करेंट अफेयर्स २९ जनवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
रोटावैक: डब्ल्यूएचओ टेस्ट पास करने वाली स्वदेशी रूप से विकसित की गयी पहली वैक्सीन:
रोटावैक भारत द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया पहला टीका है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्री-क्वालिफाई किया है। इसका मतलब है कि टीके को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों में बेचा जा सकता है।
रोटावैक:
रोटावैक वैक्सीन को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक लिमिटेड ने विकसित किया है। यह वैक्सीन रोटावायरस के कारण होने वाले बचपन के दस्त (चाइल्डहुड डायरिया) को रोकने में सहायक होगी। यह वैक्सीन चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में भारत और संयुक्त राज्य के बीच संयुक्त सहयोग के तहत विकसित की गयी थी।
इसे सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) के मॉडल के तहत विकसित किया गया था जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, अमेरिकी सरकार और भारत में बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा समर्थित गैर-सरकारी संगठनों की संस्थाएं सम्मिलित थीं।
यह वैक्सीन 30 साल पहले नई दिल्ली में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स), नई दिल्ली में पृथक किये गए वायरस की प्रजाति के माध्यम से बनायी गयी है। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम में शामिल किया गया है। एक वर्ष से अधिक समय तक इस टीके का परीक्षण किया गया था, इस समयावधि में इस टीके ने कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं दिखाया है।
महत्व:
यह मान्यता भारत में टीके विकसित करने के लिए विश्वसनीय औद्योगिक, वैज्ञानिक और नियामक प्रक्रिया का प्रतीक है। यह स्वास्थ्य और मानवीय संगठनों जैसे यूनिसेफ, जीएवीआई और पैन-अमेरिकन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के लिए दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए रोटावैक की खरीद के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
रोटावायरस:
रोटावायरस दुनिया भर के बच्चों और नवजातों में गंभीर दस्त होने का सबसे सामान्य कारण है। रोटावायरस एक दोहरे-स्ट्रैंड वाला RNA वायरस है जो रियोवायरस परिवार का है। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखे जाने पर, वायरस की आकृति एक पहिए की तरह दिखाई देती है।
रोटावायरस विष्टा-मौखिक मार्ग, आर्थात किसी संक्रमित व्यक्ति के अपशिष्ट से दूसरे व्यक्ति के मुंह में फैलता है। यह हाथों और खिलौनों जैसी वस्तुओं पर मौजूद संदूषण के जरिए हो सकता है। वायरस बच्चों में आसानी से फैल सकता है और बच्चों से उन लोगों में पहुंच सकता है जो उन बच्चों के सबसे निकट होते हैं।
Rotovac: First Indian vaccine to be “pre-qualified” by WHO
For the first time, a vaccine conceived and developed from scratch in India has been “pre-qualified” by the UN health agency World Health Organisation (WHO)
To be “pre-qualified” means that the vaccine can be sold internationally to several countries in Africa and South America.
While several vaccines from India have been pre-qualified, this is the first vaccine that has been entirely developed locally. It is a sign that there is a credible industrial, scientific and regulatory process in place to develop vaccines in India.
Rotovac Vaccine
The Rotavac vaccine, developed by the Hyderabad-based Bharat Biotech Limited in 2017, was included in India’s national immunisation programme.
The Rotavac vaccine protects against childhood diarrhoea caused by the rotavirus and was built on strain of the virus isolated at the the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) over 30 years ago.
India included the Rotavac in its national immunisation in 2016, with about 35 million doses delivered till date. A dose costs between Rs 55-60, according to Bharat Biotech.
So far, about 9 million children in nine Indian states have been vaccinated and so far it has not shown any negative effect contrary to critics claiming that rotavirus vaccine carried a small chance of causing infants to develop a bowel disorder.
Besides Bharat Biotech, the Pune-based Serum International also has developed a rotavirus vaccine called “Rabishield” that has also been included in India’s immunisation programme.
About Rotavirus
Rotavirus is the most common cause of diarrhoeal disease among infants and young children. The virus was discovered in 1973 by Ruth Bishop
It is a genus of double-stranded RNA viruses in the family Reoviridae. There are eight species of this virus, referred to as A, B, C, D, E, F, G and H. Rotavirus A, the most common species, causes more than 90% of rotavirus infections in humans.
Rotavirus is responsible for an estimated 36% of hospitalisations for childhood diarrhoea around the world and for an estimated 200,000 deaths in low- and middle-income countries.
गेल्यावर्षी हैदराबादमधील भारत बायोटेक लिमिटेड कंपनीने तयार केलेल्या रोटावॅक्स लसला भारताच्या राष्ट्रीय लसीकरण कार्यक्रमात समाविष्ट करण्यात आले.
‘पूर्व-पात्र’ होणे म्हणजे त्या लसीचा आफ्रिकेत आणि दक्षिण अमेरिका खंडातल्या बर्याच देशांना पुरवठा करण्यासाठी आंतरराष्ट्रीय स्तरावर विकली जाऊ शकते.
रोटावॅक्स (Rotavac) लस रोटा विषाणूमुळे उद्भवणार्या बालपणातील अतिसारापासून संरक्षण देते.
रोटा विषाणू हा जगभरात बालपणातील अतिसारामुळे अंदाजे 36% प्रकरणांना रुग्णालयात भरती करण्यास जबाबदार आहे आणि त्यामुळे कमी व मध्यम उत्पन्न असलेल्या देशांमध्ये अंदाजे 200,000 मृत्यूंला कारणीभूत आहे.
तसे तर भारतात विकसित अनेक लसी ‘पूर्व-पात्र’ ठरल्या आहेत, परंतु हे पहिलीच वेळ आहे जी संपूर्णपणे देशातच विकसित केली गेली आहे.
रोटावॅक्स लस 30 वर्षांपूर्वी अखिल भारतीय वैद्यकीय विज्ञान संस्था येथे साठवून ठेवलेल्या विषाणूच्या नमुन्याच्या आधारावर तयार केली गेली आहे. भारतात या लसीच्या एका डोजला 55-60 रुपये या दराने खर्च येतो. वर्ष 2016 मध्ये सामील ही लस राष्ट्रीय लसीकरण कार्यक्रमामधून आतापर्यंत देशभरात 9 राज्यांमध्ये सुमारे 90 लक्ष बालकांना दिली गेली आहे.
पुणे स्थित सीरम इंटरनॅशनल कंपनीने देखील ‘रॅबीशील्ड’ नावाची रोटा विषाणू-रोधी लस विकसित केली आहे, ज्याला भारताच्या लसीकरण कार्यक्रमामध्ये समाविष्ट केले आहे.
हिंदी
रोटावैक: डब्ल्यूएचओ टेस्ट पास करने वाली स्वदेशी रूप से विकसित की गयी पहली वैक्सीन:
रोटावैक भारत द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया पहला टीका है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्री-क्वालिफाई किया है। इसका मतलब है कि टीके को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों में बेचा जा सकता है।
रोटावैक:
रोटावैक वैक्सीन को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक लिमिटेड ने विकसित किया है। यह वैक्सीन रोटावायरस के कारण होने वाले बचपन के दस्त (चाइल्डहुड डायरिया) को रोकने में सहायक होगी। यह वैक्सीन चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में भारत और संयुक्त राज्य के बीच संयुक्त सहयोग के तहत विकसित की गयी थी।
इसे सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) के मॉडल के तहत विकसित किया गया था जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, अमेरिकी सरकार और भारत में बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा समर्थित गैर-सरकारी संगठनों की संस्थाएं सम्मिलित थीं।
यह वैक्सीन 30 साल पहले नई दिल्ली में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स), नई दिल्ली में पृथक किये गए वायरस की प्रजाति के माध्यम से बनायी गयी है। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतिरक्षण कार्यक्रम में शामिल किया गया है। एक वर्ष से अधिक समय तक इस टीके का परीक्षण किया गया था, इस समयावधि में इस टीके ने कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं दिखाया है।
महत्व:
यह मान्यता भारत में टीके विकसित करने के लिए विश्वसनीय औद्योगिक, वैज्ञानिक और नियामक प्रक्रिया का प्रतीक है। यह स्वास्थ्य और मानवीय संगठनों जैसे यूनिसेफ, जीएवीआई और पैन-अमेरिकन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के लिए दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए रोटावैक की खरीद के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
रोटावायरस:
रोटावायरस दुनिया भर के बच्चों और नवजातों में गंभीर दस्त होने का सबसे सामान्य कारण है। रोटावायरस एक दोहरे-स्ट्रैंड वाला RNA वायरस है जो रियोवायरस परिवार का है। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखे जाने पर, वायरस की आकृति एक पहिए की तरह दिखाई देती है।
रोटावायरस विष्टा-मौखिक मार्ग, आर्थात किसी संक्रमित व्यक्ति के अपशिष्ट से दूसरे व्यक्ति के मुंह में फैलता है। यह हाथों और खिलौनों जैसी वस्तुओं पर मौजूद संदूषण के जरिए हो सकता है। वायरस बच्चों में आसानी से फैल सकता है और बच्चों से उन लोगों में पहुंच सकता है जो उन बच्चों के सबसे निकट होते हैं।
इंग्लिश
Rotovac: First Indian vaccine to be “pre-qualified” by WHO
For the first time, a vaccine conceived and developed from scratch in India has been “pre-qualified” by the UN health agency World Health Organisation (WHO)
To be “pre-qualified” means that the vaccine can be sold internationally to several countries in Africa and South America.
While several vaccines from India have been pre-qualified, this is the first vaccine that has been entirely developed locally. It is a sign that there is a credible industrial, scientific and regulatory process in place to develop vaccines in India.
Rotovac Vaccine
The Rotavac vaccine, developed by the Hyderabad-based Bharat Biotech Limited in 2017, was included in India’s national immunisation programme.
The Rotavac vaccine protects against childhood diarrhoea caused by the rotavirus and was built on strain of the virus isolated at the the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) over 30 years ago.
India included the Rotavac in its national immunisation in 2016, with about 35 million doses delivered till date. A dose costs between Rs 55-60, according to Bharat Biotech.
So far, about 9 million children in nine Indian states have been vaccinated and so far it has not shown any negative effect contrary to critics claiming that rotavirus vaccine carried a small chance of causing infants to develop a bowel disorder.
Besides Bharat Biotech, the Pune-based Serum International also has developed a rotavirus vaccine called “Rabishield” that has also been included in India’s immunisation programme.
About Rotavirus
Rotavirus is the most common cause of diarrhoeal disease among infants and young children. The virus was discovered in 1973 by Ruth Bishop
It is a genus of double-stranded RNA viruses in the family Reoviridae. There are eight species of this virus, referred to as A, B, C, D, E, F, G and H. Rotavirus A, the most common species, causes more than 90% of rotavirus infections in humans.
Rotavirus is responsible for an estimated 36% of hospitalisations for childhood diarrhoea around the world and for an estimated 200,000 deaths in low- and middle-income countries.
मराठी
रोटावॅक्स – WHO प्रमाणित भारतात बनलेली पहिली लस
इतिहासात प्रथमच, पुर्णपणे भारतात विकसित केली गेलेली लस (रोटावॅक्स) जागतिक आरोग्य संघटनेच्या (WHO) ‘पूर्व-पात्र’ चाचणीत खरी उतरली आहे.गेल्यावर्षी हैदराबादमधील भारत बायोटेक लिमिटेड कंपनीने तयार केलेल्या रोटावॅक्स लसला भारताच्या राष्ट्रीय लसीकरण कार्यक्रमात समाविष्ट करण्यात आले.
‘पूर्व-पात्र’ होणे म्हणजे त्या लसीचा आफ्रिकेत आणि दक्षिण अमेरिका खंडातल्या बर्याच देशांना पुरवठा करण्यासाठी आंतरराष्ट्रीय स्तरावर विकली जाऊ शकते.
रोटावॅक्स (Rotavac) लस रोटा विषाणूमुळे उद्भवणार्या बालपणातील अतिसारापासून संरक्षण देते.
रोटा विषाणू हा जगभरात बालपणातील अतिसारामुळे अंदाजे 36% प्रकरणांना रुग्णालयात भरती करण्यास जबाबदार आहे आणि त्यामुळे कमी व मध्यम उत्पन्न असलेल्या देशांमध्ये अंदाजे 200,000 मृत्यूंला कारणीभूत आहे.
तसे तर भारतात विकसित अनेक लसी ‘पूर्व-पात्र’ ठरल्या आहेत, परंतु हे पहिलीच वेळ आहे जी संपूर्णपणे देशातच विकसित केली गेली आहे.
रोटावॅक्स लस 30 वर्षांपूर्वी अखिल भारतीय वैद्यकीय विज्ञान संस्था येथे साठवून ठेवलेल्या विषाणूच्या नमुन्याच्या आधारावर तयार केली गेली आहे. भारतात या लसीच्या एका डोजला 55-60 रुपये या दराने खर्च येतो. वर्ष 2016 मध्ये सामील ही लस राष्ट्रीय लसीकरण कार्यक्रमामधून आतापर्यंत देशभरात 9 राज्यांमध्ये सुमारे 90 लक्ष बालकांना दिली गेली आहे.
पुणे स्थित सीरम इंटरनॅशनल कंपनीने देखील ‘रॅबीशील्ड’ नावाची रोटा विषाणू-रोधी लस विकसित केली आहे, ज्याला भारताच्या लसीकरण कार्यक्रमामध्ये समाविष्ट केले आहे.
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