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    Saturday, December 9, 2017

    राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण अहवाल (2014-17) जाहीर

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     Hindi. 

    राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17) जारी:
    केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री जे.पी नड्डा ने 08 दिसंबर 2017 को राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17) जारी की। उन्‍होंने घोषणा की कि भारत अब ‘रोग पैदा करने वाले ट्रेकोमा’ से मुक्‍त हो गया है।
    प्रमुख तथ्य:
    सर्वेक्षण के निष्‍कर्षों से संकेत मिलता है कि सर्वेक्षण के सभी जिलों में बच्‍चों में ट्रेकोमा संक्रमण समाप्‍त हो चुका है और इसकी मौजूदगी केवल 0.7 प्रतिशत है। यह डब्‍ल्‍यूएचओ द्वारा परिभाषित ट्रेकोमा की समाप्ति के मानक से बहुत कम है।
    ट्रेकोमा को उस स्थिति में समाप्‍त माना जाता है, यदि उसके सक्रिय संक्रमण की मौजूदगी 10 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों में 5 प्रतिशत से कम हो।
    केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि हमने डब्‍ल्‍यूएचओ के जीईटी 2020 कार्यक्रम के अंतर्गत निर्दिष्‍ट लक्ष्‍य के अनुसार ट्रेकोमा का सफाया करने का लक्ष्‍य हासिल कर लिया है।
    सरकार द्वारा किया गया सघन प्रयास:
    यह कई दशकों के प्रयासों के बाद संभव हुआ है, जिनमें एंटीबायोटिक आईड्रॉप का प्रावधान, निजी सफाई, सुरक्षित जल की उपलब्‍धता, पर्यावरण संबंधी बेहतर स्‍वच्‍छता, क्रोनिक ट्रेकोमा के लिए सर्जिकल सुविधाओं की उपलब्‍धता और देश में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सामान्‍य सुधार शामिल हैं।
    सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने पर नड्डा ने कहा कि हमारा लक्ष्‍य देश से ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस को समाप्‍त करना है। ऐसे राज्‍य जो अभी भी सक्रिय ट्रेकोमा के मामलों की जानकारी दे रहे हैं, उन्‍हें ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस के मरीजों के समुदाय आधारित निष्‍कर्षों को प्राप्‍त करने के लिए एक रणनीति विक‍सित करने की जरूरत है।
    ऐसे मामलों की स्‍थानीय अस्‍पतालों में मुफ्त एंट्रोपियन सर्जरी/इलाज की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। ऐसे पहचाने गये प्रत्‍येक मामले को सावधानी से दर्ज किया जाना चाहिए और इसके प्रबंधन की स्थिति का डब्‍ल्‍यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार रखरखाव किया जाए।
    साथ ही भारत को ट्रेकोमा मुक्‍त प्रमाणित करने के लिए देश भर में इस बीमारी की पर्याप्‍त निगरानी की जानी चाहिए। डब्‍ल्‍यूएचओ के दिशा निर्देशों के अनुसार ट्रेकोमा निगरानी के संकेतों पर मासिक आंकड़े नियमित रूप से एनपीसीबी को भेजे जाएं।
    ट्रेकोमा क्या है?
    ट्रेकोमा (रोहे-कुक्‍करे) आंखों का दीर्घकालिक संक्रमण रोग है और इससे दुनिया भर में अंधेपन के मामले सामने आते हैं। यह खराब पर्यावरण और निजी स्‍वच्‍छता के अभाव तथा पर्याप्‍त पानी नहीं मिलने के कारण होने वाली बीमारी है। यह आंखों की पलकों के नीचे झिल्‍ली को प्रभावित करता है।
    बार-बार संक्रमण होने पर आंखों की पलकों पर घाव होने लगते हैं, इससे कोर्निया को नुकसान पहुंचता है और अंधापन होने का खतरा पैदा हो जाता है। इससे गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब, हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश और निकोबार द्वीप के कुछ स्‍थानों के लोग प्रभावित पाए गए हैं। ट्रेकोमा संक्रमण 1950 में भारत में अंधेपन का सबसे महत्‍वपूर्ण कारण था और गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब और उत्‍तर प्रदेश में 50 प्रतिशत आबादी इससे प्रभावित थी।
    राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा प्रचार सर्वेक्षण और ट्रेकोमा रैपिड असेसमेंट सर्वेक्षण डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑपथेलमिक साइंस, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान नई दिल्‍ली ने 2014 से 2017 तक नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्‍लाइंडनेस एंड विजुअल इम्‍पेयरमेंट के सहयोग से किया। सर्वेक्षण 23 राज्‍यों और संघ शासित प्रदेशों के 27 सबसे अधिक जोखिम वाले जिलों में किया गया।

     English 


    National Trachoma Survey Report (2014-17) released
    Trachoma:
    Trachoma is an infectious disease caused by bacterium Chlamydia trachomatis. The infection causes a roughening of the inner surface of the eyelids. This roughening can lead to pain in the eyes, breakdown of the outer surface or cornea of the eyes, and eventual blindness.
    India has become free from Trachoma—a chronic infective disease of the eye and a leading cause of infective blindness—with an overall prevalence found to be only 0.7% in the National Trachoma Survey Report.
    The disease is found to be affecting the population in certain pockets of north Indian states like Gujarat, Rajasthan, Punjab, Haryana, Uttar Pradesh and the Nicobar Islands.
    The National Trachoma Prevalence Surveys and the Trachoma Rapid Assessment Surveys were conducted by the Dr. Rajendra Prasad Centre for Ophthalmic Sciences, All India Institute of Medical Sciences (AIIMS), New Delhi in collaboration with National Programme for Control of Blindness & Visual Impairment, Union ministry of health and family welfare from 2014 to 2017. This was conducted in 27 high-risk districts across 23 states and union territories.
    Under the survey, 19,662 children in the one to nine year age group were examined by trained ophthalmologists. As many as 44,135 persons were examined in the 15 years and above age group.

    Earlier:
    • Trachoma infection of the eyes was the most important cause of blindness in India in 1950s and over 50% of the population was affected in Gujarat, Rajasthan, Punjab, and Uttar Pradesh. It was the most important cause of corneal blindness in India, affecting young children.
    Trachoma is no longer a public health problem in India. We have met the goal of trachoma elimination as specified by the WHO under its GET2020 programme.

     Marathi 

    राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण अहवाल (2014-17) जाहीर

    केंद्रीय आरोग्य आणि कुटुंब कल्‍याण मंत्री जे. पी. नड्डा यांनी ‘राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण अहवाल (2014-17)’ जाहीर केला आहे.
    वर्तमान परिस्थितीत भारत ‘रोगाला जन्म देणार्‍या ट्रेकोमा’ पासून मुक्‍त झाले आहे. ट्रेकोमाच्या सक्रिय संक्रमणाची उपस्थिती 10 वर्षाहून कमी वयाच्या मुलांमध्ये 5% हून कमी असेल तेव्हा ते संपुष्टात आल्याचे मानले जाते. सर्वेक्षणानुसार, सर्वेक्षणाच्या सर्व जिल्ह्यांमध्ये लहान मुलांमधील ट्रेकोमा संक्रमण संपुष्टात आले आहे आणि त्याची उपस्थिती केवळ 0.7% एवढी आहे, जी की स्पष्ट केलेल्या ट्रेकोमाच्या समाप्तीच्या मानकापेक्षा खूप कमी आहे. या यशामुळे WHO च्या GET 2020 कार्यक्रमांतर्गत निर्दिष्‍ट लक्ष्‍य अनुसार ट्रेकोमाचे निर्मूलन करण्याचे लक्ष्‍य साधले गेले आहे.
    सद्यस्थितीत राज्यांना अजूनही सक्रिय ट्रेकोमासंबंधी बाबींवर माहिती दिली जात आहे आणि त्यांना ‘ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस’ च्या रूग्णांच्या समुदाय आधारित निष्‍कर्षांना प्राप्‍त करण्यासाठी एक धोरण योजना विक‍सित करण्याची आवश्यकता असल्याचे स्पष्ट करण्यात आले आहे.
    ट्रेकोमा बाबत
    ट्रेकोमा (खुपर्‍या) हा डोळ्यांचा एक दीर्घकालिक संक्रमण रोग आहे आणि यामुळे जगभरात आंधळेपणाची प्रकरणे समोर दिसून येत आहेत. हा रोग खराब पर्यावरण आणि वैयक्तिक स्‍वच्‍छतेच्या अभावामुळे तसेच पुरेशे पाणी न मिळाल्यामुळे होतो. या रोगामुळे डोळ्याच्या पापण्याच्या खाली पडदा प्रभावित होतो. वारंवार होणार्‍या संक्रमणामुळे पापणीवर जखम तयार होते, त्यामुळे कोर्नियाला नुकसान पोहचते आणि अंधपणा येण्याचा धोका निर्माण होतो. या आजारामुळे गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब, हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश आणि निकोबार बेट या राज्यांमधील काही ठिकाणांचे लोक प्रभावित झाल्याचे पहिले गेले होते. ट्रेकोमा संक्रमण 1950 साली भारतामधील अंधपणाचे सर्वात प्रमुख कारण ठरले होते आणि गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब आणि उत्‍तरप्रदेशामध्ये 50% लोकसंख्या यामुळे प्रभावित होती.
    कित्येक दशकांपासून केल्या जाणार्‍या प्रयत्नांमध्ये अॅंटीबायोटिक आयड्रॉपची तरतूद, वैयक्तिक स्वच्छता, सुरक्षित पेयजलाची उपलब्‍धता, पर्यावरणासंबंधी उत्तम स्‍वच्‍छता, क्रोनिक ट्रेकोमासाठी सर्जिकल सुविधांची उपलब्‍धता आणि देशामधील सामाजिक-आर्थिक स्थितीत सामान्‍य सुधारणांचा समावेश आहे. या आजारावर स्थानिक रुग्णालयांमध्ये मोफत अँट्रोपियन शस्त्रक्रिया/उपचाराची व्‍यवस्‍था करून दिली जात आहे.
    राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा प्रचार सर्वेक्षण आणि ट्रेकोमा त्वरित मूल्यांकन सर्वेक्षण (TRA) डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑपथेलमिक सायन्स, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍था नवी दिल्‍ली यांनी वर्ष 2014 ते वर्ष 2017 पर्यंत नॅशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्‍लाइंडनेस अँड व्हिजुअल इम्‍पेयरमेंट या संस्थेच्या सहकार्याने केले. सर्वेक्षण 23 राज्‍य आणि केंद्रशासित प्रदेशांमधील सर्वाधिक जोखिम असलेल्या 27 जिल्ह्यांमध्ये केले गेले.

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