करेंट अफेयर्स २४ जनवरी २०१८ हिंदी/ इंग्लिश/मराठी
IIT Mumbai researchers develop an electronic “nose”
The Electrical Engineering department of Indian Institute of Technology, Bombay, research is on to develop an “electronic nose”. This research will eliminate the need of dogs used to sniff out the presence of explosives and drugs by the police.
Smelling process:
या शोधाची पोलीसांना स्फोटक द्रव्ये आणि अमली पदार्थांचा सुगावा घेण्यास मदत होईल.
गंध घेण्याची प्रक्रिया
गंध घेण्याच्या प्रक्रियेसंदर्भात दोन सिद्धांत मांडले गेले आहेत - आकार सिद्धांत आणि कंपन सिद्धांत.
आकार सिद्धांताप्रमाणे, एखाद्या विशिष्ट रेणूचा आकार "मुख्य" मानले जाते आणि जे नाकामध्ये गेल्यास संवेदकामुळे गंध ओळखता येतो. दुसरीकडे कंपन सिद्धांताप्रमाणे, नाक फक्त आकाराचेच आकलन करत नसून तर गंध असलेल्या रेणूच्या कंपन ऊर्जेला सुद्धा ओळखतो.
मात्र केवळ कंपन सिद्धांताच्या आधारे IIT च्या संशोधकांनी इनइलॅस्टिक क्वांटम मेकॅनिक्स टनेलिंग तंत्राला वापरून एक कृत्रिम "नाक" तयार करून दाखवले आहे, जे गंध असलेल्या रेणूंच्या कंपन ऊर्जेमधील फरक ओळखू शकते.
इलेक्ट्रॉनिक नाकमध्ये प्रत्यक्षात एक-आयामी "रेझोनंट टनेलिंग डायोड" आहे, जे एक क्वांटम उपकरण आहे, जे केवळ विद्युत ऊर्जेच्या विशेष डिस्क्रीट वॅल्यूमुळे सक्रिय होते.
हिंदी
आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने एक इलेक्ट्रॉनिक"नाक" विकसित की:
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मुंबई का इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग एक "इलेक्ट्रॉनिक नाक" को विकसित करने के लिए अनुसंधान कर रहा है। यह शोध पुलिस द्वारा विस्फोटक और नशीली दवाओं की उपस्थिति का पता लगाने के लिए कुत्तों की सूंघने की शक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता को समाप्त करेगा।
स्मेलिंग प्रोसेस (सूंघने की प्रक्रिया):
विज्ञान में दो प्रकार के प्रतिस्पर्धी सिद्धांत हैं जोकि ऑलफैक्शन या सूंघने की शक्ति को समझाने का प्रयास करते हैं, यह हैं - आकृति सिद्धांत (शेप थ्योरी) और कंपन सिद्धांत (वाइब्रेशन थ्योरी).
आकृति सिद्धांत के अनुसार, एक अणु की विशेष प्रकार की आकृति "चाबी" के रूप में कार्य करती है और जोकि नाक के "ताले" में फिट हो जाती है, इस प्रक्रिया में नाक गंध को समझने के लिए यह उत्तेजित हो जाती है।
कंपन सिद्धांत, दूसरी तरफ, यह व्याख्या करता है कि नाक अणु की आकृति से प्रभावित नहीं होती है जबकि एक गन्धपूर्ण अणु की कंपन ऊर्जा से प्रभावित होती है। हालांकि, शायद वास्तविक तंत्र में इन दोनों प्रक्रियाओं का एक संयोजन है।
आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने यह दिखाया है कि, इनइलास्टिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग का उपयोग करके, कृत्रिम "नाक" का निर्माण संभव है। यह कृत्रिम "नाक" कंपन ऊर्जा को महसूस करके विभिन्न गंध वाले अणुओं में पहचान करती है।
इलेक्ट्रॉनिक नोज:
आईआईटी मुंबई के शोधकर्ता जिस "नाक" को विकसित कर रहे हैं वह एक वन-डायमेंशनल "रेजोनेंट टनलिंग डायोड" है। यह एक क्वांटम डिवाइस है जो केवल तभी कार्य करता है जब यह विद्युत ऊर्जा के विशेष डिस्क्रीट वैल्यूज के कारण उत्साहित हो।
मूल रूप से यह एक क्वांटम तार का उपांतरण है - एक लीनियर ऐरे जिसमें इलेक्ट्रॉन केवल वन डाइमेंशन में जा सकते हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मुंबई का इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग एक "इलेक्ट्रॉनिक नाक" को विकसित करने के लिए अनुसंधान कर रहा है। यह शोध पुलिस द्वारा विस्फोटक और नशीली दवाओं की उपस्थिति का पता लगाने के लिए कुत्तों की सूंघने की शक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता को समाप्त करेगा।
स्मेलिंग प्रोसेस (सूंघने की प्रक्रिया):
विज्ञान में दो प्रकार के प्रतिस्पर्धी सिद्धांत हैं जोकि ऑलफैक्शन या सूंघने की शक्ति को समझाने का प्रयास करते हैं, यह हैं - आकृति सिद्धांत (शेप थ्योरी) और कंपन सिद्धांत (वाइब्रेशन थ्योरी).
आकृति सिद्धांत के अनुसार, एक अणु की विशेष प्रकार की आकृति "चाबी" के रूप में कार्य करती है और जोकि नाक के "ताले" में फिट हो जाती है, इस प्रक्रिया में नाक गंध को समझने के लिए यह उत्तेजित हो जाती है।
कंपन सिद्धांत, दूसरी तरफ, यह व्याख्या करता है कि नाक अणु की आकृति से प्रभावित नहीं होती है जबकि एक गन्धपूर्ण अणु की कंपन ऊर्जा से प्रभावित होती है। हालांकि, शायद वास्तविक तंत्र में इन दोनों प्रक्रियाओं का एक संयोजन है।
आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने यह दिखाया है कि, इनइलास्टिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग का उपयोग करके, कृत्रिम "नाक" का निर्माण संभव है। यह कृत्रिम "नाक" कंपन ऊर्जा को महसूस करके विभिन्न गंध वाले अणुओं में पहचान करती है।
इलेक्ट्रॉनिक नोज:
आईआईटी मुंबई के शोधकर्ता जिस "नाक" को विकसित कर रहे हैं वह एक वन-डायमेंशनल "रेजोनेंट टनलिंग डायोड" है। यह एक क्वांटम डिवाइस है जो केवल तभी कार्य करता है जब यह विद्युत ऊर्जा के विशेष डिस्क्रीट वैल्यूज के कारण उत्साहित हो।
मूल रूप से यह एक क्वांटम तार का उपांतरण है - एक लीनियर ऐरे जिसमें इलेक्ट्रॉन केवल वन डाइमेंशन में जा सकते हैं।
इंग्लिश
IIT Mumbai researchers develop an electronic “nose”
The Electrical Engineering department of Indian Institute of Technology, Bombay, research is on to develop an “electronic nose”. This research will eliminate the need of dogs used to sniff out the presence of explosives and drugs by the police.
Smelling process:
- There are two competing theories that try to explain olfaction, or the action of smelling – the shape theory and the vibration theory. According to the shape theory, the shape of a particular molecule acts as a “key” and fits into the “lock” in the nose, thereby stimulating it to perceive a smell. The vibration theory, on the other hand, proposes that the nose senses not the shape but the vibrational energy of the odorant molecule.
- Perhaps the actual mechanism is even a combination of the two processes, While the argument goes on, the IIT Bombay researchers have showed that, using inelastic quantum mechanical tunneling, it is possible to construct an artificial “nose” that differentiates between different odorant molecules by sensing their vibrational energies.
- The nose they have proposed is actually a one-dimensional “resonant tunnelling diode” – a quantum device that conducts only when it is excited by special discrete values of electrical energy. Essentially this is a modification of a quantum wire – a linear array in which the electrons can move in one dimension only. The device takes a quantum wire a little further in a modification without which we do not see room-temperature operation.
- A double potential barrier (like two barricades) is created on the quantum wire, which confines the electrons further to be enclosed in a small region. It is known in quantum mechanics that this allows the confined electrons to possess discrete values of energy. This device selectively allows electrons with specific resonant incident energies to tunnel through the barriers.
- “The resonant tunneling diode shows a peak in the current but does not shut down completely away from the peak. The way the odorant molecule information enters is through the creation of a vibrational mode that modulates the current, specifically by opening up an inelastic channel for tunnelling wherein the electron loses energy in the form of vibration.
- Making the device involves fabricating a one-dimensional semiconductor device with a double barrier, using standard semiconductor fabrication technology.
मराठी
IIT बॉम्बेच्या संशोधकांनी इलेक्ट्रॉनिक "नाक" विकसित केले
भारतीय तंत्रज्ञान संस्था (IIT) बॉम्बेच्या विद्युत अभियांत्रिकी विभागातल्या संशोधकांनी इलेक्ट्रॉनिक "नाक" विकसित केले आहे.या शोधाची पोलीसांना स्फोटक द्रव्ये आणि अमली पदार्थांचा सुगावा घेण्यास मदत होईल.
गंध घेण्याची प्रक्रिया
गंध घेण्याच्या प्रक्रियेसंदर्भात दोन सिद्धांत मांडले गेले आहेत - आकार सिद्धांत आणि कंपन सिद्धांत.
आकार सिद्धांताप्रमाणे, एखाद्या विशिष्ट रेणूचा आकार "मुख्य" मानले जाते आणि जे नाकामध्ये गेल्यास संवेदकामुळे गंध ओळखता येतो. दुसरीकडे कंपन सिद्धांताप्रमाणे, नाक फक्त आकाराचेच आकलन करत नसून तर गंध असलेल्या रेणूच्या कंपन ऊर्जेला सुद्धा ओळखतो.
मात्र केवळ कंपन सिद्धांताच्या आधारे IIT च्या संशोधकांनी इनइलॅस्टिक क्वांटम मेकॅनिक्स टनेलिंग तंत्राला वापरून एक कृत्रिम "नाक" तयार करून दाखवले आहे, जे गंध असलेल्या रेणूंच्या कंपन ऊर्जेमधील फरक ओळखू शकते.
इलेक्ट्रॉनिक नाकमध्ये प्रत्यक्षात एक-आयामी "रेझोनंट टनेलिंग डायोड" आहे, जे एक क्वांटम उपकरण आहे, जे केवळ विद्युत ऊर्जेच्या विशेष डिस्क्रीट वॅल्यूमुळे सक्रिय होते.
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