Currentaffairs 29 December 2017 - Hindi / English / Marathi
Hindi
सौरमंडल का निर्माण विशाल, लम्बे समय तक मृत रहे तारे से निकले बुलबुलों से हुआ: शोध
वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के निर्माण की प्रक्रिया को खोजने में सफलता हासिल की है। अब तक माना जाता था कि तारों के विस्फोट यानी सुपरनोवा से सौरमंडल का निर्माण हुआ है। लेकिन एक नए शोध के मुताबिक सूर्य से 40-50 गुना अधिक बड़े वुल्फ-रयेट तारे के नष्ट होने (मृत हो जाने) के वक्त निकले बुलबुलों से हमारा सौरमंडल विकसित हुआ।
शोध से जुड़े प्रमुख तथ्य:
वुल्फ रयेट स्टार (Wolf-Rayet star) ने जब अपने कुछ तत्वों को बाहर निकालना शुरू किया तो तारों के बीच चल रही हवाएं इन्हें उड़ा ले गईं। इन तत्वों से बुलबुले जैसा एक ढांचा तैयार हुआ जिसके बीच गैस और धूल भरी हुई थी। एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार इस ढांचे में एक से सोलह प्रतिशत तक सूर्य जैसे तारों का निर्माण हो सकता था।
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के सह लेखक निकोलस डॉफस ने कहा कि, "ऐसे बुलबुले का ढांचा तारों का उत्पादन करने के लिए एक अच्छी जगह है," क्योंकि यहाँ पर धूल और गैस अंदर फंस जाते हैं जहां वे सितारों में घनीभूत हो सकते हैं।
पुराने शोध के मुताबिक जिस सुपरनोवा से सौरमंडल का विकास हुआ, उसमें अल्युमिनियम-26 और आयरन-60 के आइसोटोप (विभिन्न न्यूट्रॉन संख्या वाले समान तत्व) प्रमुखता से उपलब्ध थे।
फिर 2015 में हुए एक अध्ययन में सामने आया था कि सौरमंडल में केवल अल्युमिनियम के आइसोटोप ही उपलब्ध हैं। नया अध्ययन इसलिए ज्यादा प्रमाणिक माना जा रहा है क्योंकि वुल्फ रयेट से केवल अल्युमिनियम-26 ही निकला था।
शिकागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. विक्रम द्वारकादास बताते हैं कि वुल्फ-रयेट विस्फोट से या ब्लैक होल में जाकर नष्ट हो गया था। बुलबुले की तरह दिखने वाले ढांचे का कुछ अंश गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नष्ट हुआ और शेष भाग से सौर मंडल का निर्माण संभव हो पाया।
English
Scientists have said that the solar system could have formed in the bubbles produced by a giant, long-dead star, which was 40 to 50 times the size of the sun. Despite the many impressive discoveries humans have made about the universe, scientists are yet to come to a consensus about the birth story of the solar system.
Wolf-Rayet star:
- But the new scenario, explained in a paper in the Astrophysical Journal, begins with a giant type of star called a Wolf-Rayet star.
- Wolf–Rayet stars, often abbreviated as WR stars, are a rare heterogeneous set of stars with unusual spectra showing prominent broad emission lines of highly ionised helium and nitrogen or carbon.
- They burn the hottest of all stars, producing tonnes of elements which are flung off the surface in an intense stellar wind. As the Wolf-Rayet star sheds its mass, the stellar wind ploughs through the material around it, forming a bubble structure with a dense shell. The shell of such a bubble is a good place to produce stars,” because dust and gas become trapped inside where they can condense into stars.
The researchers estimate that 1% to 16% of all sun-like stars could be formed in such stellar nurseries.
Meteorites left over from the early solar system suggest there was a lot of aluminium-26. In addition, studies increasingly suggest the solar system had less of the isotope iron-60. This brings scientists up short, because supernovae produce both isotopes. As for the fate of the giant Wolf-Rayet star, the researchers believe that its life ended long ago, likely in a supernova explosion or a direct collapse to a black hole.
Marathi
सूर्यमालेच्या निर्माणासंबंधी शास्त्रज्ञांनी ‘बिग बबल’ सिद्धांत मांडला
खगोलशास्त्रज्ञांनी सूर्यमालेच्या निर्माणासंबंधी एक सिद्धांत मांडला आहे, त्यानुसार, सूर्यमाला दीर्घकाळापासून मृत असलेल्या प्रचंड तार्यामधून निघणार्या बुडबुड्यांमध्ये तयार झालेली असू शकते.
आतापर्यंत असे मानले जात होते की, तार्यांच्या विस्फोटात म्हणजेच सुपरनोव्हापासून सूर्यमालेची निर्मिती झाली आहे. मात्र नव्या अभ्यासानुसार, सूर्याहून 40-50 पटीने मोठ्या वुल्फ-रायेट तार्याच्या नष्ट होण्याच्या काळात निघणार्या बुडबुड्यांमध्ये ही सूर्यमाला निर्माण झालेली आहे.
‘बिग बबल’ सिद्धांत
वुल्फ-रायेट तारा (Wolf-Rayet star) ने जेव्हा आपल्या काही तत्वांना बाहेर काढण्यास सुरुवात केली असताना तेथे निर्माण झालेल्या वार्याने ती तत्वे वाहवत गेली. या तत्वांमुळे बुडबुड्यांप्रमाणे एक संरचना तयार झाली, ज्यामध्ये वायु आणि धूळ भरलेली असावी. ज्यात सूर्याचा जन्म झालेला असावा. ‘अॅस्ट्रोफिजिकल’ या नियतकालिकेमध्ये हा अभ्यास प्रकाशित करण्यात आला आहे.
जुन्या शोधानुसार, ज्या सुपरनोव्हाने सूर्यमालेचा विकास झाला, त्यामध्ये अॅल्युमिनियम-26 आणि आयर्न-60 चे आयसोटोप म्हणजेच उत्सर्जक कण (विविध न्यूट्रॉन संख्या असणारे समान तत्व) प्रामुख्याने उपलब्ध होते.
त्यानंतर 2015 साली केल्या गेलेल्या अभ्यासात असे समोर आले की, सूर्यमालेत केवळ अॅल्युमिनियमचे आयसोटोप उपलब्ध आहेत. नवा अभ्यास अधिक प्रमाणशील असल्याचे यामुळे मानले जात आहे, कारण वुल्फ-रायेट तार्यामधून केवळ अॅल्युमिनियम-26 हेच निघाले होते.
वुल्फ-रायेट तारा विस्फोटात किंवा कृष्णविवारात पडून नष्ट झाला असावा. बुडबुड्यासारख्या संरचनेचा काही अंश गुरुत्वाकर्षणामुळे नष्ट झाला असावा आणि उर्वरित भागामधून सूर्यमालेची निर्मिती झाली असावी.
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