करेंट अफेयर्स १ फरवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
Union Budget Series 5: Overview of Budget since Independence
In the Union Budget Series 5 we will be tracking the Union Budget since Independence. We have divided the Union budget in three parts Pre Liberalization, post liberalization and Budget since 2014(NDA Regime).
Pre liberalization:
The pre liberalization covers the budget since independence till 1990. A year after the independence in 1948 first budget was presented. The first budget of India covered just 7-1/2 months, from August 15, 1947, to March 31, 1948. The main highlight of the first budget was the decision to pass the budget. Partition and the consequent destabilisation were the core factors that determined the budget provisions. The three major expenses in the budget were on food grain production, defence services and civil expenditure. The targeted budget revenue was Rs 171 crore (approx). Of this, Rs 15.9 crore was expected from the posts and telegraph department.
1949 to 1950: The after-effects of partition continued to be major deciding factor of this budget as well. The key highlight of the second budget was controlling inflationary trends as the purchasing power increased in certain sections of society. The focus areas of the budget were: reintroducing food control, increasing supply of food grains at fair price and limiting food imports from overseas. Proposals to take dollar loans from IBRD/IMF were incorporated to sanction development projects. The revenue receipts were estimated at Rs 338.32 crore against the budget estimate of Rs 255.24 crore, an increase of Rs 83.08 crores.
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Post liberalization: The second phase of the budget covers the budget from 1991 till 2013. The year 1991-92 marked the beginning of economic liberalisation. Import-export policy was revised and import duties were slashed to expose Indian industry to competition from abroad.
1991 to 2000: The government began rationalisation of duty structures by reducing the peak customs duty from 220 per cent to 150 per cent. This was done because the balance of payments was precarious. The government introduced service tax in the 1994 budget and also placed bets on growth through rapid technological development. The 1997 budget made tax rates moderate for individuals as well as companies. It allowed companies to adjust MAT paid in earlier years against tax liability of subsequent years. Budget 1997 aimed to widen the tax base. India had a peak income tax rate in the late 1960s and early 1970s of 97.5 per cent. Personal income tax collections increased from 1997-98—from Rs 18,700 crore to Rs 100,100 crore during April 2010-January 2011. VDIS garnered about Rs 10,000 crore.
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The Third Phase is Union Budget since 2014, when Modi govt. came into the power.
2014: BJP government's maiden budget was disappointing for farmers with Arun Jaitley announcing nothing much in their kitty to address increasing farm stress and resolve agrarian crisis in the country. While several announcements were made for the health sector, all were focussed on medical education and building institutions. Preventive or primary healthcare found no mention. The government also proposed to set up an Integrated Ganga Conservation Mission— Namami Gange—and allocated Rs 2,037 crore towards the mission.
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उदारीकरण पूर्वीचा काळ: हा काळ स्वातंत्र्यापासून 1990 सालापर्यंतचा काळ समजला गेला आहे. स्वातंत्र्यानंतर 1948 साली पहिलं अर्थसंकल्प सादर करण्यात आला. स्वातंत्र्योत्तर काळातला भारताचा पहिला अर्थसंकल्प हा 15 ऑगस्ट 1947 पासून ते 31 मार्च 1948 पर्यंत अश्या केवळ साडे सात महिन्यांसाठी तयार केला गेला होता.
विभाजनांनंतर आलेल्या अडचणीवर मात करण्याच्या दृष्टीने आणि आर्थिक, सामाजिक विकासाच्या दृष्टीने हा काळ क्रांतिकारी ठरला. प्राथमिक स्वरूपाची गरज म्हणजे अन्नधान्य सुरक्षा आणि उपलब्धता वाढविण्याच्या दृष्टीने अधिकाधिक प्रयत्न केले गेले होते.
सरकारचा महसूल वाढविण्यासाठी अनेक करांना या काळात प्रस्तावित करण्यात आले तसेच सामाजिक सुरक्षेच्या दृष्टीने अनेक क्रांतिकारी पावले उचलली गेलीत.
जागतिक मागणीत घट असतानाही वेगाने विकास पावले टाकत असतानाही देशाच्या स्वच्छतेवर अधिकाधिक भर देण्यात आला आहे. अनेक आरोग्यविषयक पुढाकार घेतले गेलेत.
हिंदी
केंद्रीय बजट सीरीज 5: स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से बजट का अवलोकन:
केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी, 2018 को वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए सामान्य बजट पेश करेंगे। इसी प्रक्रिया में, हम तीन चरणों में आजादी के बाद से बजट का अवलोकन प्रस्तुत कर रहे हैं, अर्थात्, उदारीकरण से पूर्व, उदारीकरण के बाद और उत्तर-मोदी शासन।
उदारीकरण से पूर्व का काल:
1948-1949: भारत के पहले बजट में 15 अगस्त, 1947 से 31 मार्च, 1948 तक सिर्फ साढ़े सात महीने ही कवर किये गए थे। पहले बजट का मुख्य आकर्षण बजट को पारित करने का निर्णय था। विभाजन और इसके परिणामस्वरूप आयी अस्थिरता बजट प्रावधानों को निर्धारित करने का मुख्य कारक थी। बजट में तीन बड़े खर्च अनाज उत्पादन, रक्षा सेवायें और नागरिक खर्च थे। खाद्य उत्पादन कम था, और इसलिए अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी।
1949 से 1950: विभाजन के बाद के प्रभाव इस बजट के भी प्रमुख निर्णायक कारक बने रहे। दूसरे बजट का मुख्य आकर्षण मुद्रास्फीति के रुझान को नियंत्रित कर रहा था क्योंकि समाज के कुछ हिस्सों में क्रय शक्ति में वृद्धि हुई थी। बजट के फोकस वाले क्षेत्र थे: खाद्य नियंत्रण पुनः शुरू करना, उचित मूल्य पर अनाज की आपूर्ति में बढ़ोतरी और विदेशों से खाद्य आयात को सीमित करना। आईबीआरडी / आईएमएफ से डॉलर के कर्ज लेने के प्रस्तावों को विकास परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए शामिल किया गया था।
1991 से 2000: वर्ष 1991-92 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई थी। 24 जुलाई 1991 को भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने यह बजट पेश किया था। बजट के फैसले: आयात-निर्यात पॉलिसी में काफी सुधार किया गया। आयात के लिए लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान बनाया गया। अधिक से अधिक निर्यात करने और आयात को जरूरत के हिसाब से रखने पर योजना बनी, ताकि भारत को विदेशों से कंपीटिशन मिले। सीमा शुल्क 220 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया गया, जो एक बड़ा बदलाव था। सरकार ने 1994 के बजट में सेवा कर पेश किया। 1997 के बजट में व्यक्तियों और कंपनियों के लिए टैक्स की दर सामान्य की गई थी। कंपनियों को पहले से भुगते गए एम.ए.टी को आने वाले सालों में कर देनदारियों में समायोजित करने की छूट दे दी गई। वोलेंटरी डिस्कलोजर ऑफ इन्कम स्कीम (VDIS) स्कीम लांच की गई ताकि काले धन को बाहर लाया जा सके। भारत पर असर: लोगों ने खुद से ही अपनी आय का खुलासा करना शुरू कर दिया। 1997-98 के दौरान पर्सनल इन्कम टैक्स से सरकार को 18 हजार सात सौ करोड़ रुपए मिले, जबकि अप्रैल 2010 से जनवरी 2011 के बीच यह आय एक लाख करोड़ से ऊपर पहुंच गई। लोगों के हाथों में पैसा आने से बाजार में मांग बढ़ी, जिससे औद्योगिक विकास को बल मिला।
2000 से 2011: सॉफ्टवेयर निर्यात क्षेत्र को कर अवकाश की शुरूआत के बाद भारतीय आईटी उद्योग में असाधारण विकास हुआ। स्थानांतरण मूल्य निर्धारण नियमों को भी 2001-2002 में पेश किया गया था। भारत में कर आधार के क्षरण की रोकथाम में विनियमन ने बड़ी भूमिका निभाई। 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुमानित रूप से 8.6% पहुँच गया था। वित्त वर्ष 2010-11 के बजट में कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य था लेकिन जैविक खाद और टिकाऊ खेती के लिए इसमें कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया। आने वाले महीनों में मौद्रिक नीतिगत उपायों से मुद्रास्फीति को कम किये जाने की उम्मीद थी।
2014: भाजपा सरकार का पहला बजट किसानों के लिए निराशाजनक था। हालांकि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कई घोषणाएं की गईं, लेकिन सभी चिकित्सा शिक्षा और निर्माण संस्थानों पर ही केंद्रित थीं। निवारक या प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में कोई उल्लेख नहीं मिला। फरीदाबाद और बेंगलुरु में बायोटेक क्लस्टर बनाने का प्रस्ताव किया गया। 'नमामि गंगे' परियोजना के लिए 2037 करोड़ रुपए दिए गए। अल्ट्रा मेगा और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट शुरू किये जाने की घोषणा की गयी। भारतीय वित्तीय संहिता का प्रस्ताव लाया गया। वन रैंक वन पेंशन के लिए 1000 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया। सर्व शिक्षा अभियान के लिए 28635 करोड़ तथा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लिए 4966 करोड़ रूपए की राशि का आवंटन किया गया।
2015: एनडीए सरकार के पहले पूर्ण-वर्ष के बजट ने सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के भविष्य के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल अनुत्तरित छोड़ दिए। विशेषज्ञों के अनुसार, केंद्रीय बजट 2015-16 ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निवेश को प्राथमिकता देने में विफल रहा था। यह 2020 तक 175 जीडब्ल्यू अक्षय ऊर्जा के निर्माण के सरकार के लक्ष्य से विपरीत था। स्वच्छ पर्यावरण पहलों के लिए वित्त पोषण के लिए कोयला आदि पर स्वच्छ ऊर्जा उप कर को 100 रुपए प्रति मीट्रिक टन से बढ़ाकर 200 रुपए प्रति मीट्रिक टन किया गया। स्वच्छ भारत कोष और स्वच्छ गंगा निधि में सीएसआर में अंशदानों के लिए 100 प्रतिशत की कर छूट दी गयी। 20,000 करोड़ रुपए के वार्षिक प्रवाह से राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना निधि की स्थापना किये जाने का प्रस्ताव। सोना खरीदने के लिए विकल्प के तौर पर सरकारी स्वर्ण बाण्ड स्कीम बनाना। ल्पसंख्यक युवाओं की शिक्षा के लिए नई मंजिल योजना लॉन्च की गयी। 2022 तक गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य बनाया गया। सरकार की तीन बड़ी उपलब्धियां- 1. जन-धन योजना 2. पारदर्शी कोल ब्लाक नीलामी 3. स्वच्छ भारत अभियान।
केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी, 2018 को वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए सामान्य बजट पेश करेंगे। इसी प्रक्रिया में, हम तीन चरणों में आजादी के बाद से बजट का अवलोकन प्रस्तुत कर रहे हैं, अर्थात्, उदारीकरण से पूर्व, उदारीकरण के बाद और उत्तर-मोदी शासन।
उदारीकरण से पूर्व का काल:
1948-1949: भारत के पहले बजट में 15 अगस्त, 1947 से 31 मार्च, 1948 तक सिर्फ साढ़े सात महीने ही कवर किये गए थे। पहले बजट का मुख्य आकर्षण बजट को पारित करने का निर्णय था। विभाजन और इसके परिणामस्वरूप आयी अस्थिरता बजट प्रावधानों को निर्धारित करने का मुख्य कारक थी। बजट में तीन बड़े खर्च अनाज उत्पादन, रक्षा सेवायें और नागरिक खर्च थे। खाद्य उत्पादन कम था, और इसलिए अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी।
1949 से 1950: विभाजन के बाद के प्रभाव इस बजट के भी प्रमुख निर्णायक कारक बने रहे। दूसरे बजट का मुख्य आकर्षण मुद्रास्फीति के रुझान को नियंत्रित कर रहा था क्योंकि समाज के कुछ हिस्सों में क्रय शक्ति में वृद्धि हुई थी। बजट के फोकस वाले क्षेत्र थे: खाद्य नियंत्रण पुनः शुरू करना, उचित मूल्य पर अनाज की आपूर्ति में बढ़ोतरी और विदेशों से खाद्य आयात को सीमित करना। आईबीआरडी / आईएमएफ से डॉलर के कर्ज लेने के प्रस्तावों को विकास परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए शामिल किया गया था।
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उदारीकरण के बाद:1991 से 2000: वर्ष 1991-92 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई थी। 24 जुलाई 1991 को भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने यह बजट पेश किया था। बजट के फैसले: आयात-निर्यात पॉलिसी में काफी सुधार किया गया। आयात के लिए लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान बनाया गया। अधिक से अधिक निर्यात करने और आयात को जरूरत के हिसाब से रखने पर योजना बनी, ताकि भारत को विदेशों से कंपीटिशन मिले। सीमा शुल्क 220 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया गया, जो एक बड़ा बदलाव था। सरकार ने 1994 के बजट में सेवा कर पेश किया। 1997 के बजट में व्यक्तियों और कंपनियों के लिए टैक्स की दर सामान्य की गई थी। कंपनियों को पहले से भुगते गए एम.ए.टी को आने वाले सालों में कर देनदारियों में समायोजित करने की छूट दे दी गई। वोलेंटरी डिस्कलोजर ऑफ इन्कम स्कीम (VDIS) स्कीम लांच की गई ताकि काले धन को बाहर लाया जा सके। भारत पर असर: लोगों ने खुद से ही अपनी आय का खुलासा करना शुरू कर दिया। 1997-98 के दौरान पर्सनल इन्कम टैक्स से सरकार को 18 हजार सात सौ करोड़ रुपए मिले, जबकि अप्रैल 2010 से जनवरी 2011 के बीच यह आय एक लाख करोड़ से ऊपर पहुंच गई। लोगों के हाथों में पैसा आने से बाजार में मांग बढ़ी, जिससे औद्योगिक विकास को बल मिला।
2000 से 2011: सॉफ्टवेयर निर्यात क्षेत्र को कर अवकाश की शुरूआत के बाद भारतीय आईटी उद्योग में असाधारण विकास हुआ। स्थानांतरण मूल्य निर्धारण नियमों को भी 2001-2002 में पेश किया गया था। भारत में कर आधार के क्षरण की रोकथाम में विनियमन ने बड़ी भूमिका निभाई। 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुमानित रूप से 8.6% पहुँच गया था। वित्त वर्ष 2010-11 के बजट में कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य था लेकिन जैविक खाद और टिकाऊ खेती के लिए इसमें कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया। आने वाले महीनों में मौद्रिक नीतिगत उपायों से मुद्रास्फीति को कम किये जाने की उम्मीद थी।
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मोदी शासन के दौरान:2014: भाजपा सरकार का पहला बजट किसानों के लिए निराशाजनक था। हालांकि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कई घोषणाएं की गईं, लेकिन सभी चिकित्सा शिक्षा और निर्माण संस्थानों पर ही केंद्रित थीं। निवारक या प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में कोई उल्लेख नहीं मिला। फरीदाबाद और बेंगलुरु में बायोटेक क्लस्टर बनाने का प्रस्ताव किया गया। 'नमामि गंगे' परियोजना के लिए 2037 करोड़ रुपए दिए गए। अल्ट्रा मेगा और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट शुरू किये जाने की घोषणा की गयी। भारतीय वित्तीय संहिता का प्रस्ताव लाया गया। वन रैंक वन पेंशन के लिए 1000 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया। सर्व शिक्षा अभियान के लिए 28635 करोड़ तथा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लिए 4966 करोड़ रूपए की राशि का आवंटन किया गया।
2015: एनडीए सरकार के पहले पूर्ण-वर्ष के बजट ने सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के भविष्य के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल अनुत्तरित छोड़ दिए। विशेषज्ञों के अनुसार, केंद्रीय बजट 2015-16 ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निवेश को प्राथमिकता देने में विफल रहा था। यह 2020 तक 175 जीडब्ल्यू अक्षय ऊर्जा के निर्माण के सरकार के लक्ष्य से विपरीत था। स्वच्छ पर्यावरण पहलों के लिए वित्त पोषण के लिए कोयला आदि पर स्वच्छ ऊर्जा उप कर को 100 रुपए प्रति मीट्रिक टन से बढ़ाकर 200 रुपए प्रति मीट्रिक टन किया गया। स्वच्छ भारत कोष और स्वच्छ गंगा निधि में सीएसआर में अंशदानों के लिए 100 प्रतिशत की कर छूट दी गयी। 20,000 करोड़ रुपए के वार्षिक प्रवाह से राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना निधि की स्थापना किये जाने का प्रस्ताव। सोना खरीदने के लिए विकल्प के तौर पर सरकारी स्वर्ण बाण्ड स्कीम बनाना। ल्पसंख्यक युवाओं की शिक्षा के लिए नई मंजिल योजना लॉन्च की गयी। 2022 तक गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य बनाया गया। सरकार की तीन बड़ी उपलब्धियां- 1. जन-धन योजना 2. पारदर्शी कोल ब्लाक नीलामी 3. स्वच्छ भारत अभियान।
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Union Budget Series 5: Overview of Budget since Independence
In the Union Budget Series 5 we will be tracking the Union Budget since Independence. We have divided the Union budget in three parts Pre Liberalization, post liberalization and Budget since 2014(NDA Regime).
Pre liberalization:
The pre liberalization covers the budget since independence till 1990. A year after the independence in 1948 first budget was presented. The first budget of India covered just 7-1/2 months, from August 15, 1947, to March 31, 1948. The main highlight of the first budget was the decision to pass the budget. Partition and the consequent destabilisation were the core factors that determined the budget provisions. The three major expenses in the budget were on food grain production, defence services and civil expenditure. The targeted budget revenue was Rs 171 crore (approx). Of this, Rs 15.9 crore was expected from the posts and telegraph department.
1949 to 1950: The after-effects of partition continued to be major deciding factor of this budget as well. The key highlight of the second budget was controlling inflationary trends as the purchasing power increased in certain sections of society. The focus areas of the budget were: reintroducing food control, increasing supply of food grains at fair price and limiting food imports from overseas. Proposals to take dollar loans from IBRD/IMF were incorporated to sanction development projects. The revenue receipts were estimated at Rs 338.32 crore against the budget estimate of Rs 255.24 crore, an increase of Rs 83.08 crores.
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Post liberalization: The second phase of the budget covers the budget from 1991 till 2013. The year 1991-92 marked the beginning of economic liberalisation. Import-export policy was revised and import duties were slashed to expose Indian industry to competition from abroad.
1991 to 2000: The government began rationalisation of duty structures by reducing the peak customs duty from 220 per cent to 150 per cent. This was done because the balance of payments was precarious. The government introduced service tax in the 1994 budget and also placed bets on growth through rapid technological development. The 1997 budget made tax rates moderate for individuals as well as companies. It allowed companies to adjust MAT paid in earlier years against tax liability of subsequent years. Budget 1997 aimed to widen the tax base. India had a peak income tax rate in the late 1960s and early 1970s of 97.5 per cent. Personal income tax collections increased from 1997-98—from Rs 18,700 crore to Rs 100,100 crore during April 2010-January 2011. VDIS garnered about Rs 10,000 crore.
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The Third Phase is Union Budget since 2014, when Modi govt. came into the power.
2014: BJP government's maiden budget was disappointing for farmers with Arun Jaitley announcing nothing much in their kitty to address increasing farm stress and resolve agrarian crisis in the country. While several announcements were made for the health sector, all were focussed on medical education and building institutions. Preventive or primary healthcare found no mention. The government also proposed to set up an Integrated Ganga Conservation Mission— Namami Gange—and allocated Rs 2,037 crore towards the mission.
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मराठी
केंद्रीय अर्थसंकल्प शृंखला भाग-5: स्वातंत्र्यापासूनचा अर्थसंकल्पासंबंधी आढावा
या भागात आपण स्वातंत्र्योत्तर काळामध्ये सादर केलेल्या अर्थसंकल्पाचा एक संक्षिप्त आढावा घेणार आहेत. या कालावधीला आपण उदारीकरण पूर्वीचा काळ, उदारीकरणानंतरचा काळ आणि 2014 पासूनचे अर्थसंकल्प (मोदी सरकार), या तीन कालखंडात विभागले गेले आहेत.उदारीकरण पूर्वीचा काळ: हा काळ स्वातंत्र्यापासून 1990 सालापर्यंतचा काळ समजला गेला आहे. स्वातंत्र्यानंतर 1948 साली पहिलं अर्थसंकल्प सादर करण्यात आला. स्वातंत्र्योत्तर काळातला भारताचा पहिला अर्थसंकल्प हा 15 ऑगस्ट 1947 पासून ते 31 मार्च 1948 पर्यंत अश्या केवळ साडे सात महिन्यांसाठी तयार केला गेला होता.
विभाजनांनंतर आलेल्या अडचणीवर मात करण्याच्या दृष्टीने आणि आर्थिक, सामाजिक विकासाच्या दृष्टीने हा काळ क्रांतिकारी ठरला. प्राथमिक स्वरूपाची गरज म्हणजे अन्नधान्य सुरक्षा आणि उपलब्धता वाढविण्याच्या दृष्टीने अधिकाधिक प्रयत्न केले गेले होते.
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उदारीकरणानंतरचा काळ: या काळात औद्यगिक क्रांतीच्या दृष्टीने अनेक मोठी पावले उचलेली गेलीत. आर्थिक सुरक्षा निश्चित करण्याच्या दृष्टीने तसेच महसूलाची संरचना बळकट करण्यासाठी हा काळ महत्त्वाचा ठरला. आर्थिक विषयक अनेक घटकांच्या महत्त्वाच्या सुधारणांसाठी हा काळ निश्चितच यशस्वी ठरल्याचे पुरावे वेळोवेळी दिसून आले.सरकारचा महसूल वाढविण्यासाठी अनेक करांना या काळात प्रस्तावित करण्यात आले तसेच सामाजिक सुरक्षेच्या दृष्टीने अनेक क्रांतिकारी पावले उचलली गेलीत.
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2014 नंतरचा काळ: हा काळ खर्या अर्थाने एक परिपूर्ण सामाजिक-औद्योगिक विकास, पारदर्शक वृत्ती आणि सुशासनाच्या दृष्टीने एक ऐतिहासिक काळ ठरलेला आणि ठरत आहे. सरकारच्या विविध उपाययोजना, योजना, वित्तीय धोरणे तसेच नागरिकांच्या सर्वसामावशकतेच्या प्रयत्नाच्या दृष्टीने योग्य पावले उचलली गेलीत. भविष्यात याचे परिणाम नक्कीच दिसून येतील.जागतिक मागणीत घट असतानाही वेगाने विकास पावले टाकत असतानाही देशाच्या स्वच्छतेवर अधिकाधिक भर देण्यात आला आहे. अनेक आरोग्यविषयक पुढाकार घेतले गेलेत.
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