहासाठी आदेश दिला. या आदेशन्वये, राष्ट्रगीत दरम्यान सर्व उपस्थित उभे राहतील आणि पडद्यावर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित केला जाणार.
हा निर्णय न्यायमूर्ती दीपक मिश्रा आणि अमिताव रॉय यांच्या खंडपीठाने दिला आहे. खंडपीठाने राष्ट्रीय सन्मानाचा अपमान रोखण्याचा कायदा, 1951 अन्वये हा निर्णय दिला आहे.
त्यानंतर, 9 डिसेंबर 2016 रोजी सर्वोच्च न्यायालयाने राष्ट्रगीतावरील त्यांच्या आदेशामध्ये सुधारणा केली आणि देशभरात सिनेमा हॉलमध्ये चित्रपट प्रदर्शनाआधी गायल्या जाणार्या गीतावेळी शारीरिकदृष्ट्या अपंग व्यक्तींना उभे राहण्यापासून सूट दिली आहे.
पूर्वीचे आदेश
- आर्थिक फायदा किंवा कोणत्याही प्रकारचा लाभ देण्यासाठी यामध्ये व्यावसायिक फायदा घेतला जाणार नाही. म्हणजेच, कोणताही व्यावसायिक फायदा किंवा इतर कोणताही फायदा करून घेण्यास प्रत्यक्ष किंवा अप्रत्यक्षपणे सहभागी व्यक्तीकडून राष्ट्रगीताचा वापर केला जाऊ नये.
- राष्ट्रगीतामध्ये कोणत्याही प्रकारचा नाटकीपणा राहणार नाही आणि ते कोणत्याही कार्यक्रमाचा भाग म्हणून समाविष्ट केले जाऊ नये. राष्ट्रगीताचे नाट्यीकरण प्रदर्शन करण्यास विचार करणे हे पूर्णपणे अकल्पनीय आहे.
- राष्ट्रगीत किंवा त्याचा काही भाग कोणत्याही वस्तूवरछापल्या जाणार नाही आणि अशा कोणत्याही ठिकाणी प्रदर्शित केले जाणार नाही,ज्यामुळे त्याचा अनादर होईल आणि लज्जास्पद बाबठरू शकते. राष्ट्रगीताचे गायन हे राष्ट्रीय ओळख, राष्ट्रीय एकात्मता आणि घटनात्मक राष्ट्रभक्ती प्रदर्शित करते.
- भारताच्या सर्व चित्रपटगृहांमध्ये चित्रपट सुरू करण्याआधी राष्ट्रगीत गायन झाले पाहिजे आणि सभागृहामधील सर्व उपस्थितांनी राष्ट्रगीताला आदरार्थ उभे राहणे भाग आहे.
- चित्रपटगृहाच्या पडद्यावर राष्ट्रगीत गायनाआधी, चित्रपटगृहाचे दरवाजे बंद राहतील,जेणेकरून कोणाकडूनही कोणत्याही प्रकारचा गोंधळ होणार नाही. राष्ट्रगीत झाल्यानंतर, दरवाजे उघडतायेणार.
- राष्ट्रगीत गायनादरम्यान चित्रपटगृहात पडद्यावर राष्ट्रीय ध्वज झळकणार.
- कोणत्याही कारणास्तव कोणाकडूनही तयार केलेली राष्ट्रगीताची संक्षिप्त आवृत्ती गायली किंवा प्रदर्शित केली जाणार नाही.
भारताचे राष्ट्रगीत ‘जन गण मन’ नोबेल विजेते साहित्यिक रवींद्रनाथ टैगोर यांनी लिहिलेले आहे. 24 जानेवारी 1950 रोजी भारतीय संविधानिक सभेने हिंदी भाषेत भाषांतर केलेले हे गीत राष्ट्रगीत म्हणून स्वीकारले. 27 डिसेंबर 1911 रोजी कलकत्ता (आताचे कोलकाता) येथे झालेल्या भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेसच्या सत्रात सार्वजनिकरित्या गायिले गेले.
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